एक्सप्लोरर

'मानहानि केस में राहुल गांधी को सज़ा कांग्रेस के लिए बन सकती है संजीवनी, कार्यकर्ताओं में बढ़ेगा उत्साह'

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले कुछ महीनों से लागातर सुर्खियों में हैं. कभी भारत जोड़ो यात्रा, तो कभी लंदन में दिए गए बयानों की वजह से. अब ताजा मामला सूरत की अदालत से आया फैसला है. 2019 में कर्नाटक के कोलार में चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए एक बयान की वजह से सूरत की अदालत ने राहुल गांधी को मानहानि से जुड़े केस में दोषी मानते हुए 2 साल की सज़ा सुनाई है.

इस फैसले का कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. ऐसे तो राहुल गांधी के लिए ये एक सज़ा है, लेकिन अगर राजनीतिक नजरिए से देखें, तो ये फैसला कांग्रेस के लिए एक तरह से संजीवनी का काम कर सकता है. हम सब जानते हैं कि सियासी पिच पर पिछले 9 साल से कांग्रेस की बल्लेबाजी बेहद ही खराब रही है. कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. लोगों के बीच कांग्रेस की छवि लगातार कमजोर होते जा रही थी. विपक्षी दल भी कन्नी काट रहे हैं. चुनावी नतीजों के हिसाब से तो कांग्रेस के ऊपर अस्तित्व तक का खतरा आ चुका है. लगातार मिल रही चुनावी हार की वजह से उसके नेता से लेकर कार्यकर्ताओं में न तो जोश बचा था और न ही उत्साह.

अभी सदस्यता पर कोई आंच नहीं

सूरत की अदालत ने 'मोदी सरनेम' से जुड़े मामहानि केस में राहुल गांधी को आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत दोषी मानते हुए दो साल की सज़ा सुनाई है. हालांकि इससे फिलहाल राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. खुद सूरत की अदालत ने ही इस सज़ा पर 30 दिन की रोक लगा दी और राहुल गांधी को जमानत दे दी है. ये एक बात है जिसे समझने की जरूरत है. अगर अदालत ने सज़ा पर रोक नहीं लगाई होती हो, तो शायद सदस्यता खत्म करने की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती थी. 

दरअसल ये बात सही है कि 2013 में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8(4) को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला 'लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' के मामले में दिया था. इस धारा के प्रावधान की वजह से ही कोई भी संसद सदस्य या विधानमंडल के सदस्य दो साल या उससे ज्यादा की सजा पाने के बावजूद तब तक अयोग्य घोषित नहीं हो पाते थे, जब तक अपीलीय अदालत से उस अपील या आवेदन का निपटारा नहीं हो जाता था और इसके निपटारे में अपीलीय अदालत से काफी वक्त लग जाता था.  ज्यादातर मामलों में तब तक उस सदस्य का कार्यकाल पूरा हो जाया करता था.

लेकिन जुलाई 2013 में  सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8(4) को निरस्त कर दिया. शीर्ष अदालत के ऐतिहासिक फैसले से ये सुनिश्चित हो गया था कि दोषी निर्वाचित प्रतिनिधि की अपील लंबित होने कर उसे पद पर बने रहने की अनुमति नहीं होगी. मतलब दोषी पाए जाने और सज़ा सुनाए जाने के बाद ही तत्काल सदस्यता खत्म होने की राह खुल गई. 

हालांकि ये भी तथ्य है कि अपीलीय अदालत से किसी सांसद या विधायक की सज़ा स्थगित कर दी जाती है तो जनप्रतिनिधित्व की अधिनियम, 1951 की धारा 8 की उपधारा 1, 2, और 3 के तहत अयोग्य ठहराने का प्रावधान लागू नहीं हो सकता है. सितंबर 2018 में इस बात को खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था. सीआरपीसी की धारा 389 के तहत अपीलीय अदालत को ये अधिकार है कि उसके सामने मामला लंबित होने तक वो किसी भी शख्स की सज़ा को निलंबित कर सकती है. अगर ऐसा अपीलीय अदालत से होता है तो अयोग्यता संबंधी प्रावधान लागू नहीं होते हैं.

इन बातों से एक बात स्पष्ट है कि राहुल गांधी के मामले में खुद सूरत की अदालत ने ही सज़ा को 30 दिन के लिए निलंबित कर दिया है, तो फिलहाल उनकी सदस्यता खत्म होने का कोई सवाल ही नहीं खड़ा होता है और न ही अयोग्यता से संबंधित प्रक्रिया आगे बढ़ाने की संभावना रह जाती है.

ये भी तय है कि राहुल गांधी इस सज़ा के खिलाफ ऊपरी अदालत का रुख करेंगे ही और ज्यादा संभावना है कि मामला लंबित होने तक वहां से उनकी सज़ा पर निलंबन जारी रह सकता है. 

