जो गुनाह किया नहीं, उसके लिए राहुल गांधी को क्या माफी मांगनी चाहिए थी?
कहते हैं कि राजनीति एक ऐसी शै है, जहां व्यक्ति की पिछली पांच-सात पुश्तों का इतिहास बाहर निकल आता है और फिर आपके विरोधी पुराने जख्मों को कुरेदकर ज़लील करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते. राहुल गांधी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जब वे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर यानी दरबार साहिब पहुंचे तो उन्हें घेरने के लिए उनके विरोधियों को एक मुद्दा मिल गया.
अकालियों और बीजेपी नेताओं को इस पर ऐतराज है कि राहुल गांधी ने ऑपेरशन ब्लू स्टार के लिये माफी क्यों नहीं मांगी? यानी वह गुनाह जो उन्होंने किया ही नहीं और जिसके लिए उनकी दादी व तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दोषी माना जाता है, उस अपराध के लिए पोते से माफी की मांग करना क्या सचमुच जायज़ है या फिर कांग्रेस के खिलाफ सिखों के पुराने जख्मों को हरा करने का ये महज सियासी औजार है?
39 बरस पहले जून 1984 में स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके आतंकियों से मुक्त कराने के लिए इंदिरा गांधी ने श्री दरबार साहिब में सैन्य कार्रवाई की थी, जिसमें आतंकियों के अलावा सैकड़ों बेगुनाह भी मारे गए थे, लेकिन इतिहास गवाह है कि तब ऐसा करने के लिए इंदिरा गांधी को बीजेपी ने भी समर्थन दिया था. बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा 'My Country, My Life' में इसका खुलासा करते हुए लिखा है कि, "राष्ट्रविरोधी ताकतों से गोल्डन टेंपल को आजाद कराने के लिए प्रधानमंत्री को आखिरकार वहां सेना भेजने पर मजबूर किया गया था."
बेशक वह घटना आजाद भारत के इतिहास का एक ऐसा काला पन्ना है, जिसे मिटाया नहीं जा सकता.सैन्य कार्रवाई की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चौतरफा तीखी आलोचना हुई थी. मशहूर लेखक खुशवंत सिंह अपनी जिंदगी में कभी भी भिंडरावाले या उसकी अलग खालिस्तान बनाने की मांग समर्थक नहीं रहे, लेकिन उस घटना ने उन्हें भी इतना झकझोर दिया था कि इसके विरोध में उन्होंने अपना 'पद्मभूषण' सम्मान सरकार को वापस लौटा दिया था, लेकिन बीते 39 सालों में बहुत कुछ बदल चुका है. हालांकि ऑपेरशन ब्लू स्टार के महज़ साढ़े चार महीने बाद ही इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर उसकी कीमत चुकानी पड़ी थी. 31अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या के बाद देश भर में सिखों का जिस तरह से कत्लेआम हुआ था, उसने करीब दो दशक तक कांग्रेस को खलनायक बनाये रखा, लेकिन कहते हैं कि सिर्फ वक़्त ही हर जख्म को भरने की ताकत रखता है और कांग्रेस ने भी इतिहास की गलतियों से बहुत कुछ सिखते हुए देश की सबसे जुझारु कौम का भरोसा दोबारा हासिल करने में कामयाबी पाई.इसकी बड़ी वजह बना सोनिया गांधी का वह फैसला जब उन्होंने साल 2004 के लोकसभा चुनाव-नतीजों के बाद खुद की दावेदारी को अलग रखते हुए डॉ.मनमोहन सिंह के रुप में देश को पहला सिक्ख प्रधानमंत्री दिया.
इसे कांग्रेस का प्रायश्चित करना भी मान सकते हैं और ये भी कह सकते हैं कि वह फैसला लेकर पार्टी ने इंदिरा-राजीव गांधी से हुए पाप को धोने का काम किया था. राजीव गांधी का जिक्र इसलिये कि अपनी मां की हत्या के बाद उन्होंने ही ये कहा था कि,"जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है." आम धारणा है कि उनके इस बयान के बाद ही कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं ने देश भर में सिखों का नरसंहार करना शुरू कर दिया था.
हालांकि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के अलावा कांग्रेस ने दो बार पंजाब में अपनी सरकारभी बनाई, जिसे लेकर यही माना गया कि बहुसंख्यक सिखों ने कांग्रेस को इतिहास की गलतियों के लिए माफ करते हुए फिर से उस पर भरोसा जताया है. बीजेपी के एक सिख प्रवक्ता आर पी सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा है कि,"राहुल गांधी को अपनी दादी व अपने पिता की गलतियों के लिये अकाल तख्त के सामने पेश होकर माफी मांगने के साथ अपने लिए सजा तय करवानी चाहिए थी, लेकिन सिख इतिहासकार कहते हैं कि प्रायश्चित करने के लिए किसी गैर सिख को अकाल तख्त के आगे पेश होने की कोई जरुरत नहीं होती.
वैसे भी सिक्ख इतिहास में आज तक ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि किसी मर्द या औरत को उसके माता-पिता या फिर उसके पूर्वजों की गलतियों के लिए दोषी ठहराया गया हो. वैसे कुछ सिक्ख बुद्धिजीवी कहते हैं कि बेशक राहुल गांधी दोषी नहीं हैं लेकिन अगर वे ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए माफी मांग लेते,तो सिखों के बीच बड़ा संदेश यही जाता कि वे राजनीति में बदलाव लाने की ईमानदार कोशिश पूरे समर्पण के साथ कर रहे हैं.
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