आर्थिक संकट के प्रभाव को कम करने की प्रक्रिया में श्रीलंका, भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने में जुटा है. इस कड़ी में श्रीलंका की ओर से पिछले कुछ महीनों से एक सकारात्मक पहल की कोशिश हो रही है. उस पहल का संबंध करीब 36 साल पुराने 13वें संविधान संशोधन से है.
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने 9 अगस्त को श्रीलंकाई संसद में इस मसले पर एक बयान दिया है. उसमें श्रीलंकाई राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने कहा है कि वे 13वें संविधान संशोधन को पूरी तरह से लागू करेंगे. इसके जरिए उन्होंने केंद्र सरकार के कामकाज की शक्तियों को घटाकर प्रांतीय परिषदों की व्यवस्था को ज्यादा सार्थक और प्रासंगिक बनाने की बात कही है.
13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करेगा श्रीलंका
श्रीलंकाई राष्ट्रपति का संसद में ये ऐलान वहां रहे तमिल समुदाय के लोगों के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही भारत के लिए भी इसका कूटनीतिक महत्व है. श्रीलंकाई संसद में राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने कहा कि वहां कोई भी दल 13ए संशोधन के खिलाफ नहीं है. उन्होंने तमाम राजनीतिक दलों से इस मसले पर अपने-अपने प्रस्ताव देने की अपील की है, जिससे संसद को अंतिम फैसला करने में आसानी हो.
13वें संविधान संशोधन से है भारत का जुड़ाव
इस संविधान संशोधन से भारत का सीधा जुड़ाव है. हम सब जानते हैं कि श्रीलंका को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी 4 फरवरी 1948 को मिली थी. यानी भारत की आजादी के साढ़े 5 महीने से बाद श्रीलंका भी आजाद हुआ था. उसके बाद से ही वहां दो प्रमुख समूह सिंहली और तमिल के बीच तनाव किसी न किसी रूप में मौजूद रहा है. चूंकि सिंहली समुदाय वहां का प्रमुख एथनिक ग्रुप है और उसके बाद तमिल समुदाय का नंबर आता है. आजादी के बाद से सिंहली समुदाय अपना प्रभुत्व जमाने में लग गया था. 1972 में देश का नाम Ceylon से श्रीलंका कर दिया. साथ ही बौद्ध धर्म को राष्ट्र का प्राथमिक धर्म बना दिया.
सिंहली और तमिल समुदाय के बीच संघर्ष
1972 के बाद से जातीय तनाव तेजी से बढ़ने लगा. तमिल समुदाय के लोगों की संख्या श्रीलंका के उत्तरी पूर्वी हिस्से में ज्यादा थी. 1976 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन के नेतृत्व में एलटीटीई का गठन हुआ. उसने उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में तमिल मातृभूमि के लिए अभियान शुरू किया. जाफना प्रायद्वीप में लिट्टे का प्रभुत्व बन गया था. हिंसा का एक लंबा दौर चला.
जुलाई 1987 में भारत-श्रीलंका के बीच शांति समझौता
तमिल संवेदना और राष्ट्रीय हितों की वजह से भारत, श्रीलंका में हिंसा को लेकर चिंतित था. श्रीलंकाई गृह युद्ध से भारत की एकता और क्षेत्रीय अखंडता को खतरा पैदा हो सकता था. इसलिए भारत का दखल उस वक्त अपरिहार्य हो गया था. 29 जुलाई 1987 को भारत-श्रीलंका के बीच एक शांति समझौता होता है. कोलंबो में इस पर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उस वक्त के श्रीलंकाई राष्ट्रपति जे.आर. जयवर्धने हस्ताक्षर करते हैं. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1987 में श्रीलंका में शांति बहाली उपायों के तहत भारतीय सेना को भेजा.
पीस अकॉर्ड के तहत 13वां संविधान संशोधन
इसी पीस अकॉर्ड के तहत श्रीलंका में 13वां संविधान संशोधन (13ए) और 1987 के प्रांतीय परिषद अधिनियम लाया गया. इसका मकसद श्रीलंकाई गृह युद्ध का समाधान निकालना था. हालांकि शांति बहाली के भारतीय प्रयासों को उस मुताबिक सफलता नहीं मिली. कई भारतीय सैनिकों की वहां जानें भी गई. शांति सेना भेजे जाने से लिट्टे भारत के खिलाफ हो गया था. बाद में इसी का नतीजा था कि 21 मई 1991 को राजीव गांधी की जान श्रीपेरंबदूर के चुनावी जनसभा में बम विस्फोट कर ले ली जाती है.