कांग्रेस को मिलेगा लाभ, सज़ा बन सकती है संजीवनी

दरअसल ये मामला उस तरह का नहीं है, जिसमें कोई बड़ा अपराध का भ्रष्टाचार शामिल हो. कांग्रेस के लिए ये फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब 2024 के लोक सभा चुनाव में सिर्फ एक साल का वक्त बच गया है. राहुल गांधी को सूरत की अदालत से मिली सज़ा कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करेगी. इसके साथ ही राहुल गांधी को लेकर जनता के बीच चर्चा भी ज्यादा होगी, इसका भी लाभ कांग्रेस को मिल सकता है.

जहां तक रही बात मोदी सरनेम को लेकर टिप्पणी की, तो हम सब जानते हैं कि पिछले कुछ सालों से हर पार्टी के नेता एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते आ रहे हैं, उसका स्तर क्या है. राहुल गांधी की टिप्पणी भले ही कोर्ट की नज़र में आपत्तिजनक हो सकती है, लेकिन उसका बहुत ज्यादा राजनीतिक मायने नहीं है. इन बातों का बहुत ज्यादा राजनीतिक असर नहीं पड़ता है, ये सभी लोग बखूबी समझते हैं क्योंकि राजनेताओं की ओर से इससे भी ज्यादा अमर्यादित भाषा का प्रयोग होता रहा है, चाहे वो किसी भी दल के नेता रहे हों.

उदाहरण के तौर पर जब एक दल के कई सारे नेता कैमरा पर राहुल गांधी के लिए 'पप्पू' शब्द का इस्तेमाल द्विअर्थी मायने में करते हैं, तो शायद वो सारे नेता उस वक्त ये भूल जाते हैं कि देश के हजारों लोगों का ये नाम है. वो भूल जाते हैं कि इसकी वजह से देश के हजारों इस नाम वाले नागरिकों की भी भावनाएं आहत होती होंगी. हालांकि उन नेताओं के खिलाफ मानहानि का कोई मामला नहीं बन पाता है. इसे दोहरा मापदंड ही कहा जा सकता है. 'पप्पू' शब्द तो सिर्फ एक उदाहरण है, इसके अलावा कई सारे ऐसे शब्दों का इस्तेमाल सत्ताधारी दल के नेता लगातार करते रहते हैं जिनसे देश के कई वर्गों की भावनाएं आहत होती हैं, लेकिन शायद उनकी खोज-ख़बर लेने वाला कोई नहीं है. कुछ शब्द तो ऐसे हैं कि जिनका इस्तेमाल मैं यहां कर भी नहीं सकता हूं, नहीं तो शायद मुझ पर ही मानहानि का केस न बन जाए. खैर यहां नेताओं को इससे क्या मतलब है कि उनकी बातों से आम नागरिकों की भावनाएं आहत हो सकती हैं. वे सब तो एक-दूसरे की भावनाएं आहत होने के सियासी दांव-पेंच में ही आम लोगों को उलझाकर रखना चाहते हैं.   

कांग्रेस को मिल सकता है भावनात्मक लाभ

राहुल गांधी को इस तरह के मामले में मिली सज़ा का कांग्रेस को भावनात्मक लाभ भी मिल सकता है. आजादी के वक्त से ही भारत में किसी पार्टी के लिए राजनीतिक माहौल बनाने में भावनाओं का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहता आया है. हमने देखा है कि आजादी दिलाने में जिस तरह की भूमिका कांग्रेस की रही थी, उससे देश के लोगों में कांग्रेस को लेकर एक लगाव और जुड़ाव की भावना कई सालों तक रही थी. यही वजह थी कि कांग्रेस को बाकी मुद्दों के साथ ही उस भावना का राजनीतिक लाभ भी मिलता रहा और वो यहां कई सालों तक केंद्र की सत्ता संभालते रही.

1980 में इंदिरा गांधी को भी मिला था लाभ

आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई थी और कांग्रेस को आजादी के 30 साल बाद पहली बार संसद में विपक्ष में बैठना पड़ा था. आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार की ज्यादतियों की जांच के लिए पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जे सी शाह की अगुवाई में आयोग तक बना दिया गया था. इंदिरा गांधी पर कई तरह के मुकदमें भी चले थे और कई तरह के आरोप भी लगाए गए थे. उनमें से कई मामले तो अजीबो-गरीब थे. उनमें एक मामला मणिपुर में चिकन और अंडे चोरी तक का था. मणिपुर की अदालत ने उनके खिलाफ नॉन बेलेवल वारंट तक जारी कर दिया था. इंदिरा गांधी इस केस की सुनवाई के लिए दिल्ली से दो हजार किलोमीटर मणिपुर की कोर्ट में भी गईं थी. जिस तरह से उस वक्त इंदिरा गांधी को छोटी-छोटी बातों पर कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे थे, उससे देश की जनता के बीच एक संदेश ये भी जा रहा था कि केंद्र की जनता पार्टी सरकार बेवजह पूर्व प्रधानमंत्री को परेशान कर रही है. इन सब बातों का अगले लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस को भावनात्मक लाभ भी मिला था. जनता के साथ ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच भी इन घटनाओं ने जोश भरने का काम किया था. बाद में ये सारी बातें कांग्रेस के लिए बेहद फायदेमंद रही और 1980 में कांग्रेस फिर से सत्ता में लौटने में कामयाब रही थी.

