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BLOG: बदले-बदले से नजर आ रहे हैं राहुल गांधी, कहीं ये 2019 की तैयारी तो नहीं ?

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का नाम इन दिनों मीडिया में बहुत आ रहा है. कभी अपने कुत्ते के जरिए टवीट करने के लिए, कभी जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहने जैसे जुमलों के लिए तो कभी चुटकी के लिए. खबर है कि राहुल गांधी को फॉलो करने वालों की संख्या 28 लाख से बढ़कर चालीस लाख पार कर गयी है. हालांकि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीन करोड़ साठ लाख फॉलोवर्स से कहीं कम हैं लेकिन राहुल बढ़ती संख्या के कारण चर्चा में है. राहुल चर्चा में है अपने अमेरिका में दिए भाषणों के लिए. राहुल जल्द ही कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले हैं. दो दिन पहले ही उन्होंने दिल्ली में पत्रकारों से कहा भी कि बनेंगे जल्दी ही बनेंगे. जाहिर है कि राहुल गांधी को या तो राजनीति भा गयी है या फिर वह बदली हुई टीम के साथ बीजेपी को उसी के स्वर में जवाब देना सीख गये हैं. जो भी हो लेकिन बड़ा सवाल उठता है कि क्या बदले हुए राहुल गांधी 22 साल बाद गुजरात में कांग्रेस की वापसी करवा पाएंगे. गुजरात विधानसभा चुनाव पर आए तीन सर्वे के नतीजे तो कम से कम ऐसा नहीं कह रहे हैं. तो क्या फिर यह 2019 की तैयारी है. इसका जवाब अभी न तो हां में दिया जा सकता है और न ही ना में. अभी तो कहानी बदले हुए राहुल गांधी की है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव की घोषणा हो चुकी है. राहुल गांधी भी जानते हैं कि हिमाचल में सरकार बचा पाना टेढ़ी खीर है, लिहाजा वहां सारी कमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को सौंप दी गयी है और सारा ध्यान गुजरात पर दिया जा रहा है. यह एक अच्छी रणनीति है, गुजरात में राहुल गांधी मंदिर जाना नहीं भूलते, आरती में शरीक होते हैं, हर भाषण के अंत में गुजरात के विकास पर तंज कसने लगे हैं, नोटबंदी और जीएसटी पर मोदी को घसीटने लगे हैं, मोदी के स्टाइल में ही जुमले जबान पर आ रहे हैं और जय भीम के नारे भी लगा रहे हैं. अमेरिका से इसकी शुरुआत की गयी थी और सिलसिला चल निकला है. वैसे यहां राहुल को चर्चा में लाने के लिए कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी और बीजेपी में भी मोदी सरकार के मंत्री जिम्मेदार हैं. अमेरिका में राहुल गांधी ने तीन बातें मुख्य रुप से कही थी. 1- हिंदुस्तान की राजनीति में वंशवाद खून की तरह शामिल है. उन्होंने पिता पुत्र के कुछ उदाहरण देते हुए माना था कि वह चाहते हुए भी इसे बदल नहीं सकते और राजनीति में इस वंशवाद को भारतीय समाज में स्वीकार कर लिया है. 2- राहुल ने स्वीकारा था कि यूपीए टू में मनमोहनसिंह सरकार के मंत्रियों में घमंड आ गया था और लोकसभा चुनावों में यह हार की वजह बना. 