एक ओर श्रीदेवी की मौत को लेकर आये दिन नई-नई बातें सामने आने का सिलसिला जारी है, वहीं दूसरी ओर श्रीदेवी के निधन के बाद उन्हें लगातार बड़े पुरस्कार मिलने का एक ऐसा सिलिसिला चल निकला है, जो नए इतिहास रच रहा है. इसे संयोग कहें या कुछ और कि श्रीदेवी के निधन को अभी तीन महीने हुए हैं और इन्हीं तीन महीनों में उन्हें तीन बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं. इनमें दो पुरस्कार अंतरराष्ट्रीय हैं और एक राष्ट्रीय. ये तीनों पुरस्कार ऐसे हैं जिनमें एक का मिलना भी बड़ी बात, बड़ा गौरव है.
श्रीदेवी किस कोटि की कलाकार थीं इस बात को सभी जानते हैं. बाल कलाकार के रूप में मात्र 4 बरस की उम्र में एक्टिंग शुरू करने वाली श्रीदेवी ने अपने निधन तक की 54 बरस की जिंदगी में कुल 300 फ़िल्में की थीं. जिनमें हिंदी के साथ तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ की फ़िल्में भी शामिल हैं. यदि हम हिंदी सिनेमा की ही बात करें तो श्रीदेवी की 'सदमा', 'नगीना', 'मिस्टर इंडिया', 'चांदनी', 'चालबाज़', 'लम्हें', 'खुदा गवाह', 'गुमनाम', 'जुदाई', 'इंग्लिश-विंग्लिश' और 'मॉम' जैसी बहुत सी फ़िल्में श्रीदेवी के करियर में मील का पत्थर हैं. अपनी 54 बरस की उम्र में 50 बरस का अभिनय का अनुभव अपने आप में बेमिसाल है. हालांकि अपनी अभिनयी जिंदगी के पहले 30 बरस में जहां श्रीदेवी ने कुल 296 फ़िल्में कीं, वहां अंतिम 20 साल में श्रीदेवी ने कुल 4 फ़िल्में कीं, जिनमें एक तमिल फिल्म ‘पुली’ थी और तीन हिंदी की फ़िल्में 'जुदाई', 'इंग्लिश विंग्लिश' और 'मॉम'.
यह बात दर्शाती है कि श्रीदेवी जैसी शानदार अभिनेत्री को फ़िल्में नहीं मिल रही थीं. यह कितना दुखद है कि फिल्मकार इतनी खूबसूरत अभिनेत्री को नजरअंदाज़ कर रहे थे. जिस अभिनेत्री के नाम और काम के आगे बॉक्स ऑफिस जगमगा उठता था, उस अभिनेत्री को फिल्मकार भूल चुके थे. उनकी अंतिम तीन हिंदी फिल्मों में से भी दो के निर्माता उनके पति बोनी कपूर थे. यानी यदि उनके पति श्रीदेवी के लिए यदि खुद आगे बढ़कर ये दो फ़िल्में न बनाते तो पिछले 20 बरसों में श्रीदेवी के खाते में सिर्फ एक फिल्म रह जाती.
