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राष्ट्रपति की जीत का इतना भव्य जश्न मनाने के क्या हैं सियासी मायने?

राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद द्रौपदी मुर्मू अब 'महामहिम' कहलाने वाली पहली आदिवासी महिला होने के साथ ही 25 जुलाई को शपथ लेते ही देश की प्रथम नागरिक भी बन जायेंगी. बीजेपी के कई नेता अक्सर ये दावा करते रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच वहां से शुरु होती है, जहां विपक्ष की सोच खत्म हो जाती है. द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर बीजेपी ने देश को तो बड़ा संदेश दिया ही है लेकिन इसके जरिये पार्टी ने देश की आदिवासी आबादी में अपनी पैठ को किस कदर मजबूत किया है और इसका उसे किस हद तक सियासी फायदा मिलने वाला है, वो आने वाले दिनों में सबके सामने होगा. शायद इसीलिए बीजेपी ने राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा आने से हफ़्ते भर पहले ही ये एलान कर दिया था कि देश के 1 लाख 30 हजार आदिवासी गांवों में पार्टी द्रौपदी मुर्मू की जीत का जश्न मनाएगी.

जीत की औपचारिक घोषणा होने से पहले ही दिल्ली में बीजेपी ने रोड शो निकालकर इसका आगाज भी कर दिया. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब राजधानी की सड़कों पर राष्ट्रपति की जीत का जश्न इस तरह से मनाया गया हो. इस जीत को एक बड़े इवेंट में तब्दील करके बीजेपी ने आदिवासियों का भरोसा जीतने का मास्टरस्ट्रोक खेला है. दरअसल, बीजेपी मुर्मू की जीत का संदेश देश के कोने-कोने में पहुंचाए जाने के साथ ही उन लोगों तक पूरे तामझाम के साथ पहुंचाना चाहती है जिनका प्रतिनिधित्व द्रौपदी मुर्मू करती हैं. इसीलिए सवा लाख आदिवासी बहुल गांवों में मुर्मू के जीत का जश्न मनाया जाएगा.

यही नहीं, पार्टी नेताओं को ये भी निर्देश दिए गए हैं कि पोस्टर पर केवल मुर्मू की ही तस्वीर लगाई जाये.ऐसा पहली बार ही होगा, जब बीजेपी के किसी कार्यक्रम में पीएम मोदी की बजाय सिर्फ राष्ट्रपति की ही तस्वीर होगी. दरअसल, इस जश्न के जरिये ही बीजेपी उन आदिवासी बहुल इलाकों में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की तैयारी में जहां अभी तक वह खुद को कमजोर महसूस करती आई है. और, उसका सियासी फायदा उठाने की शुरुआत इस साल के अंत से हो जायेगी. दिसंबर में गुजरात विधानसभा के चुनाव हैं जहां आदिवासियों की आबादी करीब 15 फीसदी है. आदिवासी समुदाय के लिए सुरक्षित सीटों पर अब तक कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा है, लिहाजा इस जश्न के जरिये बीजेपी उस गढ़ को तोड़ने की कोशिश में है.

उसके बाद अगले साल छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होने हैं. छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक यानी 30 फीसदी से ज्यादा आदिवासी आबादी है,तो वहीं मध्यप्रदेश में 21 और राजस्थान में उनकी संख्या करीब साढ़े 13 प्रतिशत है. उधर, झारखंड में देखें,तो वहां 26 फीसदी तो ओडिशा में 23 और महाराष्ट्र में 11 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या है. 

इनके अलावा मणिपुर व त्रिपुरा में भी आदिवासी समुदाय का अच्छा खासा असर है, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा के चुनाव एक तरह का सेमी फाइनल होंगे. ऐसे में द्रौपदी मुर्मू की जीत का इतना भव्य जश्न मनाना आदिवासी समुदाय को लुभाने का बड़ा दांव साबित हो सकता है.

दरअसल,अभी तक बीजेपी के पास कोई ऐसा आदिवासी चेहरा नहीं था जो देशभर में उसके पक्ष में प्रभाव पैदा कर सके. मुर्मू की राष्ट्रपति भवन में एंट्री होने के साथ ही बीजेपी की समस्या काफी हद तक हल हो जाएगी. राष्ट्रपति चुनाव के लिए कैंपेनिंग के दौरान मैदान से जो तस्वीरें सामने आई हैं उससे भी पार्टी जरूर खुश होगी क्योंकि छत्तीसगढ़ और झारखंड में कई घरों के सामने द्रौपदी मुर्मू की तस्वीर देखने को मिलीं थीं.

इसके अलावा महत्वपूर्ण ये भी है कि लोकसभा चुनाव में करीब 60 लोकसभा सीटों पर आदिवासी समुदाय का खासा असर है. हालांकि लोकसभा में 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है लेकिन करीब 13 सीटें ऐसी हैं जहां पर आदिवासी समुदाय सीधा असर डालता है. इसलिए भी इस जश्न का बहुत बड़ा सियासी मतलब है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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