Punjab Congress Crisis: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वफ़ादार और उनकी सरकार में मंत्री रहे अश्वनी कुमार ने पंजाब चुनाव में वोटिंग से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर पार्टी की बची उम्मीदों को भी बड़ा झटका दे दिया है. अभी तक तो युवा नेताओं के ही पार्टी छोड़ने का सिलसिला चल रहा था, लेकिन अश्वनी जैसे अनुभवी नेता के इस फैसले के बाद ये सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या कांग्रेस वाकई सियासत का डूबता हुआ जहाज़ बनती जा रही है, जहां नेताओं को अपना कोई भविष्य नहीं दिखता?
आत्म मंथन नहीं करना चाहती कांग्रेस
पिछले 46 साल से कांग्रेस के साथ अपनी सियासी पारी खेलने वाले अश्वनी का नाता पंजाब से है, जहां से वे लगातार तीन बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए और मनमोहन सरकार में कानून मंत्री भी रहे. लिहाज़ा उन्होंने पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को बेइज्जत करने का जो आरोप पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर लगाया है, उसका कुछ असर 20 फरवरी को होने वाले मतदान पर भी होगा. कांग्रेस की मौजूदा हालत को लेकर उन्होंने कुछ बुनियादी सवाल उठाए हैं, लेकिन पार्टी की कमान संभालने वाले गांधी परिवार के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि वो न तो इस पर आत्म मंथन करना चाहते हैं और न ही किसी और अनुभवी नेता के हाथ में पार्टी की बागडोर सौंपने को तैयार हैं.
पिछले दो साल में आधा दर्जन से ज्यादा ऊर्जावान नेता कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं, लेकिन किसी भी एक मौके पर शीर्ष नेतृत्व ने इस पर विचार करने की जरूरत ही नहीं समझी कि आखिर ये नौबत क्यों पैदा हो रही है और न ही उस वजह को दूर करने की कोई ईमानदार कोशिश की है. फिर भले ही मामला मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का हो, यूपी में जितिन प्रसाद व आरपीएन सिंह का हो या फिर असम में सुष्मिता देव के पार्टी छोड़ने का रहा हो. राजस्थान में सचिन पायलट की नाराजगी सबके सामने है और कोई नहीं जानता कि वे भी कब तक कांग्रेस के साथ रहते हैं.
कांग्रेस की गलतियों को किया उजागर
शायद यही वजह है कि कांग्रेस के पतन को लेकर जब अश्विनी कुमार से सवाल पूछा गया,तो उन्होंने पूरी साफगोई से इसका आकलन करते हुए कहा कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार गिर रहा है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पार्टी देश की सोच के साथ अलग हो चुकी है. यह एक राजनीतिक दल का कार्य है कि वह राष्ट्रीय मनोदशा का आकलन करे और जहां आवश्यक हो, इसे रूपांतरित करे. लेकिन क्या कोई गंभीरता से या ईमानदारी से कह सकता है कि कांग्रेस पार्टी ने अभी तक ऐसा किया है. हालांकि उन्होंने साथ ही ये भी जोड़ दिया कि हो सकता है कि मैं गलत हूं, लेकिन निकट भविष्य में कांग्रेस को मैं केवल नीचे की ओर ही जाते देख रहा हूं. कांग्रेस की गलती उजागर करते हुए उन्होंने सबसे बड़ी बात ये कही है कि 'चंद सम्मानीय नेताओं को छोड़कर पार्टी का जनता के साथ जुड़ाव खत्म सा हो गया है. आम भाषा में कहूं तो पार्टी state of inertia (निष्क्रिय) में जा रही है.अब पार्टी में वरिष्ठता और योग्यता को उचित सम्मान नहीं दिया जा रहा. पार्टी से जुड़े मामलों पर चर्चा करने के लिए पहले की तरह वरिष्ठ नेताओं को महत्व भी नहीं दिया जा रहा.'
देश में जो नेतृत्व कांग्रेस पार्टी भविष्य में प्रस्तुत करना चाहती है वो देश के लोगों को स्वीकार नहीं है. वो किसका नेतृत्व है, ये सब लोग जानते हैं. कांग्रेस पार्टी की भूमिका भविष्य में और कम हो जाएगी. पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता चला रहा है. उनके इस आकलन को गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि 2014 के बाद से ही लगातार कांग्रेस की जो दुर्दशा हो रही है, उसकी नब्ज़ को समझने में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व विफल रहा है और उसने अपनी पुरानी गलतियों से कोई सबक लेने की कभी ईमानदार कोशिश भी नहीं की. यही कारण है कि अश्वनी कुमार जैसे अनुभवी नेता को भी ये कहना पड़ा कि जिस तरह की लीडरशिप को पंजाब में पेश किया गया, वह पिछले 40 सालों में सबसे खराब है. जिस तरह से कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपमानित किया गया, इस्तीफा देने को मजबूर किया गया है, उससे कांग्रेस का कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा. मैं इससे दुखी हुआ, मैं इसकी निंदा करता हूं.
चन्नी को चुने जाने पर भी सवाल
उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी को सूबे के सीएम बनाने पर भी सवाल उठाते हुए पार्टी के इस फैसले को बिल्कुल गलत ठहराया है. उनका कहना है कि पंजाब में जातपात के आधार पर ऐसे व्यक्ति को चुना गया जो अपने सपनों में भी नहीं सोच सकता था कि वो कभी मुख्यमंत्री बनेगा. ये कहा गया कि वो गरीब घर का है. कितना गरीब है ये तो जगजाहिर है. टीवी पर उनके भांजे के घर से 10-12 करोड़ निकलने का नजारा पूरे पंजाब की जनता ने देखा है. अगर मुख्यमंत्री चयन करने का आधार जाति है तो कांग्रेस की कभी ये नीति नहीं थी. ये जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ है.
हालांकि सोनिया गांधी के प्रति अपना सम्मान जताते हुए अश्विनी कुमार ने ये भी साफ कर दिया कि पंजाब के तमाशे ने मुझे और भी आश्वस्त कर दिया है कि कांग्रेस प्रगतिशील परिवर्तन की पार्टी के रूप में अपना आधार खो चुकी है. वैसे उन्होंने अभी ये खुलासा नहीं किया है कि वे कैप्टन की पार्टी में शामिल होंगे या बीजेपी में लेकिन कहा है कि सभी विकल्प खुले हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि पहले कैप्टन और अब अश्विनी कुमार के पार्टी छोड़ने से क्या कांग्रेस पंजाब का मजबूत किला बचा पाएगी?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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