कहने का आशय है कि राजनीति में यहां हमेशा ही भावनाओं का महत्व रहा है. पिछले 10 साल से कुछ इसी तरह की भावनाएं बीजेपी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी रही है. उसी का नतीजा है कि बीजेपी फिलहाल चुनावी नजरिए से बेहद मजबूत नज़र आती है.

पिछले कुछ महीनों से जिस तरह से राहुल गांधी, मोदी सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं, अब सूरत की अदालत से सज़ा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए उत्प्रेरक का काम कर सकती है. साथ ही भावनात्मक तौर से जनता के एक वर्ग का भी जुड़ाव राहुल गांधी और कांग्रेस से बढ़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो आगामी लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को इसका लाभ मिल सकता है और 2019 की तुलना में उसका प्रदर्शन भी थोड़ा बेहतर हो सकता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

EXCLUSIVE: खालिस्तानी आतंकी अर्श डल्ला की कनाडा में गोलीबारी कांड में गिरफ्तारी से लेकर जमानत तक पूरी कहानी
खालिस्तानी आतंकी अर्श डल्ला की कनाडा में गोलीबारी कांड में गिरफ्तारी से लेकर जमानत तक पूरी कहानी
Delhi Weather: दिल्ली में टूटा रिकॉर्ड, 5 साल में सबसे गर्म महीना रहा नवंबर, AQI बहुत खराब 
दिल्ली में टूटा रिकॉर्ड, 5 साल में सबसे गर्म महीना रहा नवंबर, AQI बहुत खराब 
काटने के बाद भी कैसे जिंदा रहता है केंचुआ? जान लीजिए जवाब
काटने के बाद भी कैसे जिंदा रहता है केंचुआ? जान लीजिए जवाब
2024 में महिलाओं के लिए वरदान बनकर आईं ये योजनाएं, हर महीने हो रही कमाई
2024 में महिलाओं के लिए वरदान बनकर आईं ये योजनाएं, हर महीने हो रही कमाई
ABP Premium

वीडियोज

Maharashtra New CM: फडणवीस की चर्चा..क्या निकलेगी पर्चा? | Devendra Fadnavis | Ajit Pawar | ShindeDhirendra Krishna Shastri News: सनातन पथ पर बाबा के '9 संकल्प' | ABP NewsAustralia: बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर सरकार का बड़ा फैसला | ABP NewsAjmer Sharif Dargah: दरगाह के तहखाने में मंदिर के सबूत? | ABP News

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
EXCLUSIVE: खालिस्तानी आतंकी अर्श डल्ला की कनाडा में गोलीबारी कांड में गिरफ्तारी से लेकर जमानत तक पूरी कहानी
खालिस्तानी आतंकी अर्श डल्ला की कनाडा में गोलीबारी कांड में गिरफ्तारी से लेकर जमानत तक पूरी कहानी
Delhi Weather: दिल्ली में टूटा रिकॉर्ड, 5 साल में सबसे गर्म महीना रहा नवंबर, AQI बहुत खराब 
दिल्ली में टूटा रिकॉर्ड, 5 साल में सबसे गर्म महीना रहा नवंबर, AQI बहुत खराब 
काटने के बाद भी कैसे जिंदा रहता है केंचुआ? जान लीजिए जवाब
काटने के बाद भी कैसे जिंदा रहता है केंचुआ? जान लीजिए जवाब
2024 में महिलाओं के लिए वरदान बनकर आईं ये योजनाएं, हर महीने हो रही कमाई
2024 में महिलाओं के लिए वरदान बनकर आईं ये योजनाएं, हर महीने हो रही कमाई
'मैं कभी हिंदी फिल्में नहीं करूंगा...', 'पुष्पा 2' के इवेंट में बोले अल्लू अर्जुन, जानें वजह
'मैं कभी हिंदी फिल्में नहीं करूंगा', अल्लू अर्जुन ने क्यों लिया ऐसा फैसला?
'मुसलमान क्या करें, बाहर निकलेंगे तो पुलिस मारेगी', आखिर ये क्यों बोले कांग्रेस सांसद इमरान मसूद
'मुसलमान क्या करें, बाहर निकलेंगे तो पुलिस मारेगी', आखिर ये क्यों बोले कांग्रेस सांसद इमरान मसूद
क्या टूटने की कगार पर हैं भारत-कनाडा के संबंध? संसद में विदेश मंत्रालय का जवाब- 'ट्रूडो सरकार देती है चरमपंथियों को पनाह'
क्या टूटने की कगार पर हैं भारत-कनाडा के संबंध? संसद में विदेश मंत्रालय का जवाब- 'ट्रूडो सरकार देती है चरमपंथियों को पनाह'
200 रुपए के लिए की देश से गद्दारी! पाकिस्तानी एजेंट्स को दे रहा था खुफिया जानकारी, गुजरात ATS ने धर दबोचा
200 रुपए के लिए की देश से गद्दारी! पाकिस्तानी एजेंट्स को दे रहा था खुफिया जानकारी, गुजरात ATS ने धर दबोचा
Embed widget