रूस में प्राइवेट आर्मी वैगनर की बगावत 24 घंटे के अंदर थम गयी. बेलारूस के राष्ट्रपति ने रूस और वैगनर के मुखिया प्रिगोजिन के बीच संघर्षविराम करवाया. हालांकि, इस विद्रोह पर 24 घंटे के अंदर ही काबू पा लिया गया, लेकिन पुतिन की छवि को इससे गहरा आघात तो लगा ही है. सबसे अहम सवाल यह है कि जिस पुतिन को रूस सहित पूरी दुनिया में बहुत शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्ष माना जाता है, उनकी नाक के नीचे यह सब अगर होता रहा, तो फिर उनकी साख पर तो बट्टा लगेगा ही. 


वैगनर के मालिक का निशाना कहीं और था


बीते दो-तीन दिनों से रूस से ऐसी खबरें आ रही हैं कि तख्तापलट हुआ, होने की कोशिश हुई, कोशिश विफल हुई. अलग-अलग स्रोतों से अलग-अलग न्यूज आ रहा है. बेसिकली, अगर देखें तो वैगनर ग्रुप जो है, वह रूस का ऐसा समूह है, जो अंग्रेजी शब्द उधार लें तो मर्सेनरी (भाड़े के टट्टू) ग्रुप है. उसके जो मुखिया हैं प्रिगोजिन, उन्होंने ही यह विद्रोह का झंडा उठाया और मूलतः उनके निशाने पर रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु और रूसी सेना के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ वालेरी गेरासिमोव ही हैं. उन दोनों के खिलाफ उनके ज्यादातर बयान थे. इसमें दो बातें हैं. एक तो, प्रिगोजिन की इन दोनों से ही बिल्कुल नहीं बनती थी और यह बात रूस के राष्ट्राध्यक्ष भी जानते थे, वह भी इससे पूरी तरह वाकिफ थे.


रूस में भी यह काफी 'ओपन सीक्रेट' की तरह है. उन्होंने कई बार इन दोनों के तरीकों की आलोचना भी की थी और प्रिगोजिन ने यह भी कहा था कि अगर यूक्रेन जीतना है, तो युद्ध का तरीका सही नहीं है. यहां तक कि जब प्रिगोजिन रूस की तरफ बढ़ रहे थे, तो भी उन्होंने कहा था कि वह तो यूक्रेन युद्ध को बर्बाद करनेवाले 'जोकर्स' से मोर्चा लेने जा रहे हैं. तो, शब्दों का युद्ध चल ही रहा था. इस बीच रूस के रक्षा मंत्रालय की तरफ से एक नोटिस भी आया था, उसमें कहा गया था कि जितनी भी प्राइवेट आर्मी है, जो यूक्रेन में लड़ रही हैं, उन सबको रूसी सेना के तहत लाना था. प्रिगोजिन इस बात के लिए तैयार नहीं थे, वह अपनी आर्मी को प्राइवेट ही रखना चाहते थे. यह तो तात्कालिक कारण था. 



लुकाशेंको हैं पुतिन और प्रिगोजिन के खास 


23 जून को रूसी सेना ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तो उसमें वैगनर के भी कुछ सैनिक मारे गए. यह वैगनर के विद्रोह का बिल्कुल इमीडिएट कॉज माना जाता है. इसीलिए, सबसे पहले उन्होंने रस्तोवा हेडक्वार्टर पर कब्जा किया और तब मॉस्को की तरफ बढ़ रहे थे. वहीं पर जब उन्होंने अपना संबोधन भी दिया था, तो यही कहा था कि शोइगु और गेरासिमोव दोनों को ही उनके हवाले कर देना चाहिए. एक बात गौर करने की है कि उन्होंने पुतिन के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला. वह लगातार शोइगु और गेरासिमोव की ही चर्चा करते रहे. एक और गौर करनेवाली बात है कि जब प्रिगोजिन मॉस्को की ओर बढ़ रहे थे, तभी पुतिन ने भी राष्ट्र के नाम अपना संबोधन दिया था, जिसमें उन्होंने प्रिगोजिन का नाम नहीं लिया, लेकिन इन एक्शन को ट्रेजन यानी देशद्रोह बताया. इन सब चीजों के होने और घटने के दौरान ही एक बात आयी कि बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको ने पुतिन और प्रिगोजिन से बात करके संकट को टाल दिया है, सुलह हो गयी है. इसकी वजह ये है कि लुकाशेंको दोनों ही के बहुत पुराने मित्र माने जाते हैं.


