दीपक बल्यूटिया (प्रवक्ता, उत्तराखण्ड कांग्रेस कमेटी): 7 सितंबर 2022 के बाद नये साल पर 9 दिन के ब्रेक के बाद दोबारा भारत जोड़ो यात्रा शुरू होने तक देश का सियासी परिदृश्य बदल चुका है. कांग्रेस जीवंत हो उठी है. लाखों-करोड़ों लोग इस यात्रा से जुड़े. राहुल गांधी का नया अवतार देखने को मिला. राजनीतिक-गैर राजनीतिक हर वर्ग पर इस यात्रा ने अपनी छाप छोड़ी है और उन्हें खुद से जोड़ने में यह यात्रा सफल रही है.


राहुल गांधी को पप्पू बोलने वाले स्वयं पप्पू बनते दिखे. राहुल गांधी या कांग्रेस के लिए इन बातों का जितना महत्व है उससे ज्यादा ये महत्वपूर्ण घटनाएं हैं स्वयं भारतीय जनता पार्टी के लिए जिसके कुशासन में भारत जोड़ने का संकल्प राहुल ने लिया. बीजेपी खेमे से कांग्रेस के लिए नरम रुख पैदा होना बताता है कि जब राहुल मजबूत होंगे या कांग्रेस मजबूत होगी तो बीजेपी के भीतर सुलगता असंतोष भी मजबूत होकर बाहर आएगा. तो क्या शुरूआत हो चुकी है?


राहुल इफेक्ट! अध्यक्ष बदलने की तैयारी में है बीजेपी!


चौंकिए नहीं. बीजेपी अपने अध्यक्ष को बदलने की तैयारी में है. जेपी नड्डा का विकल्प खोजा जा रहा है. बीजेपी की चढ़ती लोकप्रियता के बीच किसी गैर बीजेपी दल ने पहली बार अपनी लोकप्रियता का ऐसा डंका पीटा है कि बीजेपी का थिंक टैंक बेचैन हो गया है. जैसे-जैसे राहुल की भारत जोड़ो यात्रा दिल्ली तक और फिर उससे आगे सफलता पूर्वक बढ़ती दिखी बीजेपी को अपने तेवर और कलेवर में बदलाव की जरूरत महसूस होने लगी है. 


विपक्ष में राहुल की बढ़ी स्वीकार्यता 


राजनीतिक परिदृश्य को भारत जोड़ो यात्रा के गिर्द विपक्ष की सियासत में भी देखने की जरूरत है. देश का कौन सा ऐसा क्षेत्रीय दल है जिसने भारत जोड़ो यात्रा का विरोध किया है? जवाब मिलेगा कोई नहीं. समर्थन या शुभकामना रखने वाले दलों की तादाद लगातार बढ़ती चली गयी. शिवसेना हो या एनसीपी, आरजेडी हो या जेडीयू, टीआरएस हो या डीएमके, पीडीपी हो या नेशनल कान्फ्रेन्स या फिर वामपंथी दल, एसपी, बीएसपी, आरएलडी जैसे दल भी भारत जोड़ो यात्रा से खुद को दूर नहीं रख सके. समर्थन नहीं तो शुभकामनाएं देने को विवश हुए.


हर प्रदेश में कांग्रेस के लिए समर्थन और सहयोग मिला. इन घटनाओं में कांग्रेस की और राहुल गांधी की स्वीकार्यता को स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है. मतलब यह है कि भारत जोड़ो यात्रा ने विपक्ष की सियासत के लिए जमीन को उर्वर बना दिया है. 


अब जब तक कि विपक्ष में कोई और दल बड़ी लकीर नहीं खींचता है तब तक राहुल गांधी के सामने उनका कद बड़ा नहीं हो पाएगा. व्यापक चुनावी सफलता से या संख्या के गणित में महत्वपूर्ण होकर ही विपक्ष का कोई दल बीजेपी के समांतर सियासत में कांग्रेस पर वरीयता पा सकता है. मगर, इसके लिए भी वोटरों के बीच लोकप्रियता जरूरी होगी.


