भारत बुद्ध, महावीर, ज्ञानेश्वर, गुरु नानक, कबीर, बादशाह खान और गांधी की भूमि है. महाभारत में कहा गया है "अहिंसा परमो धर्म:", लेकिन भारत की इस प्राचीन भूमि में कुछ लोग अहिंसा के मूड में दिखाई दे रहे हैं. भारत को भीड़ का डर सता रहा है जो अथाह रोष, प्रचंड क्रूरता और एक भयंकर बदले की भावना से मौके पर ही न्याय चाहता है.
कुछ दिनों पहले हैदराबाद के महानगरीय क्षेत्र में एक 26 वर्षीय युवती जो पेशे से पशु चिकित्सक (वेटनरी डॉक्टर) थी उसके साथ रेप किया गया और क्रूरता के साथ हत्या कर दी गई. घर लौटते वक्त महिला डॉक्टर का स्कूटर एक टोल प्लाजा पर रुक गया. तभी वहां एक शख्स आया और मदद की पेशकश की. हालांकि महिला चिकित्सक असहज महसूस कर रही थीं. उसने रात 9:30 बजे अपनी छोटी बहन को फोन किया. उसने उससे आग्रह किया कि वह उसके साथ लगातार संपर्क में रहे. हालांकि इसके बाद उस महिला चिकित्सक की बहन उससे संपर्क करने में असफल रही. रात 10:30 बजे के बाद उसका फोन बंद आने लगा. इसके बाद महिला डॉक्टर का परिवार टोल प्लाजा पर पहुंचा लेकिन वह उसे ढूंढने में कामयाब नहीं हुए. सुबह पुलिस द्वारा कई सवाल पूछे जाने और काफी वक्त बर्बाद करने के बाद शिकायत दर्ज की गई.
इसके बाद गुरुवार यानी 28 नवंबर को सुबह 7 बजे टोल प्लाजा से 30 किलोमीटर की दूरी पर एक जला हुआ शव मिला. पशु चिकित्सक की पहचान उसके कपड़ों से कर ली गई. पता चला कि चार पुरुषों द्वारा उसका अपहरण कर लिया गया था. इन चारों आरोपियों के नाम मोहम्मद अरीफ, जोलू शिवा, जोलु नवीन, और चिन्तकुन्टा चन्ननेकेवुलु था. उन चारों ने उसके साथ बलात्कार किया और फिर उसके शरीर को कंबल में लपेटकर उसपर किरोसिन डालकर आग लगा दिया. कथित आरोपियों की पहचान जघन्य अपराध के 24 घंटों के भीतर कर ली गई.
इस तरह की घटना देश में पहले भी हुईं . दिसंबर 2012 में 23 वर्षीय 'निर्भया' के साथ क्रूरता का कुख्यात मामला सामने आया था. कुछ समय पहले ही बखेरवाल समुदाय की एक लड़की जो अपनी किशोरावस्था में भी नहीं थी, उसके साथ रेप किया गया और फिर हत्या कर दी गई. उसका बलात्कार जम्मू-कश्मीर में एक मंदिर में किया गया था. सभी मामलों में आरोपियों को भीड़ द्वारा मार देने की मांग जोर से उठती रही. जहां पुलिस स्टेशन में आरोपियों को रखा गया था उसके बाहर एक भीड़ इकट्ठी होकर आरोपियों को उनके हवाले करने की मांग करती है. अखबार की खबरों के अनुसार, पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने में कठिनाई हुई क्योंकि महिलाओं और बच्चों का एक बड़ा हिस्सा भीड़ में शामिल था.
लेकिन पीड़ित के कथित हमलावरों के मामले ने एक अलग मोड़ ले लिया. 24 घंटे से कम समय में आरोपियों को बेंगलुरु-हैदराबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक अंडरपास पर ले जाया गया. पुलिस उन्हें उस रात के भयावह घटनाओं को फिर से रिक्रिएट करने के उद्देश्य से ले गई. पुलिस के मुताबिक, अपराधी जिनके हाथों में उस वक्त हथकड़ी नहीं थी उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों के हथियार छीन लिए और गोलियां चलानी शुरू कर दी. जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने चारों को मार गिराया.
सभी ने इसे एनकाउंटर में हत्या के रूप में समझा. आम तौर पर जब पुलिस आतंकवादियों को मारने की इच्छा रखती है या आत्मरक्षा के लिए इस तरह के कठोर कदम की आवश्यकता होती है तो एंनकाउंटर किया जाता है. यही इस केस में भी हुआ. यह घटना बतलाता है कि लोग लोकतंत्र के प्रति अधीर हो चुके हैं. उनकी पुलिस और न्यायिक प्रणाली दोनों के प्रति गहरा अंसतोष है. निर्भया के गैंगरेप के बाद सरकार ने यौन हिंसा के अपराधों के लिए "फास्ट-ट्रैक" अदालतों की शुरुआत की लेकिन ऐसी अदालतें बलात्कारियों को रोकने के लिए जाहिर तौर पर बहुत कम काम किया है.
