(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
क्यों पृथ्वी शॉ में दिखती है थोड़ी थोड़ी सहवाग की झलक
इधर राजकोट में पृथ्वी शॉ ने अपना शतक ठोंका उधर सहवाग ने ट्विटर पर लिखा- ये शॉ का शो था. बधाई पृथ्वी शॉ, अभी तो बस शुरूआत है. लड़के में बहुत दम है. ये सिर्फ एक बधाई संदेश नहीं था. दरअसल पृथ्वी शॉ के खेल में शायद वीरेंद्र सहवाग को अपने अंदाज की झलकियां दिखाई दी होंगी.
इधर राजकोट में पृथ्वी शॉ ने अपना शतक ठोंका उधर सहवाग ने ट्विटर पर लिखा- ये शॉ का शो था. बधाई पृथ्वी शॉ, अभी तो बस शुरूआत है. लड़के में बहुत दम है. ये सिर्फ एक बधाई संदेश नहीं था. दरअसल पृथ्वी शॉ के खेल में शायद वीरेंद्र सहवाग को अपने अंदाज की झलकियां दिखाई दी होंगी. अपना स्वाभाविक खेल खेलना, गेंदबाज पर दबाव बनाना, आक्रामकता, हाई बैकलिफ्ट, मौका मिलते ही कट शॉट, बल्ले को नीचे से पकड़ना.
कितना कुछ तो था पृथ्वी शॉ के अंदाज में जो लोगों को वीरेंद्र सहवाग की याद दिला रहा था. इसीलिए सोशल मीडिया में लगातार लोग इस बात को लेकर चर्चा कर रहे थे. सहवाग पता नहीं खुद कितना इस बात को स्वीकार करेंगे लेकिन अगर एक बड़ा फर्क दिखाई दिया तो वो ये कि पृथ्वी शॉ अपने शॉट्स को लेकर सहवाग के मुकाबले ज्यादा ‘सेलेक्टिव’ दिखे. उनकी आक्रामकता में एक संतुलन दिखाई दिया. ये भी एक दिलचस्प संयोग है कि वीरेंद्र सहवाग ने भी अपने टेस्ट करियर की शुरूआत शतक के साथ ही की थी.
19 साल से भी कम के एक खिलाड़ी के लिए टेस्ट करियर की शुरूआत किसी भी मैदान पर किसी भी टीम के खिलाफ करना आसान नहीं होता. पृथ्वी शॉ के लिए भी नहीं था इसीलिए जब उन्होंने शतक लगाया तो उनके चेहरे पर अलग आत्मविश्वास था. ड्रेसिंग रूम में कप्तान विराट कोहली खड़े होकर उनके लिए ताली बजा रहे थे. बाद में विराट जब बल्लेबाजी करने आए तो उन्होंने दोबारा पृथ्वी शॉ को बधाई दी. पृथ्वी शॉ की इस उपलब्धि ने कॉमेंट्री कर रहे सुनील गावस्कर को अजीत वाडेकर की याद दिला दी. वैसे सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने पृथ्वी शॉ की बल्लेबाजी को वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज ब्रायन लारा की तरह भी बताया बशर्ते लारा दाएं हाथ से बल्लेबाजी करते.
खराब शुरूआत के बाद दिखाया दम
टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम की शुरूआत अच्छी नहीं रही. केएल राहुल को पहले ही ओवर में गैब्रिएल ने अपना शिकार बना लिया था. बावजूद इसके पृथ्वी शॉ ने किसी तरह का दबाव नहीं लिया. अगले ओवर में उनके ऊपर दबाव बनाने के लिए कीमो पॉल ने उन्हें पटका हुआ गेंद फेंका. टेस्ट करियर की शुरूआत किए अभी दस मिनट ही बीते थे लेकिन पृथ्वी शॉ ने गेंद को मेरिट पर खेलते हुए बाउंड्री के बाहर पहुंचाया.
चौथे ओवर में उन्होंने कीमो पॉल को दो चौके लगाए. इसके बाद पृथ्वी शॉ में वो आत्मविश्वास आता दिखा जो किसी भी खिलाड़ी को पहले टेस्ट मैच में चाहिए होता है. फिर चेतेश्वर पुजारा के साथ उन्होंने पूरी जिम्मेदारी के साथ बल्लेबाजी की. जल्दी ही 56 गेंद में पृथ्वी शॉ ने अपने टेस्ट करियर की पहली हाफसेंचुरी लगाई. लंच तक उन्होंने पुजारा के साथ मिलकर सूझबूझ भरी बल्लेबाजी की. इसके बाद 99 गेंद पर अपना शतक पूरा किया और हवा में बल्ला लहराया. इसके पहले रणजी ट्रॉफी और दलीप ट्रॉफी के पहले मैच में भी पृथ्वी शॉ ने शतक से ही शुरूआत की थी. इस शतक के साथ ही पृथ्वी शॉ अपने पहले टेस्ट मैच में सबसे कम उम्र में शतक बनाने वाले बल्लेबाज बन गए. साथ ही वो भारत के 15वें ऐसे खिलाड़ी हो गए जिन्होंने टेस्ट करियर की शुरूआत शतक से की. काम आई तेंडुलकर की सलाह
ये किस्सा पिछले कुछ समय से खूब चल रहा है. दरअसल, सचिन तेंडुलकर ने कई साल पहले पृथ्वी शॉ को बल्लेबाजी करते देखा था. उन्होंने पृथ्वी शॉ को सलाह दी थी कि वो अपना स्टांस और बल्ले को पकड़ने का तरीका कभी ना बदलें. सचिन जानते थे कि अक्सर क्रिकेट कोच नए बल्लेबाजों की स्टाइल में बदलाव कराते हैं इसलिए उन्होंने पृथ्वी शॉ को ये भी कहा था कि अगर कोई उन्हें ‘स्टांस’ या ‘ग्रिप’ बदलने को कहता है तो वो उसकी बात तेंडुलकर से करा देंगे. अपने पहले टेस्ट शतक में पृथ्वी शॉ ने किन किन बातों का ध्यान रखा ये तो कहना मुश्किल है. लेकिन अगर उन्हें टेस्ट क्रिकेट में लंबी रेस का घोड़ा बनना है तो उन्हें उस ‘प्रॉसेस’ को हमेशा ठीक रखना होगा जिसका जिक्र सचिन तेंडुलकर अक्सर किया करते थे.