जैसे इश्क और जंग में सबकुछ जायज है, लगता है उसी तरह चुनाव जीतने के लिए हर राजनीतिक दांव सही है. चुनावी दंगल में एक दूसरे को पटकनी देने के लिए नेता धोबिया पाट का भी इस्तेमाल करते हैं. जब सब दांव चूक जाए तो नेता अचूक रणनीति भी अपनाते हैं.
यूपी चुनाव के तीन चरण गुजर चुके थे, चुनाव प्रचार अपने शबाब पर है. ये चर्चा जोरों पर है कि तीनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर है और विधानसभा त्रिशंकु भी हो सकता है. अब पार्टी स्पष्ट बहुमत पाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रही है और रणनीति भी अपना रही है कि कैसे विरोधी को चित करके बहुमत हासिल किया जाय. शायद यही रणनीति मोदी की प्लानिंग का हिस्सा हो सकता है. दरअसल नरेन्द्र मोदी बार-बार अखिलेश को घेरना चाहते थे लेकिन अखिलेश बड़ी चतुराई और शालीनता से मोदी के सवालों का जवाब देकर निकल जाते थे और तो और अपने कामों कों मोदी के काम से बेहतर बता देते थे. इस जुबानी जंग में अखिलेश कभी पस्त नहीं हुए बल्कि अपने खास अंदाज की वजह से सवालों पर भारी ही दिख रहे थे.
नरेन्द्र मोदी को लगा कि ये बंदा आसानी से चक्रव्यूह में फंसने वाला नहीं है इसीलिए ऐसे मुद्दे उठाने की कोशिश की जाए ताकि अखिलेश चारों खाने चित हो जाएं. नेता हो या इंसान कितना ही मजबूत क्यों नहीं है लेकिन कहीं न कहीं कमजोर नस भी जरूर होता है. शायद नरेन्द्र मोदी ने अखिलेश के कमजोर नस को छूने की कोशिश की.
हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे भी उठे, पलायन के भी मुद्दे उठे और मंदिर बनाने के भी मुद्दे उठे लेकिन बड़ा मुद्दा नहीं बन सका. अब मोदी की कोशिश थी कि ऐसे मुद्दे को उठाओ जिसपर अखिलेश के कामों पर सवाल उठ सके और अखिलेश आपा भी खो दे . शायद वही हुआ.
अखिलेश को घेरने के लिए मोदी ने एक नहीं बल्कि एक ही साथ दो गंभीर आरोप लगा दिये. ऐसे मुद्दे जिससे वोटरों की धुर्व्रीकरण भी हो जाय. पीएम मोदी ने फतेहपुर की चुनावी रैली में अखिलेश यादव सरकार पर धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया था. पीएम मोदी ने अपने भाषण के दौरान कहा अगर कब्रिस्तान बनता है तो गांव में श्मशान भी बनना चाहिए. अगर रमजान में बिजली मिलती है तो दिवाली में भी बिजली मिलनी चाहिए. अगर होली पर बिजली मिलती है तो ईद पर भी बिजली मिलनी चाहिए. भेदभाव नहीं होना चाहिए. धर्म के आधार पर तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए.
अखिलेश को मिर्ची क्यों लगी?
मोदी के आरोपों से अखिलेश तिलमिला गये और पहली बार वो आपा खोते हुए मोदी पर तीखा हमला किया. उन्होंने मोदी का नाम तो नहीं लिया लेकिन उन्होंने कहा कि "मैं सदी के महानयाक से अपील करूंगा कि वे गुजरात के गधों का विज्ञापन न करें." इस एक तीर से कई निशाने पर ले लिए गए. मोदी पर अखिलेश का हमला अचानक नहीं हुआ बल्कि वो पूरी तैयारी के साथ आए थे यानि रणनीति का हिस्सा था. अखिलेश पुराने अंदाज में हमला करते हुए निकल भी सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि अब खबरें ये भी आ रही है कि मुस्लिम वोट बंट रहे हैं वहीं ये भी कहा जा रहा है अखिलेश की स्थिति उतनी मजबूत नहीं है जितनी पहले बताई गई थी. इसीलिए अखिलेश की भी चाल हो सकती है कि मोदी पर तीखा हमला करने से मुस्लिम वोटों में बिखराव नहीं होगा.
क्या मोदी के आरोप में दम है?
मोदी ने अखिलेश पर दो आरोप लगे थे. बिजली के वितरण के भेदभाव के आरोप में दम नहीं दिख रहा है. यूपीपीसीएल के मुताबिक पिछले साल ईद के दिन यानी 6 जुलाई, 2016 को पूरे राज्य में 13,500 मेगावॉट बिजली की सप्लाई की गई वहीं धनतेरस, दिवाली से लेकर भैया दूज तक यानी पांच दिनों तक प्रदेश में रोजाना 15,400 मेगावॉट बिजली की आपूर्ति हुई यानि ईद की तुलना में दीवाली के मौक़े पर 1900 मेगावॉट ज़्यादा बिजली सप्लाई हुई.
हालांकि, कब्रिस्तान और श्मशान के बयान पर दम दिख रहा है. यूपी की अखिलेश यादव सरकार ने पिछले वित्त वर्ष (2016-17) में अपने बजट में कब्रिस्तान के लिए श्मशान से करीब दोगुना बजट आवंटित किया था. अखिलेश सरकार ने साल 2016-17 में श्मशान के लिए 400 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था. वहीं उसी वित्त वर्ष में श्मशान के लिए 227 करोड़ रुपये (127 करोड़ रुपये ग्रामीण और 100 करोड़ रुपये शहरी) आवंटित किया था. चुनावी साल में कब्रिस्तान पर बजट बढ़ाने से सवालों के घेरे में लाने की कोशिश की गई. अखिलेश सरकार ने कब्रिस्तान के लिए करीब 1300 करोड़ खर्च किये जबकि श्मशान पर करीब 627 करोड़ खर्च किये गये.
जाहिर है कि नरेन्द्र मोदी ने पूर्वांचल ओर बुंदेलखंड में मतदान के पहले हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेला है वहीं अखिलेश ने मोदी को मुंहतोड़ जवाब दिया. इस कार्ड से किसको कितना फायदा होगा वो तो 11 मार्च को ही पता चलेगा लेकिन ये खेल देश के लिए हानिकारक है.
धर्मेन्द्र कुमार सिंह, चुनाव विश्लेषक और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं. इनसे ट्विटर पर जुड़ने के लिए @dharmendra135पर क्लिक करें. फेसबुक पर जुड़ने के लिए इसपर क्लिक करें. https://www.facebook.com