कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए के एंटनी के बेटे अनिल एंटनी आखिरकार 6 अप्रैल को बीजेपी में शामिल हो ही गए. बीजेपी में उनका जाना जनवरी के आखिर में ही एक तरह से तय हो गया था जब उन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया था.


दरअसल गुजरात दंगों पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के विरोध में उन्होंने ट्वीट किया था और बीबीसी की इस हरकत को भारत की संप्रभुता को कम करने से जोड़ते हुए एक ट्वीट किया था. उसके अगले ही दिन उन्होंने 25 जनवरी को कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. उस वक्त अनिल एंटनी केरल कांग्रेस डिजिटल मीडिया के कन्वेनर और कांग्रेस सोशल मीडिया और डिजिटल सेल के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी निभा रहे थे.


जनवरी में इस्तीफा देने के बाद से ही अनिल एंटनी लगातार कांग्रेस को लेकर हमलावर थे और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की प्रशंसा में जुटे हुए थे. अनिल एंटनी का बीजेपी में शामिल होना केरल की राजनीति के लिहाज से महत्व बढ़ जाता है. हम सब जानते हैं कि अनिल के पिता ए के एंटनी का केरल की राजनीति में बहुत बड़ा कद रहा है. उनकी गिनती उन चुनिंदा नेताओं में होती रही है, जिनके कारण केरल में पिछले 6 दशक से कांग्रेस का जनाधार कायम रहा है. के करुणाकरण और ए के एंटनी ही वो नेता हैं, जिन पर केरल की जनता 70 के दशक से भरोसा करते आ रही थी. ऐसे में ए के एंटनी के बेटे अनिल का ये रुख बीजेपी के साउथ मिशन के लिए बेहद अहम हो जाता है.


ऐसे तो दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़कर बीजेपी तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल हर जगह उतनी मजबूत स्थिति में कभी नहीं रही. इसमें भी केरल में उसका जनाधार इन राज्यों की तुलना में सबसे कम है.  तेलंगाना और तमिलनाडु में धीरे-धीरे ही सही, बीजेपी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रही है. लेकिन केरल में तमाम कोशिशों के बावजूद भी उसको उतनी सफलता नहीं मिली है.


भविष्य के नजरिए से अनिल एंटनी के पक्ष में दो बातें हैं. पहली वे ए के एंटनी के बेटे हैं और दूसरी बात ये हैं कि उनकी उम्र महज 37 साल है. एंटनी परिवार से केरल के लोगों का भावनात्मक लगाव रहा है. कांग्रेस नेता ए के एंटनी तीन बार केरल के मुख्यमंत्री रहे हैं. 2006 से 2014 तक देश के रक्षा मंत्री रहे हैं और 27 साल राज्यसभा के सांसद भी रहे हैं. हालांकि अब उनकी उम्र 82 साल हो गई है और राजनीति में उतने सक्रिय नहीं रह गए हैं.


एंटनी परिवार से केरल के लोगों के जुड़ाव का फायदा बीजेपी उठाना चाहती है और वो भविष्य में केरल में अनिल एंटनी को पार्टी का चेहरा बना सकती है. हो सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में अनिल एंटनी को बीजेपी चुनाव भी लड़वाए. उसके साथ ही केरल में 2026 में अगला विधानसभा चुनाव होना है. उस नजरिए से भी अनिल एंटनी बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं.


बीजेपी को 2019 के विधानसभा चुनाव में 113 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज एक सीट से संतुष्ट होना पड़ा था. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी केरल में खाता नहीं खोल पाई थी. उसके पास केरल में ऐसे नेता भी नहीं हैं जिनके नाम पर वहां की जनता बीजेपी पर भरोसा करे. आपको जानकर हैरानी होगी कि 2019 के विधानसभा में बीजेपी ने के. सुरेंद्रन की अगुवाई में चुनाव लड़ी थी, जबकि के. सुरेंद्रन दो सीटों से चुनाव लड़ने के बावजूद कहीं से नहीं जीत पाए थे. फिलहाल वहीं केरल में पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे हैं.


बीजेपी का गठन 6 अप्रैल 1980 को हुआ और उसके बाद से केरल ही एकमात्र राज्य है, जहां अभी उसके लिए राजनीतिक पकड़ बनाना बहुत मुश्किल रहा है. केरल में 1989 से बीजेपी लोकसभा चुनाव में हाथ-पांव मार रही है, लेकिन कभी भी सफलता हासिल नहीं हुई है. वहीं विधानसभा चुनाव में सिर्फ 2016 में बीजेपी किसी तरह से एक सीट जीतने में कामयाब हो पाई थी.


बीजेपी को पता है कि केरल में पैर पसारना है तो किसी ऐसे चेहरे को आगे लाना होगा, जिसके लिए वहां के लोगों में भावनात्मक लगाव भी हो और इसके लिए एंटनी परिवार से बेहतर कोई और नहीं हो सकता.


केरल में बीजेपी तभी मजबूत हो पाएगी, जब कांग्रेस वहां कमजोर होगी. अभी भी कांग्रेस पर यहां की जनता का भरोसा बाकी राज्यों की तुलना में ज्यादा है. यहीं वजह है कि बाकी राज्यों में बहुत खराब प्रदर्शन करने के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में  कांग्रेस केरल की 20 में से अकेले 15 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. यही नहीं उसकी अगुवाई वाली यूडीएफ को कुल मिलाकर 19 सीटें हासिल हुई थी. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि केरल में कांग्रेस का अभी भी जनाधार मजबूत है और बीजेपी इसे खत्म किए बिना यहां खुद को स्थापित नहीं कर सकती है. केरल में कांग्रेस पर बढ़त बढ़ाने के लिए अनिल एंटनी का ये कदम बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है. 


मिशन साउथ के नजरिए से बीजेपी के लिए केरल बहुत मायने रखता है. हर जगह नरेंद्र मोदी के नाम पर पार्टी को 2014 के बाद से जीत मिलते रही है, कहीं कम तो कही ज्यादा. लेकिन ये फैक्टर केरल में काम नहीं कर पा रहा है. केरल की राजनीति को साधने के लिए अनिल एंटनी बीजेपी के लिए भविष्य में बड़ा मोहरा साबित हो सकते हैं. केरल में फिलहाल लेफ्ट के मुकाबले कांग्रेस के कमजोर होने से ही बीजेपी के राजनीतिक मंसूबों को पंख लग सकता है. उसकी एक बड़ी वजह ये हैं कि लेफ्ट दलों के वोट बैंक में सेंध लगाना उतना आसान नहीं है, जितना कांग्रेस के वोटरों को अपने पाले में लाना है. 


(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)