पंजाब की राजनीति में नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी वह जगह बना ली है,जिन्हें लोग भले ही प्यार न करें लेकिन उन्हें नज़रंदाज़ भी नहीं कर सकते.लेकिन क्रिकेट की दुनिया के 'सिक्सर शेरी' कहलाने वाले सिद्धू राजनीति की पिच पर अपने बोलों की वजह से अक्सर विवादों के केंद्र में रहते हैं और शायद यही उनकी फितरत भी बन चुकी है.
वह जब बीजेपी में थे,तब भी उन्होंने अपनी इसी 'सिद्धू वाणी' के चलते कई मर्तबा पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थीं. जबसे उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा है,शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो,जब सिद्धू की ज़ुबान से कोई सियासी जुमला निकला हो और उस पर विवाद न छिड़ा हो. पंजाब सरकार में मंत्री रहते हुए अपने ही मुख्यमंत्री की सलाह को ठुकराते हुए दुश्मन मुल्क के प्रधानमंत्री इमरान खान के न्योते को कबुल करना और वहां जाकर आर्मी चीफ के गले लगने का जिगरा शायद ही देश का कोई और नेता कर पाता. लेकिन ये सिद्धू ही हैं, जो सियासत को भी कॉमेडी के मंच से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं और जब अदावत पर उतर आते हैं,तो फ़िर कैप्टन अमरिंदर सिंह सरीखे कद्दावर नेता को भी कुर्सी से उतारकर ही चैन की सांस लेते हैं,बगैर ये सोचे-समझे कि पार्टी को भविष्य में इसका कितना बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है. क्योंकि राजनीति उनके लिए आज भी "तो गुरु,...ठोको ताली" से ज्यादा कुछ नहीं है.
लेकिन हक़ीक़त ये भी है कि राजनीति भले ही बच्चों का खेल न हो लेकिन इसमें रहते हुए सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचने की लालसा उस बच्चे की जिद से जरा भी कम नही होती, जो अपनी पसंद का खिलौना पाने के लिए माँ-बाप की नाक में दम करके रख देता है. लगता है कि पंजाब चुनाव से पहले सिद्धू भी कांग्रेस के लिए कुछ उस बच्चे के जिद वाले हालात ही पैदा कर रहे हैं.
सिद्धू ने मंगलवार को फिर ये मांग उठाकर कांग्रेस आलाकमान के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है कि पार्टी को चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना चाहिए.सिद्धू पंजाब कांग्रेस के मुखिया हैं और आमतौर पर पार्टी का कोई भी प्रदेश अध्यक्ष आलाकमान के आगे चुनाव से पहले ऐसी शर्त रखकर जनता के सामने पार्टी की साख पर बट्टा लगाने से परहेज करता है. लेकिन ये सिद्धू हैं,जो खुद को सबसे अलग साबित करने में यकीन रखते हैं और कुछ बोलने से पहले ये नहीं सोचते कि उनकी वाणी से पार्टी की कितनी भद्द पिट सकती है.एक न्यूज़ चैनल ने सिद्धू से सवाल पूछा था कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व वाली सरकार के अब तक के परफॉर्मेंस को लेकर आप उन्हें 10 में से कितने अंक देंगे? तो उनका जवाब था कि "मैं फिलहाल कोई भी अंक नहीं दूंगा."
यही 'सिद्धू वाणी' पार्टी व सरकार को हैरान-परेशान करने की बड़ी वजह बन जाती है क्योंकि प्रदेश की कमान संभाल रहे नेता से ऐसी अपरिपक्व भाषा की उम्मीद दिल्ली में बैठा नेतृत्व कभी नहीं करता.लेकिन सिद्धू के बारे में प्रचलित है कि वे मुंहफट हैं क्योंकि वे अपनी बात साफ़गोई से कहते हैं,इसलिये वह कई लोगों को चुभती है.लेकिन एक सच ये भी है कि सिद्धू के मिज़ाज़ को जितना कैप्टन अमरिंदर सिंह ने समझा है,उतना शायद ही कोई और नेता समझ सका हो.कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन ने शायद इसीलिए सिद्धू के बारे में ये कहा था कि - "सिद्धू एक अन गाइडेड मिसाइल हैं और कांग्रेस का भला इसी में है कि वो जितनी जल्द इस मिसाइल से अपना पिंड छुड़ा ले."
नवजोत सिद्धू किस तरह की राजनीति करते हैं,इसका फैसला हम नहीं करते बल्कि इसे समझने के लिए एक ही दिन में दिए उनके दो अलग-अलग बयान पर गौर करना होगा.मंगलवार को वे एक तरफ पार्टी नेतृत्व के आगे अपनी मांग दोहराते हैं कि उसे चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करना चाहिए तो दूसरी तरफ उसी दिन एबीपी न्यूज़ के एक कार्यक्रम में जब उनसे पूछा जाता है कि पंजाब में सीएम का चेहरा कौन होगा,तो उसका साफगोई से जवाब देने की बजाय वे उसे गोल-मोल तरीके से घुमा देते हैं.इस सवाल का जवाब सिद्धू ने कुछ इस अंदाज में दिया कि, ''मैंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को वचन दिया है कि मैं आपके नेतृत्व में लड़ता रहूंगा. मेरी कोई शर्त नहीं है. मैं तीन ऐसी सरकार में भागीदार था, जिसमें चुनाव के समय मैं आगे था. जब चुनाव खत्म हुए तो को सिद्धू शो-पीस बनाकर रख दिया. पंजाब के लोग मुख्यमंत्री तय करेंगे. मुझे अगर पदों का लालच होता तो छह इस्तीफे नहीं देता.कांग्रेस हाईकमान है,तभी पार्टी चल रही है.''
इस जवाब में उन्होंने गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी तो जाहिर कर दी लेकिन अपने मन में हिलोरे मार रही उस ख्वाहिश के बारे में कोई जिक्र नहीं किया कि वे खुद भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं.और अगर ऐसा नहीं है,तो फिर पार्टी के आगे बार-बार ये मांग रखने का भला क्या तुक है जबकि कांग्रेस की परंपरा रही है कि वे आखिर तक अपने पत्ते नहीं खोलती और बहुमत मिल जाने के बाद ही वह मुख्यमंत्री के चेहरे का ऐलान करती है. लिहाज़ा,कांग्रेस के लिए पंजाब में विपक्ष से ज्यादा बड़ी चुनौती तो फिलहाल खुद सिद्धू बनते दिख रहे हैं. इसलिये सवाल उठता है कि वह अपना किला बचाने के लिए इस 'सिद्धू वाणी' पर नियंत्रण पाने का आखिर क्या रास्ता निकालेगी?
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