हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे या फिर हम तो डूबेंगे सनम, लेकिन तुमको भी ले डूबेंगे. इन दो कहावतों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी लामबंदी का राज छिपा हुआ है. अब ये खेल में शामिल न करने से नाराज कौन है और कौन खेल में शामिल नहीं कर रहा? इनमें एक खिलाड़ी हैं प्रियंका गांधी और दूसरे खिलाड़ी हैं अखिलेश यादव ये समझना मुश्किल नहीं है. मगर अब तीसरी कहावत और कि चौबै जी छब्बे बनने गए थे और दुबे बनकर लौटे. राज की बात में सियासत के ये चौबे से फिलहाल जो दुबे बनकर लौटे हैं, उनका नाम है राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी. जयंत की कुछ मुलाकातें अखिलेश को इतनी बुरी लग गई हैं कि वो फिलहाल बातचीत तक नहीं कर रहे और इस घटनाक्रम से विपक्ष के सबसे मजबूत गठजोड़ की संभावनाओं को करारा झटका लग सकता है.
बीजेपी को हराने की चाहत पूरे विपक्ष को है. सात साल केंद्र और पांच साल यूपी में राज करने के चलते स्वाभाविक रूप से सत्ता विरोधी भावनाओं पर चढ़कर विपक्ष लखनऊ विधानसभा में अपना परचम लहराने की आकांक्षायें पाले है. बीजेपी फिलहाल जिस रूप और कलेवर में है, विपक्षी रणनीतिकार भी मान रहे हैं कि एकजुट हुए बगैर उसे परास्त कर पाना आसान नहीं. लिहाजा, सिर्फ यूपी ही नहीं, बल्कि यूपी के बाहर के शरद पवार और ममता बनर्जी सरीखे दिग्गज भी विपक्षी एकता को मजबूत करने में जुटे हैं. हालांकि, अभी के हालात में सच्चाई यही है कि संगठन और समीकरणों के लिहाज से बीजेपी के मुकाबले अभी समाजवादी पार्टी सबसे मजबूत नजर आती है.
सपा प्रबल दावेदार भले ही हो, लेकिन बिना कुछ अन्य जातियों का वोट जोड़े, उसके लिए कमल का हराने का कमाल कर पाना असंभव है. इसीलिए, अखिलेश ने मुसलिम-यादव समीकरण से आगे जाकर राजभर, कुशवाहा, निषाद, कश्यप आदि समूहों को जोड़ने का प्रयास शुरू किया. इसमें अखिलेश को सफलता भी मिल रही है. मगर, अखिलेश की पूरब से पश्चिम तक विस्तार की कोशिशों ने बीजेपी से ज्यादा विपक्ष के ही तमाम नेताओं को आशंकित कर दिया है.
राज की बात ये है कि सबसे ज्यादा हैरान और परेशान तो हैं कांग्रेस महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी. प्रियंका गांधी लगातार अखिलेश के साथ गठबंधन में शामिल होने को बेकरार हैं, लेकिन सपा सुप्रीमो अपनी साइकिल पर उन्हें हाथ ही नहीं रखने दे रहे हैं. प्रियंका विपक्षी एकता तो चाहती हैं, लेकिन वे अपने भाई राहुल गांधी से अलग सोच रखती हैं. राहुल का एकमात्र लक्ष्य बीजेपी को हराना था, उसके लिए वह अपनी पार्टी को कमतर भी किया. मगर यहां प्रियंका बीजेपी को अपनी पार्टी की कीमत पर खत्म या बिल्कुल पीछे करने वाली राजनीति से कतई सहमत नहीं.
राज की बात ये है कि प्रियंका गांधी ने अखिलेश की तरफ से बिल्कुल तवज्जो न मिलने पर लखीमपुर खीरी कांड के बाद से यूपी में जोरदार एंट्री की. उसके बाद से कांग्रेस लगातार आक्रामक है और इस राजनीति के जरिये वो अखिलेश को गठबंधन के लिए मजबूर करने मे जुटी है. मगर अखिलेश ने कांग्रेस के ही तमाम दिग्गजों को तोड़कर पार्टी में बुला लिया है. यहीं छिपी है वो राज की बात, जिसके बाद प्रियंका ने अखिलेश से न सिर्फ पूरी तरह से दो-दो हाथ करना शुरू कर दिया, बल्कि सपा के साथ सबसे पहले गठजोड़ करने वाले जयंत चौधरी को भी ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया कि अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समीकरण बदलने की नौबत तक आ गई है. चूंकि, जयंत भी कुछ लोगों के सपा में जाने से विचलित थे और प्रियंका तो खुद को अपमानित महसूस ही कर रही थीं.