3- राहुल गांधी ने स्वीकारा था कि कांग्रेस तब नौकरियां नहीं दे पाई थी और जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया, तब बीजेपी नौकरियां देने का वायदा करके सत्ता में आई और अगर उसने भी नौकरियां नहीं दी तो उसका भी हाल जनता कांग्रेस जैसा ही कर देगी. देखा जाए तो इन तीनों ही बातों में ऐसा कुछ नहीं था जिसपर मोदी सरकार से लेकर समूची बीजेपी को भड़कना चाहिए था. लेकिन पहले ही दिन स्मृति ईरानी को जवाब देने के लिए उतारा गया. उसके बाद तो मंत्रियों से लेकर नेताओं की पूरी फौज ही उतर आई. जाहिर है कि बहुत से लोगों को तो मंत्रियों की आलोचना के बाद ही चला कि राहुल गांधी ने ऐसा कुछ अमेरिका में बोल दिया है. कायदे से बीजेपी को राहुल गांधी के बयान को नजरअंदाज कर देना चाहिए था लेकिन राहुल गांधी को निशाने पर लेना बीजेपी का पुराना शगल रहा है. नेहरु गांधी परिवार पर जुमलों से लेकर तंज कसना चुनावों के समय तो ठीक है लेकिन सत्तारुढ़ दल हर बात पर विपक्ष पर ताने कसे इसे सही रणनीति नहीं कहा जा सकता. गुजरात में कांग्रेस ने विकास गंदा हो गया है को ट्रेंड करवाया तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को कहना पड़ा कि सोशल मीडिया पर पूरी तरह से यकीन नहीं किया जाना चाहिए. जिस सोशल मीडिया के सहारे बीजेपी घर घर पहुंची और जिसने माहौल बनाया उसी सोशल मीडिया को अचानक से संदिग्ध बता दिया गया जो यह साफ संकेत देता है कि राहुल के बयानों से बीजेपी की रणनीति प्रभावित हुई है. खैर, सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी में आए बदलावों से, उनके भाषण की शैली और भाषा में आए बदलावों से बीजेपी को चिंतित होने की जरुरत है. इसका जवाब आज की तारीख में तो नहीं ही कहा जाएगा. मोदी की आक्रमक शैली, बीजेपी के प्रचार तंत्र का प्रभाव, कार्यकर्ताओं की फौज, संघ का सहारा और सत्ता में रहने का स्वभाविक फायदा कुछ ऐसी बातें हैं जिनका मुकाबला कांग्रेस नहीं कर सकती. बीजेपी में दूसरी पंक्ति के नेताओं की भरमार है लेकिन कांग्रेस में या तो इसका अभाव है या फिर ऐसे नेता आपस में भिड़े हुए हैं. नोटबंदी से नाराज जनता बीजेपी को वोट दे रही है, जीएसटी से खफा जनता भी बीजेपी को वोट देने की बात कह रही है. हिमाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव पर एबीपी-लोकनीति-सीएसडीएस का ओपिनियन पोल ही बताता है कि हिमाचल में 43 फीसद लोग नोटबंदी के फैसले को गलत ठहरा रहे हैं, 46 फीसद मानते हैं कि जीएसटी लागू करके सरकार ने गलत किया लेकिन जब वोट देने की बात होती है तो 47 फीसद बीजेपी को ही पसंद करते हैं और 41 फीसद कांग्रेस को. इसी तरह बीजेपी 39 से 45 सीटें जीतती लग रही है जबकि कांग्रेस को 22 से 28 सीटों को बीच ही मिलती दिखाई दे रही हैं. अब यहां राहुल गांधी को सोचना होगा. वह इन दो मुददों पर मोदी सरकार का जमकर विरोध कर रहे हैं लेकिन अगर दोनों मुददों पर बीजेपी चुनावी लडाई जीत रही है तो इसका मतलब यही है कि लोग कांग्रेस से इसका विकल्प देने की अपेक्षा कर रहे हैं और यहां आकर कांग्रेस भी खामोश हो जाती है और राहुल गांधी भी चुप्पी साध जाते हैं. बीजेपी का तो कांग्रेस को गाली देकर काम चल गया लेकिन मोदी सरकार को गाली देकर कांग्रेस का काम नहीं चल सकता. यह बात राहुल गांधी को समझ लेनी चाहिए. बदले हुए राहुल गांधी को तो विकल्प बताने होंगे तभी जनता को साध पाएंगे. (नोट- उपरोक्त दिए गए विचार और आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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