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Opinion: धर्म है, चना जोर गरम नहीं, जो आला मसाला डाला और लाइफ झींगा ला ला

भारत की धर्म संस्कृति ने हर दौर में दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया. सनातन को दुनिया का इकलौता धर्म भी कहा जाता है. पिछले एक दशक में कट्टर हिंदू और मुखर हिंदू चेहरे ट्रेडिंग में है. संभवतः यही वजह है कि धर्म कर्म की पुनीत छाया से निकल कर हवा हवाई धर्म गर्म हो गया. फिर चाहे हिंदू हों या मुस्लिम अथवा सिख एवं ईसाई. सब जगह हालात कमोबेश एक से हैं. अनेक विद्वान प्रमाणिकता के साथ सनातन धर्म को ही विश्व का एकमात्र धर्म मानते हैं और शेष को संप्रदाय और उपासना पद्धति की श्रेणी में रखते हैं.तो इसी पर बात की जा रही है. 

भारत के प्रयागराज में इस समय कुंभ चल रहा है. देश-दुनिया की नजर कुंभ की गतिविधियों पर है. जाहिर है एक जमाने से भारत बेहतरीन खुशबूदार मसाला उत्पाद देश के रुप में प्रख्यात है. इसी खूबी की कीमत सैकड़ों वर्षों तक भारतवासियों ने चुकाई. मगर अब यह मसाला धार्मिक गतिविधियों में तलाशा जा रहा है.कौन तलाश रहे हैं ? पर बड़ा मर्म यह है कि क्यों तलाशा जा रहा हैं. महाकुंभ के शुरु होने से अब तक हर माध्यम की रिपोर्ट में इन मसालों की महक है. 

मुस्लिम समाज की महाकुंभ में एंट्री बैन से लेकर माला लेकर आई मोनालिसा,आईआईटी बाबा से लेकर अंडरवर्ल्ड की  छाया से बाहर निकल कर आई ममता कुलकर्णी तक किस्से कहानियां खूब देखे और सुने जा रहे हैं. महामंडलेश्वर श्रीयामाई ममता गिरी के पिंडदान और स्नान से लेकर और महामंडलेश्वर की पदवी गंवाने,यानी हटाने और छोड़ने तक और अब इस संन्यासी ममता गिरी के भाजपा में शामिल होने की चर्चा शुरु हो चुकी है. 

भारत में हर क्षेत्र पर चेक एंड बैलेंस का सिस्टम है. धर्म भी इससे अछूता नहीं और होना भी नहीं चाहिए.मगर इसके होने के बावजूद ममता कुलकर्णी और इससे पहले कई महामंडलेश्वरों के विवाद कहानी बन चुके हैं. इन्हीं कहानियों की श्रृंखला में बड़ा अध्याय ममता कुलकर्णी का जुड़ा है. यानी हमारी भावी पीढ़ी इंटरनेट की दुनिया से सर्च कर इन किस्सों को पड़ेगी. ऊपर से महाकुंभ में करोड़ों लोगों द्वारा किये गए धर्म कर्म से ज्यादा फलां फर्जी शंकराचार्य और फर्जी महामंडलेश्वरों की पटकथाओं से अटा महाकुंभ मेले का इतिहास, चिंताजनक है.

अब सवाल यह उठ रहा है कि फिर चेक एंड बैलेंस कैसा? अनेक बार अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद दर्जनों फर्जी शंकराचार्यों की विवरण आंकड़ों सहित दे चुका है. कभी यह 40 बताए जाते हैं, तो कभी 84 और सैकड़ा पार. इन्हें कौन खड़ा कर रहा है. किसकी शह पर यह फर्जी शंकराचार्य और महामंडलेश्वर घूम रहे हैं, यह सवाल नहीं है. सवाल यह है कि सनातन धर्म की पवित्रता, उस पर विश्वास करने और उस दिशा में बढ़ने वाले एवं परंपराओं में आस्था रखने वालों से खिलवाड़ क्यों ?

विदित ही होगा कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की कार्यकारिणी ने 2017 में प्रयागराज की ही एक बैठक में अनेक स्वयंभू धर्मगुरुओं का लेखा जोखा प्रस्तुत कर फर्जी की श्रेणी में डाला था. हालांकि तब और आज भी इन धर्मगुरुओं की  हिंदू धर्म के मानने वालों में अच्छी खासी पैठ बरकरार है. इनमें डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत सिंह राम रहीम, आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, मलकान गिरि, ऊं नम: शिवाय बाबा, बृहस्पति गिरि नारायण साईं, रामपाल और खुशी मुनि सहित 14 नाम शामिल थे.

विश्व गुरु बनने जा रहे भारत में विशेष श्रेणी के गुरु घंटाल बाबाओं का जखीरा निरंतर बढ़ता जा रहा है. देश के अलग अलग हिस्सों से लेकर महाकुंभ जैसे पावन अवसरों पर आस्था की डुबकी लगाने वाले आमजन इसी पशोपेश में हैं कि सही कौन और गलत कौन. इस मकड़जाल से बचाव का जिम्मा किसके कंधों पर है, किसी को नहीं पता. क्योंकि यहां बीयर बार चलाने और प्रापर्टी कारोबारी सचिन दत्ता से सच्चिदानंद बने महामंडलेश्वर तक कई नाम है. गाजियाबाद के रहने वाले सचिन दत्ता 2015 में ममता कुलकर्णी की तरह अचानक महामंडलेश्वर बने थे, लेकिन बाद में उनकी भी उपाधि को निरस्त करने की नौबत आई.

महामंडलेश्वर बनी मंदाकिनी और राधे मां के किस्से जग जाहिर है. वैसे भोग विलास के जीवन एवं अपराधिक प्रवृति को  त्याग कर भक्ति मार्ग अपनाने वाले कई महापुरुषों के घटनाक्रम मिलते हैं, लेकिन इस राह को अपनाने के बाद उन्होंने जो किया, वह युग और सदियां बीतने के बाद भी याद रखा जा रहा है. मोह माया  कोत्याग दो और हमारे पास रख दो, क्या यह प्रवृति उचित दिशा में है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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