राज की बात: TMC की विस्तारवादी नीति से देश की सबसे पुरानी पार्टी क्यों है परेशान
सियासत में संभावनाओं का सागर हमेशा ज्वार भाटे के मोड में बना रहता है. मौके का चंद्रमा करीब आए तो फिर सूरमा चौका लगाने में चूकते नहीं और इसी उफान के मोड में देश की एक पार्टी बनी हुई है और रोज चौंका रही है.
सियासी महत्वाकांक्षा का दायरा इतने सधे तरीके से सजाया जा रहा है कि धमक पूरे देश में सुनाई दे रही है. ये भी कह सकते हैं कि सियासत में किसी का उदय दूसरे के लिए अस्ताचलगामी होने का कारण बन जाता है. देश में एक छोटी पार्टी उभर रही है तो सबसे पुरानी पार्टी के होश फाख्ता होने शुरू हो गए हैं.
आज राज की बात में हम आपको बताने जा रहे हैं तृणमूल कांग्रेस के विस्तारवादी प्लान के बारे में जिसको लेकर ममता इतनी सीरियस हो गई हैं कि देश के हर हिस्से में सियासी तोड़ फोड़ का दौर शुरू हो गया है. और ममता बनर्जी की ये सीरियसनेस कांग्रेस को अस्तित्व के स्तर पर सीरियस हालत में पहुंचाए दे रही है.
बंगाल में बंपर विजय के बाद ममता बनर्जी का प्लान है कि अब क्षेत्रीय क्षत्रप के तमगे से आगे बढ़कर पार्टी को राष्ट्रीय बनाया जाए. इससे दल भी बड़ा होगा, सियासी बल भी बड़ा होगा और बीजेपी की खिलाफ जारी विपक्षी लामबंदी के बीच ममता के पीएम कैंडिडेट बनने के दावे को मजबूती हासिल होगी.
राज की बात ये है कि ममता के इस पॉलिटिकल मिशन से टीएमसी को कितना फायदा होगा ये तो वक्त बताएगा, लेकिन कांग्रेस के सामने नुकसान की झड़ी लग गई है. बंगाल में भले ही कांग्रेस ने बीजेपी विरोध में तृणमूल कांग्रेस को वॉकओवर दे दिया....लेकिन ममता किसी सियासी एहसान तले दबकर कांग्रेस को वॉकओवर देने के मूड में नहीं है. उनका प्लान पर पूरा फोकस है और उसी का नमूना मेघालय में देखने को मिला जहां 17 में से 12 कांग्रेसी विधायकों को ममता ने तोड़ लिया. ऐसा नहीं है कि पूर्वोत्तर में ताकत बढ़ाने का काम केवल मेघालय में ही हुआ, त्रिपुरा चुनाव के मद्देनजर भी टीएमसी ने पूरी ताकत झोंक रखी है.
टीएमसी के इस विस्तारवादी प्लान की झलक गोवा से लेकर यूपी और महाराष्ट्र से लेकर झारखंड तक दिख रही है. और इतना ही नहीं ....राज की बात तो ये है कि दिल्ली में भी कुछ बड़े नेताओं से टीएमसी के दिल मिलने की खबरें आ रही हैं....और इसी से जुड़ी दूसरी राज की बात ये है कि ये नेता भी कांग्रेस के खेमे से ही हैं. मतलब ये कि कांग्रेस से ही निकली एक तृण समान सियासी पार्टी उसके मूल में जाकर मट्ठा डालने का काम करने लगी है.
उत्तर प्रदेश में जहां कांग्रेस के कद्दावर नेता ललितेश पति त्रिप्रठी को टीएमसी ने खुद से जोड़ा तो वहीं बिहार-झारखंड का बड़ा चेहरा कीर्ति आजाद को पार्टी में शामिल कर लिया. गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लिईजिन्हों फेलेरियो को भी टीएमसी ने अपने खेमे में शामिल कर लिया है जो कांग्रेस के ही कद्दावर नेता रहे हैं. मतलब ये कि गोवा प्लान में भी कांग्रेस को ही झटका लगा है. ऐसा नहीं है कि शीर्ष स्तर पर झटका केवल गोवा में लगा, हरियाणा में भी ममता की पार्टी ने सीधे प्रदेश अध्यक्ष को ही तोड़कर अपने पाले में मिला लिया.
टीएमसी की राष्ट्रीय राजनीति में मजबूती के लिए चल रही बंपर भर्ती और तोड़ फोड़ में एक बड़ी राज की बात दिल्ली से सामने आ रही है. राज की बात ये है कि आने वाले वक्त में कांग्रेस नेता मनीष तिवारी और कपिल सिब्बल भी टीएमसी में नजर आ सकते हैं. राज की बात ये भी है कि संजय झा से भी टीएमसी का संपर्क बना हुआ है. मतलब ये कि दिल्ली में भी दस्तक हुई तो झटका कांग्रेस को ही झेलना पड़ेगा.
इतना ही नहीं महाराष्ट्र में जहां पर कांग्रेस ने अपने सहयोगियों एनसीपी और शिवसेना के साथ –नो पोचिंग- करार किया है, वहां पर भी टीएमसी उनकी नींद उड़ाने जा रही है. मतलब एनसीपी और शिवसेना और कांग्रेस एक दूसरे के विधायक और नेता नहीं शामिल कराएंगे, ये सहमति बनी है. मगर तृणमूल सुप्रीमो जो कि एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के बेहद करीबी हैं, उनके लिए कांग्रेस के बागी नेताओं को शामिल कराना कोई दिक्कत नहीं.
कुल मिलाकर राज की बात ये है कि टीएमसी का विस्तार कांग्रेस के लिए घातक साबित हो रहा है. जहां भी सेंध लग रही है वहां पर ज्यादातर नेता कांग्रेस से ही सामने आ रहे हैं. ऐसे में अगर यही रफ्तार टीएमसी में बनी रही तो अस्तित्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस के हालात के तृण समान होने का खतरा बढ़ जाएगा....क्योंकि टीएमसी का सिलसिलेवार प्रहार कांग्रेस के मूल पर ही हो रहा है.
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