Raj Ki Baat: पंजाब में किसान होंगे बीजेपी के खेवनहार ?
Punjab Assembly Election 2022: सियासत में हमेशा आगे बढ़ना ही फायदेमंद नहीं होता. कई बार पीछे हटकर या हारा हुआ दिखकर भी जंग जीती जाती है. अभी चंद दिनों पहले तक जिस पंजाब में बीजेपी के लिए चुनाव लड़ पाने तक पर सवाल थे..वो अब वहां पर बड़ा खेल करने में लग गई है. खास बात ये कि जिस किसान आंदोलन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झुकने को मजबूर कर दिया..उसी आंदोलन के चेहरे और रणनीतिकार अब पंजाब में बीजेपी की उम्मीदों के खेवनहार बनने जा रहे हैं. राज की बात...बीजेपी के पंजाब में नई ताकत के रूप में उभरने और सारे समीकरण ध्वस्त करने के प्लान पर...
जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों किसान कानून वापस लिए थे तो उस समय आंदोलनकारियों से लेकर विपक्ष तक में जश्न मना था. किसी ने इसे संघर्ष और सत्य की जीत करार दिया तो किसी ने अहंकार चूर होने की बात कही. मोदी के बारे में जो छवि थी कि वो फैसला वापस नहीं लेते, वह टूटी. कानून वापस लेते समय पीएम मोदी ने अपनी विवशता जताई भी कि देशहित में कानून लाए थे और देशहित में ही वापस भी ले रहे हैं. उन्होंने माना कि वह किसानों को समझा नहीं पाए. यहां ये समझना जरूरी है कि मोदी ने ये फैसला भी ये मुतमईन होने के बाद ही लिया था कि कृषि कानूनों की वापसी के बाद आंदोलन खत्म हो जाएगा.
हालांकि, एक-दो गुटों ने किसान आंदोलन MSP और अन्य मुद्दो पर जारी रखने की पैरवी की, लेकिन ये प्रबंधन सरकार पहले ही कर चुकी थी. राज की बात इसी प्रबंधन के साथ पंजाब के सियासी समीकरणों को प्रभावित करने की. दरअसल...बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के साथ गठबंधन तो तय ही कर लिया है, लेकिन किसान आंदोलन के तमाम चेहरों को भी अपना हथियार बनाने की कोशिश शुरू कर दी है. पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से कैप्टन कम से कम 40 सीटें मांग रहे हैं. साथ ही बीजेपी के भी तमाम टिकट अपनी तरफ से देने की बात कर रहे हैं. अकाली दल से अलग सुखदेव ढींढसा की पार्टी शिरोमणि अकाली दल डेमोक्रेटिक से भी गठबंधन की कोशिशें चल रही हैं.
राज की बात ये है कि बीजेपी ने हिंदु बहुल क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा टिकट अपने पास रखने को कहा है. कैप्टन से गांवों की तरफ फोकस करने को कहा गया है. वैसे यहां बताना जरूरी है कि किसान आंदोलन के असली शिल्पकार पंजाब के मुख्यमंत्री रहते हुए कैप्टन अमरिंदर ही थे. अमरिंदर जब सीएम पद से हटे और कांग्रेस से बाहर आए तो उन्होंने साफ कह दिया था बीजेपी से कि, बिना कानून वापस लिए आंदोलन खत्म नहीं होगा. उन्होंने कानून वापस लेने के बाद पंजाब में बीजेपी के लिए संभावनाएं खुलने की बात भी कही थी.
वरना सच्चाई तो ये थी कि बीजेपी के उम्मीदवार चुनाव प्रचार लायक भी नहीं बचे थे. खुद पंजाब का बीजेपी नेतृत्व भी यही मानने लग गया था. अब सीमावर्ती इलाका होने के नाते बीजेपी के लिए सियासी ही नहीं, बल्कि सामरिक रूप से भी यहां दखल रखना जरूरी है. कैप्टन अमरिंदर जट सिख होने के साथ-साथ राष्ट्रवादी छवि के भी हैं. जाट सिखों के बीच पैठ होने के साथ-साथ राष्ट्रवादी विचार के चलते बीजेपी को ये समीकरण मुफीद लगता है. साथ ही अब कम से कम बीजेपी चुनाव लड़ने की स्थिति में आ गई है.
राज की सबसे अहम बात ये है कि बीजेपी नेतृत्व ने कैप्टन से किसी भी कीमत में किसान आंदोलने के जो चेहरे रहे हैं, उन्हें गांवों में टिकट देने को कहा है. हर तरीके से बीजेपी ने सहयोग का भी आश्वासन दिया है. वैसे कांग्रेस ने भी किसान आंदोलन के चेहरों पर ही दांव लगाने की रणनीति बनाई है. ऐसे में भले ही पहली पंक्ति के न सही, लेकिन जो अपने क्षेत्रों में प्रभावी किसान नेता रहे हैं, उन पर कैप्टन अमरिंदर और बीजेपी दांव लगाकर पंजाब में एक नया समीकरण खड़ा करने की कोशिश करेगी.
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