राष्ट्रपति पुतिन के साथ तो उनकी घनिष्ठ मित्रता और दोस्ती को पूरी दुनिया जानती है. इसके साथ ही अब यह बात भी साफ हो गयी है कि प्रिगोजिन भी उनके खास दोस्त हैं. यह जो बातचीत हुई है, पुतिन और प्रिगोजिन की, वह लुकाशेंको की मध्यस्थता की वजह से ही हुई है. इसमें जो बातें तय हुईं, उसमें तीन मुख्य बातें सामने आयी हैं. पहली तो यह कि प्रिगोजिन पर जो भी देशद्रोह या आपराधिक षडयंत्र के मामले थे, वे खत्म हो गए. दूसरा, वे अब बेलारूस जा सकते हैं. तीसरे, भले ही वैगनर ग्रुप को डिस्बैंड कर दिया जाए, लेकिन जो भी सैनिक इसमें इनवॉल्व थे, उनको कोई सजा नहीं मिलेगी. तीसरे, वैगनर ग्रुप के जिन सैनिकों ने विद्रोह में हिस्सा नहीं लिया, उनके लिए तो यह भी ऑफर है कि वे चाहें तो रूसी सेना को जॉइन कर सकते हैं. 



सब कुछ के बावजूद, पुतिन अब भी शक्तिशाली


सबसे पहली बात जो हमें ध्यान रखनी चाहिए कि राष्ट्रपति पुतिन बहुत शक्तिशाली हैं. उनकी नाक के नीचे आखिर ये सब चीजें हो कैसे रही थीं? वह जानते थे कि प्रिगोजिन नाराज हैं और शायद वह उनकी 'न्यूसेंस वैल्यू' को ठीक से आंक नहीं सके. तीसरा, एक सिद्धांत यह भी आ रहा है कि ये सब कुछ पुतिन का ही किया-धरा है. एक सिद्धांत तो यह भी आ रहा है कि शोइगु और गेरामिसोव को हटाने के लिए ये सब पुतिन की सहमति से हुआ. हालांकि, इसका काउंटर भी आ जाता है कि अगर पुतिन इतने शक्तिशाली हैं तो उनको इस नाटक की क्या जरूरत, वो तो किसी को भी हटा सकते हैं. इससे पुतिन की इमेज तो काफी खराब हुई है, फिर पुतिन खुद ऐसा कुछ क्या करा सकते हैं? रूस में पुतिन के जो समर्थक हैं, वे अब भी इसी बात से खुश हैं कि बिना किसी खूनखराबे को उन्होंने इतना बड़ा संकट टाल दिया. मॉस्को में बिजनेस एज युजुअल था और रूस की एक बड़ी आबादी इसी बात की समर्थक है. हालांकि, एक तबका है जो यह भी सोचता है कि रूस अभी युद्ध में है और डेढ़ साल बाद भी यूक्रेन के साथ उनका युद्ध खत्म नहीं हुआ है. अभी तो दोनों तरह की बातें आ रही हैं कि पुतिन की छवि को धक्का भी पहुंच सकता है, उनकी छवि को फायदा भी मिल सकता है. पूरे नतीजे तो कुछ दिनों बाद ही दिखेंगे. 


राष्ट्राध्यक्ष पुतिन उन लोगों में हैं, जो बहुत चिंता नहीं करते इमेज की. वह वैश्विक मीडिया पर भी बहुत दिमाग नहीं लगाते, वह अपने लक्ष्य की ओर काम करते जाते हैं. यूक्रेन में तीन लाख के करीब सैनिक हैं रूस के. वैगनर के केवल 25 से 30 हजार लड़ाके हैं. हां, यह जरूर है कि वैगनर के लड़ाके बहुत प्रशिक्षित थे और इसलिए वे बहुत ढंग से काम करते थे. उनको हटाने से थोडा असर तो युद्ध पर भी पड़ेगा ही. हां, लंबे समय में पुतिन को भी फर्क तो पड़ेगा, उनको क्षति पहुंचेगी. 



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