पंजाब में क्या नया जरनैल सिंह भिंडरावाला पैदा हो गया है?
पाकिस्तान समेत विदेशों में मौजूद कुछ सिख संगठन पंजाब को क्या दोबारा उग्रवाद की आग में धकेल रहे हैं? सरबत दा भला चाहने वाली गुरबाणी की गूंज से हमेशा सरोबार रहने वाले अमृतसर में गुरुवार को हिंसा का जो तांडव देखने को मिला है, वह बताता है कि अलग खालिस्तान की मांग करने वाले तत्वों ने अपनी ताकत का अहसास कराने की शुरुआत कर दी है. अपने एक साथी को पुलिस की गिरफ्त से छुड़ाने के लिए "वारिस पंजाब दे" संगठन के मुखिया अमृतपाल सिंह ने जिस हिंसक तरीके से प्रशासन को घुटने टेकने पर मजबूर किया है, वह आने वाले बड़े खतरे का अलार्म है.
बेशक कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है लेकिन पंजाब को चार दशक पुराने जिस हालात की तरफ ले जाने की साजिश हो रही है, वह केंद्र सरकार के लिए भी चिंताजनक स्थिति है जिसे बेहद गंभीरता से लेना होगा. 90 के दशक की शुरुआत में पंजाब से आतंकवाद का पूरी तरह से सफाया हो जाने के बाद ये पहली ऐसी घटना है, जिसमें खालिस्तान की आवाज उठाने वाले हजारों समर्थकों ने तलवारों व बंदूकों से लैस होकर न सिर्फ पुलिस थाने का घेराव किया, बल्कि छह पुलिसकर्मियों को जख्मी भी कर दिया. आखिरकार इस पूरे बवाल को शांत करने के लिए पुलिस को ये आश्वासन देना पड़ा कि अमृत पाल के साथी को कल रिहा कर दिया जाएगा.
पहले तो ये जान लेना जरूरी है अमृत पाल सिंह है कौन जो जरनैल सिंह भिंडरावाले के नक्शे-कदम पर चलते हुए सरकारों के लिए एक बड़ा खतरा बनने जा रहा है. अमृतसर जिले के जल्लूपुर खेड़ा गांव के एक साधारण सिख परिवार में जन्मा यह शख्स 10 साल पहले कामकाज के सिलसिले में दुबई चला गया था, लेकिन पिछले साल वहां से लौटते ही उसने सबसे पहले तो 'वारिस पंजाब दे' संगठन की कमान संभाली जिसका गठन पंजाबी अभिनेता और किसान आंदोलन में बड़ा चेहरा बनकर उभरे संदीप सिंह उर्फ दीप सिद्धू ने की थी. वही सिद्धू जिसने किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी 2021 को अन्य किसानों के साथ लाल किला में घुसपैठ कर ली थी और उसकी प्राचीर पर खालसा पंथ का निशान साहिब (झंडा) लगाने की कोशिश की थी. दीप सिद्धू की बीते साल 15 फरवरी को हरियाणा के सोनीपत में दिल्ली से पंजाब जाते समय एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी.
लिहाज़ा, उसके संगठन की कमान संभालते ही धीरे-धीरे खालिस्तान की मुहिम को हवा देनी शुरू कर दी. पिछले साल अक्टूबर में पंजाब के विभिन्न शहरों में सरकारी दफ्तरों के बाहर 'खालिस्तान जिंदाबाद' के नारे लिखने से इसकी शुरुआत हुई और फिर उसने सरकार के खिलाफ भड़काऊ बयान देकर एक कट्टरपंथी नेता के रुप में अपनी पहचान बना ली, ताकि सूबे के ज्यादा से ज्यादा युवाओं को इस आंदोलन के साथ जोड़ा जा सके. विकिपीडिया के मुताबिक, वह सिख धर्म के प्रसार के लिए अमृत संचार अभियान चलाता है. बीते दिनों अमृतसर में भी उसने एक और बड़ा अमृत प्रचार अभियान चलाया था, जिसमें 1,027 सिखों और हिंदुओं ने अमृतपान किया था और वे खालसा सिख बने थे. हालांकि सिख धर्म में अमृतपान को सबसे पवित्र माना जाता है लेकिन इतिहास गवाह है कि 80 के दशक के शुरुआती दौर में भिंडरावाले ने भी ऐसे ही अमृत पान की आड़ में कब सैकड़ों नौजवानों के हाथों में बंदूक थमा दी थी, इसका पता जून 1984 में हुए आपरेशन ब्लू स्टार के बाद ही पता लगा था. तब स्वर्ण मंदिर को उग्रवादी तत्वों से मुक्त कराने के लिए इंदिरा गांधी को वहां सेना भेजनी पड़नी थी, जिसकी कीमत उन्हें चार महीने बाद ही अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी.
अमृत पाल सिंह के तेवरों से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे किस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. उसने हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को परोक्ष रूप से धमकी दी थी. बीती 19 फरवरी को पंजाब के मोगा जिले के बुद्धसिंह वाला गांव में उसने इसी तरह का संकेत दिया था. न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक अमृतपाल सिंह ने तब अपने बयान में कहा था, "अमित शाह ने कहा था कि खालिस्तान आंदोलन को नहीं बढ़ने देंगे. तब मैंने जवाब दिया था कि इंदिरा गांधी ने भी ऐसा ही किया था और अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको नतीजे भुगतने होंगे. अगर गृह मंत्री 'हिंदू राष्ट्र' की मांग करने वालों से यही कहते हैं तो मैं देखूंगा कि क्या वह एचएम बने रहते हैं." हालांकि उसकी दलील ये भी है कि हम खालिस्तान के मामले को बहुत ही शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं. जब लोग हिंदू राष्ट्र की मांग कर सकते हैं तो हम खालिस्तान की मांग क्यों नहीं कर सकते. हमें कोई नहीं रोक सकता, चाहे वह पीएम मोदी हों, अमित शाह हों या भगवंत मान. मुझ पर और मेरे समर्थकों पर लगाए गए आरोप झूठे हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)