Opinion: महाकुंभ को लेकर सरकार के दावों में फर्क, अव्यवस्था बनी भगदड़ की वजह

कुंभ मेले के लिए प्रयागराज जा रहे श्रद्धालुओं की नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ के चलते शनिवार-रविवार की रात मौत की खबर ने झकझोर कर रख दिया. इस हादसे को देखकर ऐसा लगता है कहीं न कहीं प्रशासन के स्तर पर या सरकार के स्तर पर जरूर कोई कमी रही है.
भले ही उत्तर प्रदेश की सरकार ने बहुत अच्छी व्यवस्था का ऐलान किया, हर समय ये सूचना दी गई कि पर्याप्त जगह है और करीब 12 किलोमीटर तक का रेंज बनाया गया, जहां अगर लाखों-करोड़ों लोग आएंगे तो उनको बहुत दिक्कत नहीं होगी. इसके बावजूद जिस तरह से भीड़ प्रयागराज पहुंची, वहां की जगह कम पड़ गई, यहां तक की प्रयागराज शहर भी छोटा पड़ता दिखाई दिया.
इतने लोग पहुंच गए जिसकी शायद कल्पना भी आयोजकों और सरकार ने नहीं की होगी. वहां पर कई बार स्थिति संभाली गई और कई बार खराब हुई. कई बार टैंट में आग लगी, कई बार भगदड़ मची और कई लोगों की मौत हो गई. कुंभ के दौरान 30 लोगों की मौत सरकारी आंकड़ों के हिसाब से है, हालांकि ये और भी बढ़ सकता है. आस्था के हिसाब से देखा जाए तो बिल्कुल ठीक है कि जो लोग कुंभ नहाने जा रहे हैं, वे जाएं. लेकिन उन श्रद्धालुओं को भी तो अपनी जान का ख्याल रखना होगा.
जब ये देखा जा रहा है कि ट्रेनों में काफी भीड़ हो रही है, धक्का-मुक्की की घटना सामने आ रही है. ऐसे में लोगों को भी ये देखना चाहिए था कि अगर भीड़ ज्यादा है तो वे उस दिन को परहेज करें और किसी दूसरे दिन जाएं. यानी, लोगों को भी शिक्षित करने की जरूरत है.
लोगों को हो जरूरी जानकारी
जब सरकार की तरफ से प्रचार-प्रसार किया जा रहा होता है तो उस समय एक एहतियात भी दिया जाना आवश्यक है कि उन्हें कैसे पहुंचना है और क्या कुछ करना है. इंतजाम के बारे में भी उसमें जिक्र होना चाहिए. लोगों में भी इस बात का धैर्य होना चाहिए कि हम एक व्यवस्थित ढंग से पूरी चीजों को करें.
नई दिल्ली स्टेशन पर भीड़ वाली स्थिति रोज के दिनों में भी वैसी ही देखने को मिलती है. ऐसे में वहां की सुरक्षा व्यवस्था और जनरल बॉगी या फिर किसी और बॉगी में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कोई भी प्रशिक्षित लोग नहीं हैं. दिल्ली की बात करें तो नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली, आनंद विहार और निजामुद्दीन इन चारों स्टेशन पर लोड है. जबकि ऐसी कंडीशन में जब स्पेशल गाड़ियां चलाई जा रही हैं तो फिर भीड़ कम करने के लिए छोटे स्टेशनों का प्रयोग किया जा सकता है.
छोटे स्टेशनों का हो इस्तेमाल
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अंदर लगभग 7 से 8 छोटे स्टेशन हैं, जैसे- किशनगंज, शकूरबस्ती, शिवाजी ब्रिज, तिलक ब्रिज. ऐसे कई स्टेशन हैं, जहां पर स्पेशल गाड़ियां चलाकर किसी एक स्टेशन पर होने वाली भीड़ को कम किया जा सकता है. ये सब रेलवे को देखना चाहिए था.
हालांकि, ये हो सकता है कि रेलवे ने ऐसी उम्मीद न की होगी कि इतनी ज्यादा भीड़ हो जाएगी. गाड़ी जब कैंसिल करते हैं या फिर प्लेटफॉर्म में बदलाव करते हैं, तो ऐसी स्थिति में टाइमिंग का ध्यान रखना जरूरी है. क्योंकि एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर पहुंचने में लोगों को वक्त लगता है. उस हिसाब से गाड़ी का एनाउंसमेंट उस टाइम को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए. ये वैसी कमियां हैं जो नई दिल्ली स्टेशन पर देखने को मिली है.
यानी भीड़ प्रबंधन पर काम हो, सुरक्षा की जिम्मेदारी रेलवे पुलिस ढंग से करे. रेलवे का पूरा प्रबंधन देखे कि वो कैसे संचालित कर सकते हैं. दूसरी एक चीज ये भी देखने को मिली कि जो लोग दिल्ली से कानपुर होते हुए कुंभ हैं, उन्हें 24 किलोमीटर का लंबा-लंबा जाम देखने को मिला है. लोग कभी 15 घंटे तो कभी 24 घंटे उस जाम में फंसे रहे. ऐसे लोगों के लिए भी एक मैसेज ये होना चाहिए कि वे ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन का ही इस्तेमाल करें.
गाड़ियों से ही हर जगह पर जाने का प्रयास ना करें क्योंकि रोड की भी अपनी एक सीमा है. बेहतर होता अगर लोग बस या ट्रेन का इस्तेमाल करते. जो लोकल गाड़ियों की भीड़ है या जाम है उससे बच सकते थे. बनारस, बिहार, बंगाल या उड़ीसा की तरफ से आने वाले ज्यादातर लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग कर रहे है. उस तरफ के लोगों की कम भीड़ देखी गई.
ऐसे में सरकार जब ऐसे आयोजन करती है तो उसे थोड़ा समय बढ़ाना चाहिए.दूसरा जब प्रचार प्रसार कर रहे हो तब वहां कितने लोग प्रतिदिन पूछेंगे और कितने लोगों को वहां पर संभालने की व्यवस्था है, उतने ही लोगों को वहां पर पहुंचने दीजिए. कहने का मतलब ये है कि प्रयागराज में एंट्री कर रहे लोगों को चेक एंड बैलेंस किया जाता. उदाहरण के तौर पर किसी खास दिन जब भीड़ का अंदेशा हो तब उस दिन उसी हिसाब से लोगों की एंट्री दी जाती और वहां से लोगों की निकासी का भी उचित प्रबंध किया जाता.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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