राज की बात ये है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हरेंद्र मलिक और उनके बेटे पंकज मलिक के सपा के खेमे में जाने के बाद से प्रियंका और जयंत दोनों को ही नागवार गुजरा. हरेंद्र और पंकज मलिक को कांग्रेस ने तो खैर रोकने की कोशिश की, लेकिन रालोद की तरफ से धमकाया तक गया कि उनके प्रभाव वाली सीटें सपा के लिए नहीं छोड़ी जाएंगी. जयंत चाहते थे कि मलिक पिता-पुत्र रालोद में आएं और जाट वोटों पर पूरी तरह से अखिलेश पर दबाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा सीटें ली जाएं. मगर मलिक पिता-पुत्र ने पिछले अनुभवों के मद्देजनर रालोद को न कर अखिलेश की साईकिल थाम ली.
इसी बीच जयंत चौधरी की बीजेपी के कद्दावर नेता और गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की खबरें आईं। अखिलेश ने इस मुद्दे पर जयंत से बातचीत भी की, लेकिन वो बात आई-गई हो गई. मगर जयंत की कोशिश ज्यादा से ज्यादा से ज्यादा सीटें गठबंधन में लेने की है. कारण की किसान आंदोलन के बाद जिस तरह की भीड़ जयंत की सभाओं में उमड़ीं, उससे उनकी महत्वाकांक्षाओं ने भी लंबी उड़ान ले ली. राज की बात ये कि जयंत 52 सीटें चाहते हैं और उन्होंने अखिलेश को आफर दिया है कि वे एक दर्जन सपा के कोटे प्रत्याशी अपनी पार्टी के निशान हैंडपंप से लड़ा देंगे. मगर अखिलेश 30-32 से आगे जाने को तैयार नहीं थे.
राज की बात ये है कि ये सब बातें मध्यस्थों के जरिये ही हुईं, अभी अखिलेश ने अपनी तरफ से कोई बात नहीं की थी. इसी बीच पिछले रविवार लखनऊ में ऐसा घटनाक्रम घटा, जिससे सपा अध्यक्ष बहुत नाराज हो गए. जयंत चौधरी लखनऊ अपना घोषणापत्र जारी करने गए थे. वहीं वापसी में एयरपोर्ट पर कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने प्रियंका और जयंत की मुलाकात करवा दी. बात इतनी ही नहीं, बल्कि जयंत चौधरी दिल्ली भी प्रियंका, दीपेंद्र औऱ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह बघेल के साथ चार्टर प्लेन से लौटे. ये फोटो कांग्रेस की तरफ से जारी हुई तो अखिलेश दबाव में आने के बजाय और चिढ़ गए. पता ये भी चला कि कांग्रेस ने जयंत को राज्यसभा भेजने के साथ-साथ ज्यादा सीटें भी प्रस्तावित की हैं.
राज की बात ये कि इस घटनाक्रम के बाद से अखिलेश ने अपने तेवर बहुत कड़े कर लिए और अब रालोद अध्यक्ष से बातचीत भी नहीं कर रहे. 11 नवंबर को अखिलेश मुजफ्फर नगर में कश्यप रैली कर रहे हैं. ये रालोद का गढ़ है, लेकिन जयंत चौधरी को अभी तक इस का आमंत्रण नहीं दिया गया है. सूत्रों का कहना है कि रामगोपाल यादव के जरिये भी जयंत ने अखिलेश से संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने भी इस मसले में पड़ने से इनकार कर दिया. मतलब ये कि अगर 11 नवंबर को जयंत चौधरी मुजफ्फरनगर की रैली में सपा अध्यक्ष के साथ मंच पर नहीं होते हैं तो यूपी में एक नया समीकरण दिख सकता है, जो बीजेपी के लिए सुकून का सबब होगा.
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