Raj Ki Baat: चुनाव से पहले यूपी सरकार और बीजेपी में लगी आचार संहिता
चुनाव की तारीख घोषित होते ही उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में चुनाव आयोग आचार संहिता लगा देगा. सभी सियासी दलों से लेकर पूरी व्यवस्था इस आचार संहिता के अधीन ही काम करेगी. मगर उत्तर प्रदेश बीजेपी और सरकार में आचार संहिता शुक्रवार से लग गई है. चौंकिये नहीं..राज की बात ये है कि उत्तर प्रदेश सरकार और बीजेपी के बीच चुनावी तैयारियों को लेकर ये आचार संहिता का नाम है...अमित शाह... खास बात है कि ये संहिता लागू होने के बाद यूपी में राजनीतिक नेतृत्व पर हावी नौकरशाही को रुख बदलने पर मजबूर होना पड़ेगा.
राज की बात ये है कि अब उत्तर प्रदेश में सरकार और संगठन से जुड़े फैसलों से लेकर टिकटों के वितरण तक की पूरी कार्ययोजना शाह संहिता के तहत होगी. 2014 में बतौर यूपी के प्रभारी और 2017 विधानसभा और 2019 लोकसभा में बीजेपी अध्यक्ष की हैसियत से यूपी में बीजेपी की चमत्कारिक जीत के शिल्पकार रहे शाह अब खुलकर यूपी के मैदान में हैं. जम्मू-कश्मीर में जहां वह गृह मंत्री के तौर पर बेहद संवेदनशील और मानवीय पहलुओं पर ने अवतार में नजर आए थे. मगर दिल्ली की सत्ता का मार्ग प्रशस्त करने वाले लखनऊ में हिंदुत्व और सख्त प्रशासन में पगी राजनीतिक शख्सीयत उभर कर आई.
आप सोच रहे होंगे कि ये तो आपने देखा, इसमें नया क्या है. लेकिन ठहरिये जनाब.. राज की बात तो इस भाषणबाजी के बाद जिस तरह से अमित शाह ने चुनावी राज्य की कमान अपने हाथ में ले ली और तैयारियों कों गति दी है, वहां छिपी हुई है. शुरुआत में जिस शाह संहिता की बात मैने की, उसके ड्राफ्ट का होमवर्क करके गृहमंत्री दिल्ली लौटे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और संगठन मंत्री सुनील बंसल समेत उन्होंने तमाम पदाधिकारियों और मंत्रियों से बात कर चुनावी गुर तो सिखाए, लेकिन असली खबर छिपी है जब उन्होंने तमाम नेताओं से –वन आन वन- यानी अकेले गुफ्तगू की.
करीब एक दर्जन नेताओं से शाह अकेले मिले. इससे पहले, उन्होंने शुक्रवार शाम को पार्टी कार्यालय पर पहले पार्टी के तमाम पदाधिकारियों के साथ बैठक की. इनमें सबसे महत्वपूर्ण बैठक हाल ही में यूपी चुनाव के मद्देनजर नियुक्त किए गए चुनाव प्रभारी, चुनाव सह प्रभारी और क्षेत्रों के प्रभारियों के साथ बैठक रही. वैसे इस बैठक की जो तस्वीर निकल कर सामने आई उसमें यूपी में अमित शाह के सबसे करीबी कहे जाने वाले महामंत्री संगठन सुनील बंसल कुर्सी पर एक कोने बैठे नजर आए. संगठन में बंसल पूरी तरह से कर्ता-धर्ता हैं और अमित शाह के सबसे विश्वस्त भी. मगर इस तस्वीर (विंडो में ये तस्वीर चलाई जाए) में दिख रहा है कि सीएम योगी, अध्यक्ष स्वतंत्र देव और प्रभारियों से शाह बात कर रहे हैं और बंसल चुपचाप पीछे बैठे हैं.
हालांकि, इसका मतलब ये कतई नहीं कि बंसल अप्रासंगिक हो गए, लेकिन शाह का अंदाज ये कि अभी चुनाव सिर पर हैं तो सीएम और अध्यक्ष ही फैसलों के केंद्र में दिखने चाहिए. बात यह भी है कि यूपी में योगी की छवि अपने आप में एक फैक्टर है, लिहाजा उनकी राय और सोच को साथ में लेकर ही पार्टी को आगे बढ़ना होगा. यह किसी से छिपा नहीं है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव इस समय सीएम योगी के सबसे खासमखास हैं औऱ संगठन मंत्री सुनील बंसल से भी इन दोनों के संबंध सबको पता हैं. मतलब ये कि शाह ने इन दोनों की सुनी और पहले से ही होमवर्क करके जो आए थे, उसके आधार पर मिशन 2022 को लेकर अपनी राय कहें या फिर निर्देश दिए.