ऐसे ही यदि हम श्रीदेवी को मिलने वाले पुरस्कारों पर नज़र डालें तो उन्हें अपनी दो हिंदी फिल्मों ‘चालबाज़’ और ‘लम्हे’ के लिए ही, 90 के दशक की शुरुआत में दो फिल्मफेयर पुरस्कार मिले. इनके अलावा किसी और हिंदी फिल्म के लिए उन्हें कोई और फिल्मफेयर नहीं मिला. हालांकि उन्हें दक्षिण के तीन फिल्मफेयर और वहां के नंदी सम्मान सहित कुछ राजकीय पुरस्कार तो मिले, साथ ही भारत सरकार ने श्रीदेवी को पदमश्री भी प्रदान किया. लेकिन अपने जीते जी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार तो वह अपनी किसी भी फिल्म के लिए नहीं पा सकीं. जबकि 'सदमा', 'मिस्टर' 'इंडिया', 'चांदनी', 'चालबाज़' और 'लम्हें' उनकी पांच फ़िल्में तो ऐसी थीं कि उन्हें इन सभी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिल सकता था. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार न मिलने का मलाल था श्रीदेवी को
श्रीदेवी को इस बात का मलाल भीतर ही भीतर हमेशा रहा कि उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं मिला. मैंने खुद उनसे करीब 25 साल पहले उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं मिलने पर तब सवाल किया था, जब वह जयपुर में अपनी एक फिल्म की शूटिंग कर रही थीं. तब उन्होंने कहा था कि ''राष्ट्रीय पुरस्कार पाना निश्चय ही एक सपना होता है, इसलिए चाहती हूँ यह मिलता. लेकिन क्या कह सकते हैं. सभी इच्छाएं पूरी हों यह जरुरी नहीं...'' और श्रीदेवी राष्ट्रीय पुरस्कार पाने का अरमान अपने साथ लेकर इसी साल 24 फरवरी को दुनिया से बिदा हो गईं. पर समय का खेल देखिये कि उनके निधन के तुरंत बाद से उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान लगातार मिल रहे हैं. पहले तो यही बहुत बड़ी बात थी कि श्रीदेवी को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम बिदाई दी गई. इसी के साथ एक फिल्म अभिनेत्री के तौर पर यह सम्मान पाने वाली वह पहली भारतीय अभिनेत्री भी बन गई हैं.
श्रीदेवी को निधन के सिर्फ एक हफ्ते बाद ही अंतरराष्ट्रीय स्तर का वह सम्मान मिल गया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. वह सम्मान था विश्व के सबसे बड़े फिल्म समारोह ऑस्कर में श्रीदेवी को श्रद्धांजलि. इस बार अकादमी पुरस्कारों का 90वां आयोजन था. इतने बरसों में यहां हॉलीवुड सहित विश्व के कई अन्य देशों के कलाकारों को मरणोपरांत श्रद्धांजलि देने की पुरानी परंपरा रही है लेकिन यह पहला मौका था जब यहां श्रीदेवी के साथ किसी भारतीय फिल्म अभिनेत्री को ऑस्कर में श्रद्धांजलि दी गई. वह भी तब जब श्रीदेवी ने कभी भी किसी हॉलीवुड की फिल्म में काम नहीं किया था. इसलिए श्रीदेवी के इस सम्मान से श्रीदेवी का गौरव तो बढ़ा ही साथ ही इससे भारतीय सिनेमा को भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर विशिष्ट सम्मान मिला.
लेकिन सबसे ज्यादा खुशी तब हुई जब 13 अप्रैल को श्रीदेवी को उनकी 300 वीं और अंतिम फिल्म ‘मॉम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का वह राष्ट्रीय पुरस्कार देने की घोषणा हुई. इसका सपना खुद श्रीदेवी ने तो देखा ही था, साथ ही उनके लाखों-करोड़ों प्रशंसक भी अपने दिलों में यही ख्वाहिश रखते थे. यह भी पहला मौका था जब किसी अभिनेत्री को मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया. श्रीदेवी का यह पुरस्कार बोनी कपूर और उनकी बेटियों जाह्नवी और ख़ुशी ने ग्रहण किया. जाह्नवी अपनी मॉम के इस पुरस्कार को लेने के लिए अपनी मॉम श्रीदेवी की ही साड़ी पहनकर आई थी.
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के इस राष्ट्रीय पुरस्कार के बाद अब हाल ही में विश्व के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह कान्स में श्रीदेवी को एक और अंतरराष्ट्रीय सम्मान, ‘टाइटन रीगनौल्ड एफ लुईस फिल्म आइकॉन अवार्ड’ मिलना, आश्चर्य के साथ ख़ुशी भी देता है. आखिर इस महान अभिनेत्री को उनके मरणोपरांत तो वे सम्मान मिल रहे हैं जिनकी वह हकदार थीं. यह रीगनौल्ड फिल्म आइकॉन अवार्ड उन महिला फिल्मकारों को दिया जाता है जिन्होंने फिल्म जगत में असाधारण कार्य किया हो. इसलिए श्रीदेवी को कान्स जैसे विख्यात और प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में ‘बॉलीवुड आइकॉन’ के रूप में चुना जाना, निश्चय ही सुखद और बड़ी घटना है. जिस प्रकार श्रीदेवी के राष्ट्रीय पुरस्कार को लेने के लिए बोनी कपूर और जाह्नवी तथा ख़ुशी गए थे, उससे संभावना थी कि ये सम्मान लेने भी ये तीनों जायेंगे. लेकिन कपूर परिवार से कोई भी इस समारोह में नहीं जा सका. इसलिए श्रीदेवी का यह पुरस्कार वहां कान्स में उस समय उपस्थित फिल्मकार सुभाष घई और नम्रता गोयल ने ग्रहण किया.
