राष्ट्रपति चुनाव: इस बार पीएम मोदी किसे पहुंचाएंगे फर्श से अर्श पर?
महज़ दो महीने बाकी हैं, जब देश को एक नया राष्ट्रपति मिलने वाला है. वह कौन होगा? पुरुष ही होगा या कोई महिला होगी और उनका संबंध किस धर्म या जाति से होगा? ये सारे ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सिर्फ एक शख्स के पास है,जिसका लिया कोई भी फ़ैसला पिछले आठ सालों में कभी मीडिया में लीक नहीं हुआ. इसलिए सियासी गलियारों में ये सवाल तैर रहा है कि अपनी जापान यात्रा से लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस पद के लिए एनडीए की तरफ से ऐसे किस नाम का ऐलान करने वाले हैं, जो सबको चौंकाने वाला साबित होगा.
वैसे सियासी जगत में कई नामों पर कयास लगाए जा रहे हैं लेकिन पीएम मोदी की राजनीति व कार्य शैली को नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि जो नाम मीडिया में आ गया, समझ लो कि उसका पत्ता साफ हो गया. इसलिए फिलहाल तो सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी नहीं पता कि उनकी तरफ से अगले राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन होने वाला है.
हालांकि, इस दौड़ में फ़िलहाल चार नाम सामने आ रहे हैं जिनमें से तीन महिलाएं हैं. छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके, तमिलनाडु की राज्यापल तमिलिसाई सुंदरराजन और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के नाम पर कयास लगाए जा रहे हैं. चौथा नाम झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का भी लिया जा रहा है. हालांकि अगर इनमें से कोई भी राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनता है, तो पिछले आठ साल में ऐसा पहली बार होगा जबकि मीडिया में लगाई जा रही अटकलें सही साबित होंगी. लेकिन इसकी गुंजाइश बहुत कम है.
देश के मौजूदा राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल जुलाई में समाप्त होने वाला है. उन्होंने 25 जुलाई 2017 को भारत के 14वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की थी. अब इस तारीख से ठीक पहले देश के सांसदों और राज्यों के विधायकों को अपना 15 वां राष्ट्रपति चुनना है. बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए कौन सा नया चेहरा पेश करता है, ये तो अगले कुछ दिनों में सबके सामने होगा. लेकिन इस चुनाव के लिए विपक्षी खेमे में काफी खिचड़ी पक रही है.
दरअसल, ऐसी खबर है कि विपक्षी दल इसी हफ़्ते राष्ट्रपति चुनाव के लिए सामूहिक रूप से एक उम्मीदवार चुनने को लेकर बैठक कर सकते हैं ताकि एनडीए के उम्मीदवार को चुनौती दी जा सके. एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक विपक्षी नेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक में से किसी एक को संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन इस पूरी कवायद में टीआरएस सुप्रीमो और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की भूमिका बेहद अहम है ,जो सिलसिलेवार तरीक़े से विपक्षशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों व अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं.बताया जा रहा है कि संयुक्त विपक्ष इस पद के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर दांव लगाने के मूड में है.यही वजह है कि एनडीए को तोड़ने के मकसद से ही विपक्षी खेमे ने नीतीश कुमार के आगे ये प्रस्ताव रखा है कि अगर वे बीजेपी वाले सत्तारूढ़ गठबंधन से अलग हो जाते हैं, तो उन्हें राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है.फिलहाल नीतीश ने इसका कोई जवाब नहीं दिया है लेकिन बीजेपी से हाल के दिनों में उभरी उनकी तल्खियां किसी से छुपी नहीं हैं.पिछले दिनों रोज़ा इफ्तार की दावत में लालू प्रसाद यादव के बेटे और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के घर जाकर उन्होंने ये इशारा भी दे दिया है कि बिहार में अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए अब वे बीजेपी के रहमोकरम पर निर्भर नहीं रहने वाले हैं.
राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में जुटे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने शनिवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाक़ात की थी. केसीआर ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से भी दिल्ली में अलग से मुलाक़ात की.बताया जाता है कि दोनों से हुई इस मुलाकात में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार को अपना समर्थन देने के लिए आसानी से मना लिया है.हालांकि केसीआर की सीएम केजरीवाल से मिलने की वजह तो यही बताई गई कि उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले 738 किसानों को तीन लाख रुपये का मुआवज़ा देने की घोषणा की थी.लेकिन उनका बड़ा मकसद ये भी था कि देश के सर्वोच्च पद के लिए होने वाले इस चुनाव में विपक्ष की सियासी पिच को मज़बूत किया जाये. खबर ये भी है कि केसीआर इसी तरह कीदूसरी बैठक जनता दल (सेक्यूलर) के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा से बैंगलुरू में 26 मई को कर सकते हैं.
एनडीए के उम्मीदवार के नाम का अंतिम फैसला तो पीएम मोदी ही करेंगे लेकिन बीजेपी खेमे में एक थ्योरी ये भी चल रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टी इस पद के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित नेता या किसी महिला को उम्मीदवार बनाने के ऐलान कर सकती है.फिलहाल देश की कुल आबादी में ओबीसी और महिलाओं का ही सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व है. ओबीसी देश की कुल आबादी का 40 फीसदी से अधिक हैं, जबकि महिलाएं भारत की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं. प्रधानमंत्री मोदी कई मौकों पर कह चुके हैं कि महिलाएं भाजपा का नया वोटबैंक हैं. इसलिए बीजेपी के कुछ नेताओं को लगता है कि पार्टी इस पद के लिए या तो ओबीसी या महिला को नामित कर सकती है और हो सकता है कि किसी महिला-ओबीसी को ही मैदान में उतार दे. लेकिन फिलहाल ये सब अटकलबाजियां ही कही जाएंगीं क्योंकि कोई नहीं जानता कि झोले से निकलने वाली उस पर्ची पर किसका नाम लिखा होगा,जो उसे फर्श से अर्श पर ले जायेगा!
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)