अब राज की अहम बात कि जिन एक दर्जन लोगों से शाह ने अलग-अलग बात की, वो कौन हैं. शाह ने कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक, भूपेंद्र चौधरी और आशुतोष टंडन के अलावा नरेश अग्रवाल, संजय निषाद और रमापति राम त्रिपाठी जैसे नेताओं से एकांत में चर्चा की. इसके बाद संगठन मंत्री सुनील बंसल से अलग से बात हुई. यूपी के प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, राधामोहन सिंह समेत अन्य सह प्रभारियों से भी इन मुलाकातों के बाद उन्होंने चर्चा की.
राज की बात ये कि शाह ने अलग-अलग मुलाकात के दौरान सरकार के कामकाज का फीडबैक लिया. जिन लोगों से अलग-अलग शाह मिले तो यूपी के अलग-अलग क्षेत्रों यानी पूर्वांचल, अवध से लेकर पश्चिम तक के लोग थे. इन सभी से सरकार के साथ ही संगठन को लेकर भी सवाल पूछे. उन्होने यह भी पूछा कि तीन महीनों में क्या कुछ करने की जरूरत है पार्टी का स्ट्रांग प्वाइंट क्या है? और उनकी नजर में पार्टी को किन चीजों से नुकसान हो सकता है ?
साथ ही किसान आंदोलन के असर को लेकर भी चर्चा की. वहीं, इस बैठक में कुछ लोगों ने एक बार फिर अधिकारियों के हावी होने की बात केंद्रीय गृह मंत्री के सामने रखी. ज्यादातर लोगों का कहना था कि अधिकारी मनमानी कर रहे हैं. मंत्रियों की अनदेखी तक करते हैं, लेकिन जनता के बीच सरकार को लेकर सवाल खड़े होते हैं. कुछ लोगों ने यहां तक कह दिया कि बीजेपी को नुकसान सिर्फ नौकरशाही के बेलगाम होने से हो सकता है, बाकी सब नियंत्रण में हैं. राज की बात ये है कि इस मुद्दे को शाह ने काफी गंभीरता से लिया है, क्योंकि उत्तर प्रदेश से ये शिकायत निरंतर ही आ रही थीं.
शाह के दौरे से उपजी एक और राज की बात जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो वहां का विधानसभा चुनाव हमेशा भविष्य के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में कोई गुजराती होगा, इस मुद्दे पर होता था. वास्तव में गुजरात की जनता तत्कालीन सीएम के साथ-साथ भविष्य के पीएम को चुन रही होती थी. गुजरात का यही माडल अब यूपी में लागू हो गया है. गृह मंत्री अमित शाह के लखनऊ जाकर युपी की चुनावी कमान संभालने के साथ ही यह सियासी धारा गति पकड़ गई है. मतलब कि 2022 का चुनाव जितना यूपी में बीजेपी की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार चुनना, इसलिये जरूरी है, क्योंकि 2024 में नरेंद्र मोदी को तीसरी बार पीएम बनना है.
मोदी को तीसरी बार पीएम बनाने के मुद्दे पर ही 2022 के चुनावों की केंद्रीय विषय-वस्तु तैयार की जा रही है. अपराधियों पर सख्ती और हिंदुत्व पर प्रखरता वाली योगी की छवि का भरपूर इस्तेमाल तो होगा ही. अपने दो दिन के लखनऊ दौरे पर पहुंचे अमित शाह ने जहां पार्टी के सदस्यता अभियान की शुरुआत की तो वहीं मंच से अमित शाह ने साफ तौर पर कहा कि अगर 2024 में नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाना है तो यह जरूरी है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को दोबारा मुख्यमंत्री बनाया जाए.
शाह की यह बात बेहद अहम है कि जनता का आशीर्वाद मिले जिससे कि हम 300 सीटें जीतें और योगी जी दोबारा मुख्यमंत्री बने. मतलब 300 सीटों का टारगेट भी एक तरह से शाह ने मौजूदा निजाम के लिए सेट कर दिया, वैसे सरकार तो 202 सीटों पर ही बन जाती है. मगर लक्ष्य 2024 है तो 2019 के लोकसभा चुनावों के लिहाज से टारगेट सेट किया गया है. इस दौरे से एक बात और तय हो गई है कि पीएम मोदी जिस राज्य से लोकसभा में चुनकर आते हैं, उसकी चुनावी बागडोर पूरी तरह से अमित शाह के पास होगी चाहे कोई किसी भी पद या जिम्मेदारी पर हो.
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