उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उग्र हिंदुत्व के अग्निधर्मा समर्थक योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान के 17.5% दलित वोटों के लिए हनुमान जी को दलित और वंचित बता दिया. मालाखेड़ा, अलवर (राजस्थान) की एक चुनावी सभा में उनके बजरंगबली को दलित बताते ही राजनीति के साथ-साथ समाज के हर तबके में एक उबाल देखा जा रहा है. हिंदुओं के शीर्ष धार्मिक नेता और ज्योतिष एवं द्वारिका-शारदा पीठ के शंकराचार्य केसरीनंदन को ब्राह्मण बता रहे हैं, बीजेपी के आदिवासी नेतागण पवनपुत्र का संबंध अनुसूचित जनजाति से जोड़ रहे हैं, तो दलित नेता योगी के बयान को दलित-बहुजन का अपमान बता रहे हैं. किसने सोचा था कि भारत की चुनावी राजनीति अवतारों और देवी-देवताओं की ऐसी गत बना देगी.
योगी जी का एक बयान यह भी है कि रामभक्त बीजेपी को वोट दें और रावणभक्त कांग्रेस को. अर्थात राम-रावण भी राजनीतिक पुरुष हो गए! बीजेपी के केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने इस विवाद में कूदते हुए कहा है- ‘भगवान राम और हनुमान जी के युग में इस देश में कोई जाति व्यवस्था नहीं थी, कोई दलित, वंचित, शोषित नहीं था. उस समय कोई जाति व्यवस्था नहीं थी और एकमात्र आर्य जाति थी. हनुमान जी उसी आर्य जाति के महापुरुष थे.'
हनुमान जी का वर्ण, जाति और गोत्र क्या है, यह विचार और शोध का विषय हो सकता है. हनुमान ब्राह्मण थे, दलित थे, गिरिजन थे, निर्वासी थे या आदिवासी- यह सिद्ध करना यहां हमारा अभीष्ट नहीं है. उनके बारे में गोस्वामी तुलसी दास जी ने श्री रामचरित मानस के सुंदर काण्ड के प्रारंभ में श्लोक लिखा है- ‘अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।‘ पौराणिक ग्रंथों में उनके जन्म की कथाएं उल्लिखित हैं. लेकिन योगी जी का ध्येय हनुमान जी पर कोई विश्वसनीय शोध कराना नहीं, राजस्थान विधानसभा चुनाव के कड़े संघर्ष में फंसी बीजेपी के लिए दलित वोटों का इंतजाम करना है.
सर्वविदित है कि हनुमान जी की मान्यता सर्वव्यापी है. यह चुनाव की ही माया है कि जिन स्वर्ण समान देह वाले ज्ञानियों के सिरमौर समस्त गुणों के स्वामी महाबली हनुमान की जाति, वर्ण एवं वर्ग का किसी धर्मग्रंथ या पुराण तक में स्पष्ट उल्लेख नहीं है, वह बीजेपी की राजनीति में दलित और आदिवासी हो जाते हैं! योगी द्वारा हनुमान को दलित करार देते ही बीजेपी के वरिष्ठ आदिवासी नेता और अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साय तो हनुमान जी का गोत्र भी खोज लाए और उन पर एसटी की दावेदारी ठोकते हुए कह रहे हैं कि जनजातियों में हनुमान नामक गोत्र होता है. इसकी असंदिग्धता साबित करने के लिए उन्होंने तर्क दिया है कि जिस दंडकारण्य में भगवान राम ने सेना संगठित की थी, वहां मात्र जनजातियां ही निवास करती थीं, इसलिए हनुमान जी दलित नहीं, एसटी से संबंधित रखते हैं!