इस मामले में न्याय दिलाने के लिए पुलिस अत्यधिक दबाव में थी और यही नहीं उच्च पदों पर बैठे राजनेताओं द्वारा मॉब लिंचिंग किए जाने की अपील ने उन्हें उकसाया होगा. उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें जनता से ईंट-पत्थर के बजाय प्रशंसा मिलेगी. चार संदिग्धों की असाधारण हत्या दिखाता है कि पुलिसवालों ने स्थिति का सही आंकलन किया. इस एनकाउंटर के बाद लोगों ने जश्न मनाया.
जब भारत दो दशक पहले परमाणु संपन्न हुआ तो लोगों ने एक-दूसरे को बधाई दी, मिठाई बांटी और अपने देश की प्रगति के बारे में गर्व किया. हम कह सकते हैं कि कई लोग देश के वर्तमान घटना पर भी ऐसे ही रिएक्ट कर रहे हैं. कुछ लोग पुलिसवालों को कंधों पर उठा रहे हैं, तो कुछ लोग उन्हें गुलाब के फूल से नहला रहे हैं. लोग पटाखे फोड़ रहे हैं.
निर्भया के पिता उन लोगों में से हैं जिन्होंने कहा है कि पुलिस को संदिग्धों को गोली मारने का अधिकार था, आरोपी निश्चित तौर पर घटनास्थल से भाग रहे होंगे. विडंबना यह है कि उनके बयान से यह पता चलता है कि वह पुलिस पर अधिक विश्वास नहीं करते हैं. उन्हें लगता है कि अगर आरोपी फिर भाग गए होते तो उन्हें फिर से पकड़ने की क्षमता पुलिस वालों में नहीं थी. हालांकि न ही निर्भया के पिता और न ही किसी और ने यह पूछने की कोशिश की कि क्यों? अगर वास्तव में वही हुआ जो पुलिस ने बताया है तो पुलिस ने संदिग्धों को पैर में गोली क्यों नहीं मारी?
निर्भया की मां ने सार्वजनिक अपील की है कि चार संदिग्धों को गोली मारने के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए. निर्भया के माता-पिता के साथ जो भी बीते सालों में घटा है वो कोई भी समझ सकता है लेकिन इस मामले में यह कहा जाना गलत नहीं होगा कि आरोपी फिलहाल केवल संदिग्ध थे.
इस तरह की लापरवाह हत्याओं के लिए जया बच्चन ने जिस तरह उत्साह दिखाया है, वह बताता है कि अभिनेत्री और संसद सदस्य ने अपने पति की कई फिल्मों को देखा है. जिसमें अमिताभ ने कई बार उस हीरो की भूमिका निभाई है जो खुद एक न्यायिक दुनिया बनाता है.
कानून को अपना निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए इस आधार पर जो लोग संदिग्धों की हत्याओं पर आपत्ति जता रहे हैं नि:संदेह सही है. आश्चर्य की बात है कि जिन लोगों को भारत के संविधान की रक्षा के लिए चुनाव गया है वो भी संसद में पब्लिक लिंचिंग की बात कर रहे हैं.
भारत अब लॉ-लेस होने की स्थिति में पहुंच गया है. पशु चिकित्सक की हत्या निश्चित ही बर्बरता का एक रूप था. लेकिन यह कम बर्बर नहीं कि चार कथित आरोपियों की हत्याएं की गई. जनता बर्बर हत्या के खिलाफ बर्बर हत्या का जश्न मना रही है. भीड़ अपने हाथों में न्याय को लेना चाहती है, इस स्थिति में ऐसा लगता है कि आगे के वर्षों में भारत में पुलिस की सेवाओं की आवश्यकता नहीं होगी. जनता के लिए बदले की भावना में किया गया न्याय ही सबकुछ होगा. राज्य न केवल इसमें अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कर सकता है बल्कि यह दावा भी कि यह वास्तव में लोकतंत्र है. जनता की इच्छा का सम्मान किया जा रहा है.
विनय लाल UCLA में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं. साथ ही वो लेखक, ब्लॉगर और साहित्यिक आलोचक भी हैं.
वेबसाइटः http://www.history.ucla.edu/faculty/vinay-lal
यूट्यूब चैनलः https://www.youtube.com/user/dillichalo
ब्लॉगः https://vinaylal.wordpress.com/
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)