राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पार्टी आलाकमान के समक्ष जो शक्ति प्रदर्शन दिखाया है, वह उनके लिए नफ़े का सौदा साबित होगा या नुकसान का? इसका फैसला तो देर शाम दिल्ली में होने वाली कांग्रेस आलाकमान की बैठक के बाद ही पता चलेगा. लेकिन ये तो तय है कि उन्होंने अपने खेमे के विधायकों की ताकत की नुमाइश के जरिये पार्टी नेतृत्व के लिए नई मुसीबत खड़ी करने के साथ ही उसे ये संदेश भी दे दिया है कि उनकी मर्जी के बगैर नए सीएम के नाम पर फैसला नहीं हो सकता. 


पंजाब का सियासी इतिहास दोहराने के मुहाने पर खड़े राजस्थान के इस सियासी संकट को सुलझाने के लिए अब कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता कमलनाथ को कमान सौंपी है. उन्हें दिल्ली तलब किया गया है और गहलोत व सचिन पायलट खेमे के विधायकों को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या वे दोनों गुटों के विधायकों को इतनी आसानी से मना पाएंगे?


बागी विधायकों के तेवरों से तो नहीं लगता कि वे किसी भी सूरत में सचिन पायलट को नया सीएम बनाने के लिए राजी हो जायेंगे. कांग्रेस के लिए बड़ा खतरा ये भी उसने इस झगड़े को जल्द ही नहीं सुलझाया, तो केंद्र सरकार इसी ताक में है कि वहां संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए राज्यपाल से वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश मांग ली जाये. हालांकि बीजेपी नेताओं की तरफ से मिले संकेतों के अनुसार ये इतना आसान भी नहीं होगा. अगर ऐसा होता है तो पूरा मामला केंद्र बनाम राज्य की कानूनी लड़ाई में तब्दील हो जायेगा. 


बेशक कांग्रेस के 80 से ज्यादा विधायकों ने स्पीकर सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है लेकिन स्पीकर ने उन इस्तीफों को अभी मंजूर नहीं किया है, लिहाजा संवैधानिक संकट पैदा होने वाले हालात फ़िलहाल तो नहीं उपजे हैं. लेकिन आलाकमान भी अगर सचिन पायलट को ही अगला सीएम बनाने पर अड़ा रहा तब अवश्य ही ये स्थिति बन सकती है. सीपी जोशी को सीएम गहलोत का सबसे करीबी समझा जाता है और नए सीएम के लिए भी गहलोत की पहली पसंद वही हैं, लिहाजा आलाकमान के अड़ियल रुख के बाद गहलोत स्पीकर को सलाह दे सकते हैं कि वे सभी विधायकों के इस्तीफ़े मंजूर कर लें. 


दरअसल, राजनीति में घाट-घाट का पानी पी चुके सीएम गहलोत ने पिछले हफ़्ते भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी से हुई मुलाकात में तो पायलट को अगला सीएम बनाने की बात मान ली लेकिन राजस्थान लौटकर अपनी सियासी गोटी खेलते हुए आलाकमान के सामने ऐसी मुगली घुट्टी रख दी, जो न तो निगली जा सकती है और न ही ठुकराई. 


रविवार को जयपुर में जो कुछ हुआ, उसकी पूरी स्क्रिप्ट गहलोत की तैयार की हुई थी. वे नहीं चाहते थे कि आलाकमान द्वारा दिल्ली से भेजे गए पर्यवेक्षक विधायक दल की बैठक के जरिये कोई फ़ैसला ले पायें.  इसलिये बैठक शुरु होने से पहले ही गहलोत खेमे के विधायकों ने बगावती सुर अपनाते हुए आलाकमान को एक साथ कई संदेश दे दिये. पहला तो ये कि सचिन पायलट बतौर सीएम उन्हें मंजूर नहीं हैं. दूसरे, यह कि स्पीकर को एक साथ इतने विधायकों का इस्तीफा देना आलाकमान पर दबाव बनाने की गहलोत की रणनीति का ही हिस्सा था. और, तीसरा पेंच ये फंसा दिया जिस पर अब आलाकमान भी सोचने पर मजबूर हो गया है कि आख़िर रास्ता क्या निकाला जाए. 


दरअसल, गहलोत खेमे के विधायकों ने रविवार की रात अजय माकन के सामने जो तीन मांगें रखीं थीं, उनमें से एक अहम मांग यह है कि 19 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद नया मुख्यमंत्री चुना जाए और इस प्रस्ताव को उसके बाद ही अमल में लाया जाए. उनकी दलील है कि चूंकि गहलोत स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष पद के प्रत्याशी है,  इसलिए यह हितों का टकराव होगा, इसलिये कि कल यदि वे अध्यक्ष चुन लिए जाते हैं,  तो क्या वे इस पर फैसला करेंगे. उनकी दूसरी शर्त ये थी कि कोई विधायक खड़गे व माकन से अलग-अलग नहीं मिलेगा, बल्कि वे 10-12 के अलग-अलग समूहों में मुलाकात करेंगे. जबकि दोनों पर्यवेक्षक प्रत्येक विधायक से अलग-अलग बात करना चाहते थे. 


गहलोत गुट के विधायक इस बात पर भी अड़े हुए थे कि थी कि नया सीएम उन 102 विधायकों में से ही चुना जाना चाहिए,  जो 2020 में हुई बगावत के वक्त गहलोत के प्रति वफादार रहे थे,  न कि सचिन पायलट या उनके समूह के प्रति माकन के मुताबिक कांग्रेस विधायकों ने जोर देकर कहा था कि बैठक में पारित होने वाला प्रस्ताव उक्त तीन शर्तों के अनुरूप हो,  इस पर हमने कहा था कि कांग्रेस के इतिहास में कभी भी शर्तों के साथ कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया है.  


लिहाज़ा, नतीजा यही हुआ कि खड़गे व माकन को बैरंग ही वापस दिल्ली लौटना पड़ा. बेशक आलाकमान का सचिन पायलट को पूरा समर्थन है लेकिन इस सियासी घमासान से इतना तो जाहिर हो गया कि विधायकों  पर उनकी उतनी पकड़ नहीं है. हालांकि सोमवार को जोधपुर में कई जगहों पर सचिन पायलट के पोस्टर लगा दिए गये इन पोस्टर में लिखा है कि 'सत्यमेव जयते  नए युग की तैयारी. गौरतलब है कि जोधपुर सीएम गहलोत का गृह नगर है और वे यहीं से हमेशा विधायक चुने जाते रहे हैं अब देखना ये है कि अहंकार की इस लड़ाई में सत्य पराजित होता है या फिर उसकी जीत होती है!


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