राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई से क्या बदलेगी तमिलनाडु की सियासत?
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के फैसले पर सोनिया गांधी के रुख को दरकिनार करते हुए कांग्रेस ने सख्त नाराजगी जताई है. हालांकि कानूनी व्याख्याकार इस फैसले को सही ठहराते हैं, लेकिन इसका एक बड़ा खतरा ये है कि इससे आतंकवाद को फलने-फूलने का मौका मिलेगा.
सवाल ये भी है कि इस फैसले का तमिलनाडु की राजनीति पर कितना असर पड़ेगा क्योंकि मुख्यमंत्री एम के स्टालिन की अगुवाई वाली डीएमके सरकार में कांग्रेस भी भागीदार है. वहीं डीएमके, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की पार्टनर है, जो लंबे समय से इन दोषियों की रिहाई के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही थी. आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस समूचे विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में जुटी हुई है, लेकिन इस फैसले ने पार्टी के सामने ये धर्म संकट खड़ा कर दिया है कि वह अपने नेता के हत्यारों की रिहाई की पैरवी करने वाली डीएमके को अब साथ रखेगी या फिर उससे नाता तोड़ेगी?
तमिलनाडु के पिछले लोकसभा चुनाव में भी डीएमके और कांग्रेस के बीच सीटों का गठबंधन हुआ था और तब यूपीए ने 39 में से 38 सीटों पर कब्जा जमाया था. तब डीएमके को 23 ,कांग्रेस को 8 और अन्य छोटे दलों ने 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रिहाई के इस फैसले ने तमिलनाडु के सियासी गणित को बदलकर रख दिया है. अगले चुनाव में कांग्रेस अगर डीएमके के साथ सीटों का गठबंधन करती है, तो इसका गलत सियासी संदेश जाने का खतरा है और यदि अकेले लड़ती तो अपनी जमीन कमजोर होने का ये डर बना रहेगा कि तब उसे आठ सीट भी मिलती है या नहीं. लिहाजा इस फैसले ने कांग्रेस को एक ऐसे सियासी संकट में फंसा दिया है, जिसका सीधा असर लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की एकता पर पड़ना तय है.
राजीव गांधी की हत्या के दोषियों की रिहाई पर कांग्रेस ने सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए यहां तक कहा है कि पार्टी सोनिया गांधी के मत से सहमत नहीं है. पार्टी नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस फैसले पर कई सवाल तो उठाए, लेकिन साथ ही मीडिया के सामने ये भी स्पष्ट कर दिया कि, "सोनिया गांधी अपना मत देने का अधिकार रखती हैं, लेकिन मैं पूरे सम्मान के साथ कहता हूं कि पार्टी उनके मत से सहमत नहीं है और उन्हें भी यह बात स्पष्ट रूप से बता दी गई है."
गौरतलब है कि कुछ साल पहले सोनिया गांधी ने इस मामले की एक दोषी नलिनी को माफ कर दिया था. राजीव गांधी हत्याकांड में जब नलिनी को गिरफ़्तार किया गया, तब वो गर्भवती थीं. उसकी प्रेग्नेंसी को दो महीने हो गए थे. नलिनी श्रीहरन को आत्मघाती दस्ते का सदस्य होने का दोषी पाया गया था. नलिनी को पहले तीन अन्य दोषियों के साथ मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सोनिया गांधी की अपील के बाद नलिनी की सजा को घटाकर उम्र कैद में तब्दील कर दिया गया था.
सोनिया गांधी ने कहा था कि नलिनी की गलती की सजा एक मासूम बच्चे को कैसे मिल सकती है, जो अब तक दुनिया में आया ही नहीं है, लेकिन कांग्रेस नेता सिंघवी ने सोनिया के उस रुख से हटकर पार्टी का स्टैंड साफ करते हुए कहा, "इस मामले में हमारे पास जो भी विकल्प होंगे उनका हम इस्तेमाल करेंगे. राजीव गांधी का बलिदान हम व्यर्थ नहीं जाने देंगे." सिंघवी ने कहा कि हमारी कोर्ट से अपील है कि वह दोषियों को रिहा न करें. पूर्व पीएम की हत्या भारत के अस्तित्व पर हमला है. इसमें कोई राजनीति का रंग नहीं होता. इस तरह के अपराध में किसी को रिहा नहीं किया जा सकता. पीएम पर हमला आम अपराध नहीं हो सकता. प्रदेश सरकार दोषियों का समर्थन कर रही थी. उस वजह से कोर्ट को इस तरह का फैसला देना पड़ा. जबकि केंद्र सरकार प्रदेश सरकार के मत से अहसमत नहीं थी. सिंघवी खुद एक बड़े वकील हैं लेकिन शुक्रवार(11 नवंबर) को उन्होंने इस फैसले को लेकर अजीबो गरीब तर्क भी दिया.
उनके मुताबिक, हमारी न्याय व्यवस्था ने लोगों की भावना का खयाल नहीं रखा. जबकि इस तथ्य से तो वे स्वयं वाकिफ हैं कि कानून लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला नहीं देता बल्कि संविधान के प्रावधानों के मुताबिक ही न्याय करता है. इसीलिए इंसाफ की देवी की आंखों पर काली पट्टी बंधी रहती है. हालांकि इस फैसले की आलोचना करने के बहाने सिंघवी ने एक गंभीर मुद्दा भी उठाया है, जिस पर कि हमारी न्यायपालिका को संजीदगी के साथ गौर करने की जरूरत है. उनका कहना है कि भारतीय जेलों में लाखों लोग ऐसे हैं जो बिना अपराध के बंद हैं. उन पर ध्यान न देकर कर आप अपराधियों को रिहा कर रहे हैं.
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