ब्रिटेन को अब कहां से मिलेगी लौह इरादों वाली ऐसी महारानी ?
ब्रिटेन की हुकूमत पर 70 साल तक राज करने वाली महारानी एलिजाबेथ-द्वितीय के चले जाने से सिर्फ शाही परिवार ही सदमे में नहीं है, बल्कि वहां की आम जनता के लिए भी ये बहुत बड़ा नुकसान है. इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी मौत की ख़बर आते ही देशभर में लोग जगह-जगह फूल रखकर उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दे रहे हैं. दुनिया के अधिकांश देशों में राजशाही अब बीते जमाने की बात हो गई है, लेकिन इंग्लैंड इस मामले में अपवाद है. यहां सदियों से चली आ रही ये परंपरा आगे कब तक जारी रहेगी, कोई नहीं जानता. ब्रिटेन के लोगों का राज परिवार के प्रति अगाध सम्मान करने की एक बड़ी वजह ये भी कही जा सकती है कि महारानी एलिजाबेथ ने जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को जिस लगन और समर्पण के साथ निभाया, उसके चलते बहुत जल्द ही उन्होंने लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली थी.
ब्रिटेन की राजनीति के जानकार मानते हैं कि इन 70 सालों में ऐसे कई मौके आए, जब महारानी अपने फैसलों से लोगों को ये अहसास कराने में सफल साबित हुईं कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी और अपना ताज अपनी जनता के नाम कर दिया है. यही कारण है कि उनके जिम्मेदारी निभाने के मजबूत इरादों के लिए लोग उन्हें आज इतनी शिद्दत से याद कर रहे हैं और शायद हमेशा याद करते रहेंगे. दरअसल, एलिजाबेथ ऐसे दौर में ब्रिटेन की महारानी बनीं, जब पूरी दुनिया में ब्रिटेन की हैसियत घट रही थी. एक तरफ, जहां समाज में क्रांतिकारी बदलाव आ रहे थे तो वहीं ब्रिटेन में बहुत से लोग राजशाही की भूमिका पर ही सवाल खड़े कर रहे थे. उन्होंने इन चुनौतियों का डटकर सामना किया. बेहद सावधानी और समझदारी से अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए ब्रिटेन के राजपरिवार में लोगों का भरोसा बनाए रखा.
बताते हैं कि जून 1952 में जब एलिजाबेथ की ताजपोशी हुई तो उस समारोह का पूरी दुनिया में टीवी पर सीधा प्रसारण किया गया था. कई लोगों ने पहली बार टीवी पर किसी कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देखा था. उस वक्त ब्रिटेन दूसरे विश्व युद्ध के बाद कटौती के दौर से गुजर रहा था. प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को ये कार्यक्रम फिजूलखर्ची लगा था. वो लाइव प्रसारण के खिलाफ थे, लेकिन ब्रिटेन के आम लोगों ने अपने पीएम के ऐतराज को दरकिनार रखते हुए नई महारानी को हाथों-हाथ लिया था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद का वक्त महारानी के लिए इम्तिहान की घड़ी वाला था, क्योंकि ब्रिटेन की हैसियत घटने के साथ ही उसका साम्राज्य भी सिमटने लगा था. इसकी बड़ी वजह ये थी कि भारत समेत कई देश ब्रिटेन के शासन से मुक्त हो चुके थे. इस हालात में ब्रिटेन का गौरव वापस दिलाने के लिए महारानी एलिजाबेथ ने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा करने का फैसला किया.
वो ब्रिटेन की पहली महारानी थीं, जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर गई थीं. कहा जाता है कि उन्हें दो-तिहाई ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने करीब से देखा. एक तरफ ब्रिटेन से दूसरे देश आजाद हो रहे थे तो वहीं महारानी का कॉमनवेल्थ देशों के प्रति लगाव बढ़ रहा था. कुछ लोगों को ये भी लग रहा था कि ब्रिटिश कॉमनवेल्थ को यूरोपीय आर्थिक समुदाय के बराबर खड़ा किया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि महारानी के 70 बरस का शाही सफर निर्विवाद ही रहा हो. राजनीति की तरफ से उन पर कई निजी हमले भी हुए. राजपरिवार के प्रति आम लोगों की राय बदलने की भी भरपूर कोशिशें हुईं. ऐसा भी वक्त आया, जब लोगों ने राजपरिवार पर सवाल करने की हिम्मत भी दिखाई, लेकिन महारानी एलिजाबेथ ने नए वक्त के हिसाब से खुद को ढालना शुरू कर दिया था और राज दरबार के कई रिवाजों को खत्म कर दिया गया. महारानी ने राजशाही के बजाय 'शाही परिवार' शब्द के इस्तेमाल पर जोर देना शुरू कर दिया.
नब्बे का दशक, शाही परिवार के लिए बेहद बुरा रहा. महारानी के दूसरे बेटे और उनकी पत्नी में अलगाव हो गया. इसी तरह उनकी बेटी राजकुमारी ऐन का भी उनके पति से तलाक हो गया. बाद में प्रिंस चार्ल्स और राजकुमारी डायना के तल्ख रिश्तों की सच्चाई भी सार्वजनिक हो गई. फिर दोनों अलग भी हो गए. नब्बे के दशक में ही शाही महल विंडसर पैलेस में भयंकर आग लग गई. इसके बाद ब्रिटेन में इस बात पर बहस छिड़ गई कि आखिर राजमहल की मरम्मत का खर्च कौन उठाएगा? महारानी ने इसका रास्ता निकाला. राजमहल की मरम्मत का खर्च निकालने के लिए बकिंघम पैलेस को आम लोगों के लिए खोल दिया गया. साथ ही, राज परिवार ने ये एलान भी किया कि महारानी और उनके युवराज प्रिंस ऑफ वेल्स, दोनों अपनी आमदनी पर टैक्स अदा किया करेंगे. 1992 के साल को महारानी एलिजाबेथ ने अपनी जिदगी का सबसे बुरा साल कहा था. उन्होंने एक भाषण में कहा कि किसी भी संस्था या इंसान को जवाबदेही से नहीं बचना चाहिए. ब्रिटेन का शाही परिवार भी हर तरह की पड़ताल के लिए तैयार है.
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