1978 के संविधान के तहत, श्रीलंका में एकात्मक सरकार थी, जिसकी सारी शक्तियां केंद्र के हाथों में थीं. भारत-श्रीलंका पीस अकॉर्ड के बाद श्रीलंकाई संसद से 14 नवंबर 1987 को 1978 के श्रीलंकाई संविधान से जुड़ा 13वां संशोधन पारित होता है. इसके साथ ही प्रांतीय परिषद कानून, 1987 को भी मंजूरी मिलती है.
प्रांतीय परिषद बनाकर सत्ता का विकेंद्रीकरण
13वें संशोधन का मकसद प्रांतीय परिषद बनाकर सत्ता का विकेंद्रीकरण करना था. इसके तहत 9 प्रांत बनाए गए. साथ ही उत्तरी और पूर्वी प्रांतों को अस्थायी तौर से आपस में मिला दिया गया. श्रीलंका में प्रांतीय परिषदें बनाने के साथ ही संशोधन का मकसद सिंहली के साथ तमिल को भी राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता देना था. केंद्र से कम करके शक्तियों को प्रांतों को देना इसका सबसे अहम पहलू था. भूमि, पुलिस, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, आवास और वित्त पर अधिकार प्रांतों को सौंपना था.
सिंहली समुदाय की ओर से 13वें संशोधन का विरोध
एक अनुमान के मुताबिक श्रीलंका में करीब 75 फीसदी सिंहली और 11 फीसदी श्रीलंकाई तमिल हैं. सिंहली समुदाय की ओर से इसका कड़ा विरोध किया गया. इस समुदाय का कहना था कि इससे देश की एकात्मक ढांचा कमजोर होगा. मुस्लिम समुदाय उत्तरी और पूर्वी प्रांतों के विलय के विरोध में थे. 13वें संशोधन के हिसाब से उत्तरी और पूर्वी प्रांतों का विलय कर दिया गया था. लेकिन 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें अलग कर दिया.
भारत लागू करने के लिए बनाता रहा है दबाव
13वें संशोधन को करीब 36 साल होने जा रहा है, इसके बावजूद संशोधन को पूरी तरीके से श्रीलंका में लागू नहीं किया गया. 9 प्रांतीय परिषदों के चुनाव 2008 से नहीं हुए हैं. भारत लगातार इस संशोधन को लागू करने के पक्ष में रहा है. श्रीलंका पर इसके लिए कूटनीतिक तरीके से दबाव भी बनाता रहा है. श्रीलंका में तमिल समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव और राजनीतिक अधिकारों से वंचित करने का मुद्दा भी भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों को वो पहलू है, जिससे बीच-बीच में कड़वाहट पैदा होते रहता है. श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक स्वायत्तता की मांग काफी पुरानी है.
आर्थिक संकट के वक्त भारत की ओर से मदद
पिछले साल श्रीलंका अपने इतिहास से सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा था. उस संकट से निकलने में भारत ने श्रीलंका से खूब मदद की. इसी बीच जुलाई में रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के राष्ट्रपति बनते हैं और देश को आर्थिक संकट के प्रभाव से निकालने में जुट जाते हैं. इस कड़ी में उनकी प्राथमिकता भारत के साथ संबंधों को बेहतर करने को लेकर होती है. बीच में चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों की वजह से श्रीलंका का संबंध भारत से उतना अच्छा नहीं रहा था. चीन को हम्बनटोटा बंदरगाह लीज पर देने के फैसले और फिर श्रीलंका में चीन के बढ़ते निवेश और प्रभुत्व के कारण पिछले एक दशक में भारत-श्रीलंका के बीच रिश्ते उतने प्रगाढ़ नहीं रह गए थे.
हालांकि 2022 में श्रीलंका को आर्थिक दुश्वारियों का सामना करना पड़ा और हमेशा की तरह पड़ोसी देश भारत ने उस संकट से उबारने में बढ़-चढ़कर सहायता की. भारत ने अलग-अलग तरीकों से श्रीलंका को करीब 4 अरब डॉलर की मदद की है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेने में भी मदद कर रहा है. इस बीच चीन से भी श्रीलंका का धीरे-धीरे मोह भंग हुआ. चीन ने श्रीलंका को अपने कर्ज के मकड़जाल में जकड़ लिया था.
राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का सकारात्मक रवैया
जुलाई 2022 में राष्ट्रपति बनने के बाद से ही रानिल विक्रमसिंघे ने 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने को लेकर प्रयास शुरू कर दिए थे. दिसंबर 2022 में तमिल नेशनल अलायंस (TNA) के साथ बातचीत शुरू कर दी थी. इस साल जनवरी के आखिर में ही उन्होंने सभी दलों के नेताओं को जानकारी दे दी थी कि कैबिनेट संविधान में 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने के लिए सहमत है. रानिल विक्रमसिंघे ने पिछले कुछ महीनों में इस संशोधन को पूरी तरह से लागू करने को लेकर जो रवैया दिखाया है, उसके पीछे एक बड़ा कारण भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने की चाहत भी है. उन्होंने श्रीलंका के राजनीतिक दलों को ये संदेश दे दिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करके ही मानेंगे.
जुलाई में भारत आए थे श्रीलंकाई राष्ट्रपति
श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे 20 और 21 जुलाई को भारत दौरे पर आए थे. उस वक्त भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नई दिल्ली में इस मसले पर भी बातचीत हुई थी. द्विपक्षीय वार्ता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरोसा जताया था कि श्रीलंका सरकार तमिलों की आकांक्षाओं को पूरा करेगी और समानता, न्याय और शांति के लिए पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी. पीएम मोदी ने ये भी भरोसा जताया था कि श्रीलंकाई सरकार तेरहवें संशोधन को लागू करने और प्रांतीय परिषद का चुनाव कराने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करेगी ताकि श्रीलंका के तमिल समुदाय के लिए सम्मान और गरिमा की जिंदगी सुनिश्चित हो सके.
संबंधों को प्रगाढ़ता लाना चाहते हैं विक्रमसिंघे
अब भारत की यात्रा के चंद दिनों बाद ही श्रीलंकाई राष्ट्रपति की ओर से वहां की संसद में 13वें संविधान संशोधन को पूरी तरह से लागू करने को लेकर विशेष बयान दिया जाता है. इसको भारत की यात्रा से निकले सकारात्मक परिणाम के तौर भी देखा जाना चाहिए. प्रांतीय परिषदों की शक्तियों पर श्रीलंकाई संसद में जल्द सहमति बन जाती है तो इन परिषदों के स्थगित चुनाव को कराए ही जाएंगे, साथ ही तमिल समुदाय की चिर लंबित मांग प्रांतीय स्वायत्तता की दिशा में ये बड़ा कदम होगा.
श्रीलंका का भारत के साथ लंबी साझेदारी पर ज़ोर
आर्थिक तरक्की के लिए भारत, श्रीलंका की कूटनीतिक जरूरत है. भारत जैसा भरोसेमंद दोस्त मिलना श्रीलंका के लिए संभव नहीं है. इस बात को रानिल विक्रमसिंघे के साथ ही पिछले दिनों श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने ने भी स्वीकार किया था. रानिल विक्रमसिंघे हाल में जब दिल्ली आए थे, तो उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ जो वार्ता हुई है, उससे भारत-श्रीलंका संबंधों के अगले 25 वर्षों की नींव रखी जाएगी. यानी श्रीलंका अब भारत के साथ लंबी साझेदारी को सुनिश्चित करना चाहता है. रानिल विक्रमसिंघे ने ये भी कहा था कि भारत की तरक्की पड़ोसी देशों के साथ ही पूरे इंडियन ओशन रीजन के लिए फायदेमंद है.
भारत के लिए है श्रीलंका का कूटनीतिक महत्व
भारत-श्रीलंका की लंबी और प्रगाढ़ साझेदारी के लिए जरूरी है कि 13वां संविधान संशोधन वहां पूरी तरह से लागू हो. जिस तरह से श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, ये भारत के लिए कूटनीतिक महत्व रखता है. हिन्द महासागर सामरिक और व्यापारिक नजरिए से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इस रीजन में श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति काफी अहम है. भारत के लिए श्रीलंका हिंद महासागर में सामरिक महत्व रखने वाला द्वीपीय देश है. चीन के हिन्द महासागर में आक्रामक और विस्तारवादी रुख को देखते हुए जरूरी है कि श्रीलंका में बीजिंग का प्रभुत्व कम हो. श्रीलंका को चीन के प्रभाव से बचाकर रखना भारत के लिए जरूरी है. भारतीय हितों के लिहाज से स्थिर, सुरक्षित और समृद्ध श्रीलंका बेहद जरूरी है. श्रीलंका से बेहतर होता संबंध तमिल मछुआरों की समस्या के स्थायी समाधान के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है.
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