उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के बिगड़ते हालात पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई और देश की सबसे बड़ी अदालत की फटकार को 24 घंटे भी नहीं बीते कि प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक विवादित छवि वाले हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की उसके दफ्तर में घुसकर हत्या कर दी गई। लखनऊ में दिनदहाड़े हुई हत्या की इस वारदात ये साफ है कि उत्तर प्रदेश में कानून के राज के तमाम दावे फिलहाल बेमानी हैं, लेकिन कमलेश तिवारी की हत्या सिर्फ प्रदेश की कानून व्यवस्था पर ही सवाल नहीं है बल्कि भारत के सामने पिछले लंबे वक्त से खड़ी एक चुनौती की तरफ इशारा है। क्योंकि इस मामले की शुरुआती जांच में ये बात निकल कर सामने आ रही है कि कमलेश तिवारी की हत्या के पीछे आतंकी संगठन आईएसआईएस का हाथ है। हालांकि अभी तक आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं की गई है।
कमलेश तिवारी 2015 में धर्म विशेष के खिलाफ एक आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद सुर्खियों में आया था। विवादित बयान पर एक मुस्लिम संगठन ने उसका सिर कलम करने का फतवा जारी किया था। जिसके बाद रासुका के तहत कमलेश को जेल भेज दिया गया था। बाद में इस मामले में कमलेश को जमानत तो मिल गई, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हाल ही में कमलेश तिवारी पर लगा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून हटा दिया था। फिर भी कमलेश तिवारी लगातार कट्टरपंथियों के निशाने पर था और आज उसकी हत्या कर दी गई, लेकिन ये वारदात ऐसे वक्त हुई है जब देश के सबसे संवेदनशील मामले में चंद दिनों बाद फैसला आना है। ऐसे में कमलेश तिवारी की हत्या की टाइमिंग भी कई सवाल खड़े करने वाली है।
मौके पर मौजूद कमलेश तिवारी की पार्टी के कार्यकर्ता ने बताया कि दो लोग मिठाई के डिब्बे में भगवा कपड़े पहने दो युवक उसके दफ्तर में आए और बातचीत के दौरान चाकुओं से कमलेश पर हमला बोल दिया और फिर गोलियां दागनी शुरु कर दीं। कमलेश तिवारी की हत्या के बाद उनका परिवार अब कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहा हैं। हालांकि कमलेश तिवारी की मां की पीड़ा में कुछ बातें अमर्यादित लग सकती हैं जिसमें उन्होने लॉ एंड ऑर्डर पर गंभीर सवाल खड़े किये हैं।
कमलेश तिवारी हत्याकांड को यूपी के डीजीपी ओपी सिंह एक आपराधिक वारदात बता रहे हैं। लेकिन वो इस वारदात की जांच में एसटीएफ को लगाने की भी बात कर रहे हैं। तो इस हत्याकांड के बाद अब सवाल उठ रहे है कि
क्या कमलेश तिवारी की हत्या देश में ISIS की मौजूदगी का प्रमाण है?
क्या संवेदनशील समय में एक हिंदूवादी नेता की हत्या किस तरफ इशारा कर रही है?
और राजधानी में दिनदहाड़े हत्या क्या कानून-व्यवस्था के मुंह पर तमाचा है?
कुल मिलाकर एक बात तो तय है कि उपचुनाव के ऐन पहले और इस संवेदनशील वक्त में हिंदू समाज पार्टी के मुखिया की हत्या का सियासी फायदा लेने से नेता चूकेंगे नहीं, लेकिन मौत पर सियासत की जगह अगर राजनीति इस वक्त आत्म अवलोकन करे तो सत्ता से लेकर विपक्ष तक सियासत निखर सकती है। इस आत्मअवलोकन में प्रदेश की कानून-व्यवस्था भी दुरुस्त हो सकती है और इस संवेदनशील मुद्दे से बिगड़ने वाले संभावित हालात को भी काबू में किया जा सकता है। अगर आईएसआईएस की सामने आ रही बात में जरा सी भी सच्चाई तो ये मामला और भी गंभीर हो जाता है, इसलिए इस मामले में जांच रिपोर्ट आने से पहले पूरी संवेदनशीलता बनाए रखना निहायत जरूरी है, साथ ही सरकार के लिए कानून व्यवस्था के मसले पर पहले से ज्यादा सख्ती बरतने की जरूरत है।