जन सुराज पदयात्रा के 187वें दिन सारण में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बीजेपी और महागठबंधन दोनों को आड़े हाथों लिया था. एमएलसी चुनाव में अफाक अहमद की जीत पर प्रशांत किशोर ने कहा कि लोग कहते थे कि जन सुराज कोई दल नहीं है, तो व्यवस्था कैसे बदलेगी? आप सबने देखा कि सारण निर्वाचन शिक्षक क्षेत्र में जो जीत हुई है उसमें वोट किसको मिला है. बीजेपी और महागठबंधन दोनों दल साफ हो गए हैं. बीजेपी कह रही है कि महागठबंधन का वोट कटा है और महागठबंधन वाले कह रहे हैं कि बीजेपी का वोट कटा है. इसी पर प्रशांत किशोर ने कहा है कि जन सुराज कोई वोट कटवा नहीं है और लोग खुद ही बीजेपी और महागठबंधन को साफ कर देंगे. ऐसे में सवाल है कि प्रशांत किशोर की आगे की रणनीति क्या है? क्या वे बिहार में चुनाव लड़ेंगे?


पहली बात ये है कि प्रशांत किशोर यह तय नहीं कर पाये हैं कि उन्हें राजनीति करनी है या नहीं. उन्होंने कहा कि मैं अभी दो साल बिहार का भ्रमण करूंगा, लोगों को समझूंगा. इस बात पर आश्चर्य है कि वे 2015 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ व्यवसाय कर रहे थे तब एक टीम के रूप में बिहार की जनता के बीच में घूम रहे थे. उस वक्त वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यों का प्रचार-प्रसार कर रहे थे तो उन्होंने बिहार की जनता को बखूबी जाना और समझा है. इन्होंने ये भी जाना है कि बिहार की जनता के दिल में और मन में नीतीश कुमार ही बसते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में बिहार ने चौतरफा प्रगति देखा है. मुख्यमंत्री  के कार्यकाल में बिहार को नई दिशा और पहचान मिली है. इसमें महिलाओं का योगदान भी अहम रहा है. महिलाओं की मांग पर हमलोगों ने कई फैसले लिए हैं. उन्हें घर से बाहर निकल कर समाज के निर्माण में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित किया है. पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया है. नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को दी गई है.


प्रशांत किशोर पहले तो यह तय कर लें कि उन्हें करना क्या है. हमने उन्हें हमेशा व्यवसाय करते देखा है. अभी तक उन्होंने कई राजनीतिक पार्टियों के लिए बदल-बदल कर काम किया है. स्थिरता उनमें कभी नहीं है. पहले वे स्थिर हो जाएं. सरकार और शासन एक योजना से चलती है. उनके पास क्या योजना है. जिस विधान परिषद चुनाव को लेकर वो दंभ भर रहे हैं. अगर अफाक अहमद उनकी पार्टी के प्रत्याशी होते तो ये बात कहने में शोभा देता कि वे उनके पार्टी के हैं. सबसे बड़ी बात तो ये है कि उनकी पार्टी है ही नहीं. जिस जन सुराज की वो बात कर रहे हैं वो एक प्लेटफार्म है, मंच है कोई पार्टी नहीं है. किसी मंच के तहत कोई चुनाव नहीं लड़ा जाता है. एमएलसी चुनाव में कोई किसी पार्टी का प्रत्यक्ष तौर पर प्रत्याशी नहीं होता है. ये अफाक अहमद का व्यक्तिगत जीत है. मुझे लगता है कि प्रशांत किशोर को अगर अपनी वस्तु स्थिति स्पष्ट करनी है तो वो जल्द अपनी पार्टी का निर्माण कर लें. ये वो ढ़ोंग नहीं रचे कि वो बिहार को जानते नहीं हैं. व्यवसाय करना बंद करें. अपने व्यवसायी दृष्टिकोण से बिहार की भोली-भाली जनता को ठगना बंद कर दें.


प्रशांत किशोर हो या कोई और लोकतंत्र में हर कोई अपना पार्टी बना सकता है. चुनाव लड़ सकता है. यही हमारे भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है. अगर उन्हें चुनावी मैदान में आना है तो वो जल्द से जल्द अपनी पार्टी का गठन करें. बिहार की राजनीति को अगर आप देखें तो अभी वर्तमान में किसी भी नए व्यक्ति के आने से कोई असर नहीं पड़ने वाला है. दूसरी बात यह भी देखनी चाहिए की कई ऐसे दल हैं जो समाजवादी पार्टी से निकले हैं, जदयू से भी निकल कर अपनी पार्टी बनाई जैसे जीतन राम मांझी का उदाहरण ले लीजिए, उपेंद्र कुशवाहा ने भी अपनी पार्टी बनाई, लोजपा भी है और भी कई छोटे-छोटे दल हैं तो आपको उनकी भी स्थिति देखनी चाहिए. चूंकि ये सभी पार्टियां तो कई वर्षों से बिहार में राजनीति कर रही हैं और जब इनको अब तक सफलता नहीं मिली है जितनी कि मिलनी चाहिए था तो प्रशांत किशोर के लिए तो बहुत मुश्किल होगा.


लोकसभा का चुनाव अगले साल है. मुझे लगता है कि देश अभी कठिन दौर से गुजर रहा है. वो इसलिए कि जनता के हक की बात नहीं हो रही है. लोकतंत्र खतरे में है. ऐसे में मुझे लगता है कि बिहार के लोग किसी नए चेहरे पर दांव नहीं लगाना चाहेंगे. चूंकि अभी लोकतंत्र बचाना है और उसके लिए जो अहम पार्टियां निकल कर आएंगी, जो जनता और जनहित की बात करेंगी उसी के साथ जनता जाएगी. जहां तक 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव की बात है तो मैं ये मानती हूं कि जिस तरह से 2015 में महागठबंधन ने बिहार में परचम लहराया था, उसी समीकरण के साथ फिर से हम चुनाव लड़ेंगे. इसमें कोई शक नहीं है कि हम राजद और अन्य सभी पार्टियों के साथ ही 2025 में विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. महागठबंधन का निर्माण इसी संकल्प के साथ किया गया है.


(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)