सुभाष घई तो हिंदी सिनेमा के जाने माने फिल्मकार हैं ही जबकि नम्रता जेट एयरवेज के अध्यक्ष नरेश गोयल की बेटी हैं. सुभाष घई ने यह पुरस्कार लेते हुए कहा, “मैं इस लीजेंड गर्ल श्रीदेवी के साथ जुड़ा रहा हूँ. यह मेरे लिए एक ऐसा लम्हा है जब उनका यह लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मैं तब ले रहा हूँ जब वह इस दुनिया में नहीं हैं. सिर्फ 54 बरस की आयु में जब कुछ समय पहले उनका निधन हुआ तो पूरी फिल्म इंडस्ट्री को सदमा लगा.” श्रीदेवी ने सुभाष घई की सिर्फ एक फिल्म ‘कर्मा’ में काम किया था. हालांकि श्रीदेवी के निधन के बाद घई श्रीदेवी की कई बार तारीफ़ करते रहे हैं. लेकिन यह समझ नहीं आया कि श्रीदेवी जब उनकी इतनी पसंदीदा अभिनेत्री थीं, तो उन्होंने फिर श्रीदेवी को अपनी किसी फिल्म में क्यों नहीं लिया ?
इसलिए नहीं जा सके बोनी कपूर फ्रांस !
चर्चा थी कि बोनी कपूर श्रीदेवी का यह पुरस्कार लेने के लिए फ्रांस जा रहे हैं. बोनी ने कान्स के इस सम्मान समारोह से दो दिन पहले भी मुझसे अपनी बातचीत में कान जाने की बात की थी. लेकिन वह क्यों नहीं गए, इस बात का खुलासा अभी तक और कहीं नहीं हो पाया है. इसलिए मैंने बोनी से फ्रांस न जाने के कारण के बारे में पूछा तो उन्होंने अपनी विशेष बातचीत में मुझे बताया, ''असल में मैं कान्स समारोह के लिए फ्रांस जाने का कार्यक्रम बन रहा था, लेकिन इधर मेरी छोटी बेटी ख़ुशी की कक्षा 11 की परीक्षाएं हैं. इसलिए यह फैसला किया कि ख़ुशी मेरी बड़ी बेटी अंशुला के पास रुक जायेगी. यूँ बहनों में परस्पर अच्छा प्यार है. ख़ुशी ने कहा भी ठीक है मैं दीदी अंशुला के साथ रुक जाउंगी. लेकिन मुझे ख़ुशी के चेहरे से लगा अपनी परीक्षाओं की तैयारी में जुटी ख़ुशी, एक ओर अपनी मम्मी की कमी महसूस कर रही है और अब मेरे विदेश जाने से भी वह कुछ उदास और चिंतित सी है. इसलिए मैंने कान्स समारोह जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और कान के मेजेस्टिक होटल में आयोजित इस सम्मान समारोह में सुभाष घई व नम्रता गोयल को यह सम्मान ग्रहण करने का अनुरोध भी मैंने किया. मैं वहां नहीं जा पाया यह अफ़सोस तो है, वे लोग मुझे वहां आने के लिए दो तीन बार अनुरोध कर चुके थे.लेकिन ख़ुशी के लिए मुझे यहां रुकना ज्यादा जरुरी लगा. लेकिन मुझे ख़ुशी है श्रीदेवी को लगातार देश के साथ विदेशों में भी सम्मान मिल रहे हैं. यह श्रीदेवी की प्रतिभा का सम्मान है, जिसके लिए मैं सभी का आभारी हूँ.”
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