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने प्रतिक्रिया दी है कि योगी ने हनुमान को दलित कहकर महापाप किया है. वह कह रहे हैं कि लगता है योगी ने हनुमान चालीसा का पाठ ही नहीं किया है, जिसमें लिखा है- ‘हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै॥‘ हनुमान ने रूद्र का रूप छोड़कर वानर रूप धारण किया था. देवताओं और वानरों की कोई जाति नहीं होती है. हमारी सनातन संस्कृति में दलित शब्द का उल्लेख तक नहीं है. दलित शब्द तो राजनीति की देन है. उनका तर्क है कि अगर हनुमान जी दलित होते तो ब्राह्मणों का प्रतीक जनेऊ कैसे धारण करते और पूजनीय कैसे होते! मानस की चौपाई है- ‘पूजहिं विप्र सकल गुनहीना। शूद्र न पूजहिं ज्ञान प्रवीना॥‘ यानी गुणों से रहित होने पर भी ब्राह्मण की पूजा की जाती है, जबकि शूद्र सर्वज्ञानी होने पर भी पूजनीय नहीं है.
राजस्थान सर्व ब्राह्मण महासभा समेत देश भर के कई सवर्ण संगठन विवादित बयान के लिए योगी जी को कोर्ट में घसीटने की धमकी दे रहे हैं और तत्काल माफी मांगने को कह रहे हैं. संत-महंतों ने भी नाखुशी जाहिर की है. कुछ दलित नेताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि योगी हनुमान को दलित के रूप में पेश करके मनुस्मृति का संदेश दोबारा देना चाहते हैं कि जिस प्रकार हनुमान दास भाव से प्रभु श्री राम की एकनिष्ठ सेवा में अहर्निश लगे रहते थे, उसी प्रकार दलितों को अपना हित-अहित भूलकर द्विजों की सेवा और भक्ति करते रहना चाहिए. इसका निहितार्थ यह है कि भारतीय समाज में वही दलित सम्मान का पात्र होगा, जो दिन-रात सवर्णों के चरण दबाएगा. मनुस्मृति कहती है- ‘एक एव तु शूद्रस्य प्रभोः कर्म समादिशत्। एतेषां एव वर्णानां शुश्रूषा अनसूयया॥‘ अर्थात ब्रह्मा ने शूद्र के लिए मात्र एक ही कर्म सुनिश्चित किया है- उच्च वर्णों यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की सेवा.
हनुमान जी को दलित बताने का योगी जी का दांव उल्टा भी पड़ सकता है. जिन दलित वोटों के लिए बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने एट्रोसिटी एक्ट यानी अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम,1989 को शिथिल करने वाला सुप्रीम कोर्ट का निर्णय संसद में बदल दिया, वही दलित वोट उनके इस बयान से छिटक सकते हैं. क्योंकि इस बयान में उन्हें समानता और न्याय के लिए चलाया जा रहा उनका संघर्ष कमजोर करने तथा दलितों को सेवक के रूप में पेश करने का सनातन पैंतरा नजर आ रहा है. यह संविधान की भावना के भी विपरीत है क्योंकि संविधान किसी नागरिक को सेवक या स्वामी नहीं मानता. दूसरी तरफ पार्टी से पहले ही नाराज बैठे सवर्ण हनुमान जी को दलित बताने पर राजस्थान में पूरी तरह बिदक सकते हैं. अगर नए राजनीतिक समीकरण बन गए और हनुमान-विमर्श तेज हुआ तो बीजेपी को लेने के देने पड़ जाएंगे. तब बयान के पीछे ‘रामकाज कीन्हें बिना, मोहिं कहां विश्राम’ की भावना होने की सफाई काम नहीं देगी.
चुनावी नफा-नुकसान से हटकर बात करें तो देवी-देवताओं और धार्मिक प्रतीकों को भौतिक जगत के लौकिक समूहों, जातियों और व्यक्तियों में संपुटित एवं संकीर्णित करने से आम हिंदू के मन में अपमान एवं गहरा क्षोभ उत्पन्न होता है. उनकी आस्था में भवसागर पार कराने वाले राम को क्षत्रिय बताना, कृष्ण को यादव करार देना, सर्वशक्तिमान देवी-देवताओं को दलित और वंचित बताना, उन्हें आम इंसानों की तरह निरीह जातियों में बांटना धर्मभीरु भारतीय जनमानस के साथ खुला खिलवाड़ है. बात-बात पर तुष्टीकरण की रट लगाने वाले हिंदू धर्म के स्वयंभू ठेकदारों, नेताओं और राजनीतिक दलों को क्या अपने बयानों से हिंदू भावनाओं को गहरी ठेस लगने का खयाल नहीं रखना चाहिए?
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