राहुल ने दी संघ के विरोध को व्यापकता


राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा से पहले जब कभी भी भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक विरोध किया और आरएसएस का नाम लिया तो स्वयं कांग्रेस के भीतर भी अंदरखाने खुसफुसाहट देखने को मिला करती थी. कांग्रेस के लिए नरम रुख रखने वाले बुद्धिजीवी भी कहा करते थे कि “आरएसएस पर हमला ठीक नहीं है”. 
भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी अपनी सोच पर आगे बढ़े. हिन्दू और हिन्दुत्व से लेकर सावरकर-गांधी तक पर स्पष्ट सोच के साथ दिखे राहुल. आरएसएस पर वैचारिक हमला किए बगैर बीजेपी से नहीं लड़ा जा सकता- इस सोच को राहुल गांधी ने स्थापित किया है.


‘नफ़रत के बाज़ार में’ हिट रही ‘मोहब्बत की दुकान’


नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने के एलान के साथ राहुल गांधी ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया. पूंजीपतियों नहीं, पूंजीपतियों के एकाधिकार का विरोध करने की बात कहकर भी राहुल ‘हम दो हमारे दो की सरकार’ का सही मतलब देश के सामने रखने में सफल रहे. 
एक तरफ बढ़ती अमीरी है तो दूसरी तरफ बढ़ती गरीबी. इस खाई को पाटने की जरूरत बताकर राहुल गांधी ने लोकतंत्र के लोक कल्याणकारी होने की आवश्यकता को वास्तव में जिन्दा कर दिखलाया है.


पूजा भट्ट, अमोल पालेकर, रिया सेन, स्वरा भास्कर, रश्मि देसाई, आकांक्षा पुरी, सुशांत सिंह, फिल्मकार आनंद पटवर्धन, बॉक्सर विजेंद्र सिंह, मुक्केबाज स्वीटी बुरा, भारतीय राष्ट्रीय कबड्डी टीम के कप्तान दीपक निवास हुड्डा, गांधीजी के परपोते तुषार गांधी, साधु कंप्यूटर बाबा, प्रशांत भूषण, इतिहासकार अशोक पाण्डे समेत बड़ी संख्या में पत्रकार, यू-ट्यूबर, सामाजिक कार्यकर्ता भारत जोड़ो यात्रा में शरीक हुए. समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों का उत्साह के साथ आकर राहुल गांधी से बातचीत करना बताता है कि भारत जोड़ो यात्रा कितनी जीवंत रही है. 


यात्रा ने पूरा किया शतकीय जीवन


राहुल गांधी की यात्रा ने शतकीय जीवन जी लिया है. 30 जनवरी को श्रीनगर में तिरंगा फहराने के साथ जब यह यात्रा अपने मुकाम पर पहुंचेगी तब 7 सितंबर 2022 के बाद 145 दिन बीत चुके होंगे. इनमें से अगर नवंबर में 2 दिन और दिसंबर-जनवरी में 9 दिन के ब्रेक को हटा लें तो 145-11=134 दिन की ये यात्रा होगी. इस दौरान 3540 किमी की दूरी और जम्मू-कश्मीर के अलावा 12 राज्यों का सफर यह यात्रा पूरी कर चुकी होगी. 


देश में यात्राएं तो बहुत हुई हैं. मगर, ऐसी यात्रा देश ने पहली बार देखी है जो गैर राजनीतिक होकर भी राजनीतिक संदेश देने में सफल रही. इस यात्रा में कहीं कोई फसाद नहीं हुआ, सिर्फ और सिर्फ सौहार्द दिखा. मीडिया ने भरपूर कोशिश की कि इस यात्रा से वह दूर रहे, लेकिन यात्रा की लोकप्रियता ने मीडिया को मजबूर कर दिया कि वे इसकी अनदेखी बंद करे. जब ब्रेक पर रहे राहुल गांधी तब भी वास्तव में यात्रा ब्रेक पर नहीं रही क्योंकि वह सुर्खियां तब भी बटोरती रही. बगैर किसी खर्च के प्रचार-प्रसार में भी सफल रही यह यात्रा.




[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]