पूनम पांडे एक फिल्म अभिनेत्री हैं. अभिनेत्री से अधिक वह सोशल मीडिया सेंसेशन भी हैं. अभी हाल ही में उनकी सर्वाइकल कैंसर से मौत की खबर आती है, लेकिन उस खबर के अगले ही दिन पूनम पांडे की टीम यह खुलासा करती है कि वह खबर झूठी थी और पांडे ने वह खबर केवल जागरूकता फैलाने के लिहाज से पोस्ट की थी. अब पूनम पांडे की सोशल मीडिया पर जमकर लानत-मलामत की जा रही है, हालांकि रामगोपाल वर्मा जैसे सेलेब्स उनके बचाव में भी आए हैं. वहीं, कैंसर से जूझ रही एक एक्ट्रेस ने डेली सोप ऑपेरा छोड़ दिया है. डॉली सोही नाम की एक्ट्रेस ने झनक नाम का सीरियल छोड़ा है, जबकि डांसर और एक्ट्रेस शेफाली जरीवाला ने भी पूनम पांडे को खूब सुनाई है. उनके पिता को लेकर उन्होंने अपना दुख और दर्द साझा किया है. 


पूनम पांडे की हरकत चिंता का विषय 


ऐसी किसी भी खबर के बारे में जब हम बात करते हैं, तो कई बार वह चिंता का विषय होता है, साथ ही उस पर हंसी भी आती है. हालांकि, चिंता का विषय वह अधिक होता है, क्योंकि ध्यानाकर्षण के लिए व्यक्ति किस हद तक जा सकता है, यह खबरें उसको दिखाती हैं. हमारा सोचने का स्तर कहां तक जा रहा है, उसको लेकर चिंता होती है. इसको ऐसे ही समझा जा सकता है कि जिस तरह दुनिया बदल रही है, उसके साथ हम किस तरह समन्वय कर रहे हैं, जैसे कि पहले रोज सितारे नजर नहीं आते थे. फिल्मी दुनिया के बारे में कहावत ही थी कि सितारे रोज जमीन पर नहीं उतरते. इसीलिए, वे अधिक विज्ञापन भी नहीं करते थे. विज्ञापन करनेवाले भी बहुत बड़े सितारे नहीं होते थे. अभी सितारे बहुत सारे लोग हैं. जैसे रील्स है, इंस्टाग्राम है, उसके पहले टिकटॉक था.



वहां से कई सितारों ने जन्म लिया. अभी कई सितारे हो गए हैं, जो इंफ्लुएंसर्स कहलाते हैं. भीड़ बढ़ गयी है, प्रतियोगिता भी बढ़ गयी है. इसका एक अच्छा पहलू ये है कि पहुंच से बाहर अब कुछ नहीं रहा, सितारे जो बिल्कुल अलग लगते थे, उनको पूजे जाने की जो भावना थी, अब लगता है कि कोई भी वहां पहुंच सकता है. छोटी-छोटी जगहों से चूंकि बहुतेरे लोगों ने काफी कुछ पाया है तो लोग जानते हैं कि यह भी एक रास्ता है जहां से प्रसिद्धि पायी जा सकती है. उसका एक बुरा पहलू ये है कि अच्छे और बुरे का फर्क मिटता जा रहा है. जो व्यूज या सब्सक्राइबर पाने के लिए केवल कंटेंट गढ़ रहे हैं, जो सीमारेखा मिट रही है गुणवत्ता की, वह चिंता की बात है. 


गुणवत्ता का नहीं रखा जा रहा ध्यान 


कंटेंट बनाना अब मकसद नहीं है. लक्ष्य ये है कि आप वायरल कैसे हों? कई रील्स आप देखेंगे जिसमें ऊपर कुछ और लिखा होगा, लेकिन आप जब उसको खोलेंगे और देखेंगे तो कुछ और दिखेगा. ये इसलिए ही होता है, क्योंकि कंटेंट को वायरल करना है, व्यूज पाने हैं. होड़ अब इस बात की है कि हमें कुछ अच्छा करना है या सोसायटी के लिए हेल्दी एंटरटेनमेंट बनाना है, होड़ तो वायरल होने की है. बल्कि, कई सारे रील्स तो इसी बात पर बन रहे हैं. उसमें तो व्यक्ति सब कुछ भुला दे रहे हैं. पूनम पांडे का केस भी ऐसा ही है.


अगर एक बड़े हिस्से ने हमें देख लिया, तो समाज में क्या हुआ या किस तरह हमारी प्रतिष्ठा पर आंच आयी, वह नहीं देखना है, वह मायने नहीं रखता. मकसद बस उस ऊंचाई तक पहुंचना है कि लोग उनके बारे में बात करें. बात भी लोग क्या कर रहे हैं, वह भी अब मायन नहीं रखता. बस, बात करें ये मसला है. छोटे बच्चों को हमने देखा होगा, जब वो ध्यान आकर्षित करते हैं. उनको लगता है कि उनकी तरफ ध्यान दिया जाए. जब चार बड़े बात करते हैं, तो वे कुछ भी ऐसी हरकत करते हैं, जिसकी वजह से वे ध्यान खींचते हैं. भले ही लोग उनको डांटें लेकिन उनके ऊपर ध्यान दिया जाए, ऐसा कुछ भी करते हैं. 


हालात चिंताजनक, लेकिन सुधार की है उम्मीद


हम उम्मीद कर सकते हैं कि यह क्रम बदले, हालांकि हालात तो अभी चिंताजनक हैं. जो लोग रील से कमाई नहीं करते, हमारी-आपकी तरह के सामान्य लोग हैं, वे भी कोई फोटो डालते हैं या कंटेन्ट डालते हैं तो लाइक और शेयर के आंकड़े देखते हैं. कई बार दोस्तों में झगड़ा भी इसीलिए होता है कि अमुक ने मेरी फोटो लाइक नहीं की या फलाने ने मेरे कंटेन्ट पर कमेंट नहीं किया. हम लगातार चेक करते हैं कि किसने लाइक, कमेंट या शेयर किया. कई बार इसकी वजह से रिश्ते भी बनते-बिगड़ते हैं. ऐसी बातें बहुत पढ़े-लिखे, संभ्रांत लोग भी करते हैं. तो, लाइन अब यहां तक जा रही है. यह किसी खास वर्ग या आयुवर्ग में सीमित नहीं है. हां, यह जरूरत उम्मीद की जा सकती है कि जब पतन का एक ऐसा स्तर आ जाए कि लोग चौंक जाएं कि ये तो अब कुछ अधिक ही हो गया.



सोशल मीडिया की एक अच्छाई ये भी है कि अच्छे कंटेंट भी आ रहे हैं और लोग उसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं. पूनम पांडे का तरीका जितना गलत था, लेकिन लोग उस पर अवेयर हों, इसकी जरूरत तो है. अभी कुछ भी करके लाइमलाइट की प्रवृत्ति हावी हो रही है, यह बढ़ने के क्रम में है, लेकिन अगर अपने स्तर पर हम इसे ठीक कर लें, तो काफी चीजें ठीक हो सकती हैं. व्यक्तिगत तौर पर डिप्रेशन और एंग्जायटी का एक बहुत बड़ा कारण यह सोशल मीडिया है तो इसे व्यक्तिगत तौर पर देखने की जरूरत है.  


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