बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय में फिरोज खान नाम के प्रोफेसर की नियुक्ति का विवाद बढ़ता जा रहा है। शिक्षक का सबसे बड़ा धर्म छात्र-छात्राओं को शिक्षा देना होता है, लेकिन संस्कृत में पीएचडी फिरोज खान की धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्ति होने के बाद अब शिक्षक के धर्म और धर्म से जुड़ी शिक्षा पर नई बहस शुरु हो चुकी है।
बहस इस बात को लेकर है कि गैरमजहब की जुबान में अगर कोई शख्स ऊंची तालीम हासिल करे और वो सिर्फ इसलिए पढ़ा ना सके क्योकि उसका ताल्लुक उस मजहब से नहीं है। बीएचयू में फिरोज खान का विरोध कर रहे धर्म विज्ञान के छात्रों के अपने तर्क हैं और उनके इन तर्कों को फैकल्टी के टीचरों का भी समर्थन मिल रहा है।
बीएचयू के धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए फिरोज खान राजस्थान के बगरू के रहने वाले हैं जो हिंदू परंपरा और संस्कृत के माहौल में पले-बढ़े। फिरोज खान ने 5वीं क्लास से संस्कृत पढ़ना शुरु किया था बाद में उन्होने राष्ट्रीय संस्कृत शिक्षा संस्थान से एमए और पीएचडी की। फिरोज के पिता रमजान खान भी संस्कृत में शास्त्री डिग्री हासिल कर चुके हैं। रमजान खान भजन गाते हैं और गोसेवा करते हैं और उनके समाज के लोगों को इसमें कोई ऐतराज नहीं दिखता है। बेटे कि नियुक्ति पर हो रहे विवाद से उनके पिता रमजान खान दुखी हैं
किसी गैरमजहब के शिक्षक की संस्कृत विभाग में नियुक्ति आज भले ही बहस की वजह बन गई हो लेकिन कभी ये बातें बेमानी हुआ करती थीं कि किस धर्म का शिक्षक कौन सा विषय पढ़ा रहा है। 32 साल तक गोरखपुर यूनिवर्सिटी में संस्कृत विभाग में पढ़ाने वाले प्रोफेसर असहाब अली अब बीएचयू में फिरोज खान की नियुक्ति के बाद उपजे विवाद से निराश हैं और इस मुद्दे को सबके लिए बड़ा इम्तिहान बता रहे हैं।
बीएचयू में शिक्षा और शिक्षक के मजहब को लेकर चल रहे इस विवाद पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद शरीफ ने कहा है कि बीएचयू में फिरोज खान के चयन की प्रक्रिया सही थी। 12 सदस्यों की समिति ने फिरोज खान को चुना लेकिन बीएचयू के वाइस चांसलर और चयन समिति से एक चूक हो गई कि बीएचयू में धर्म संकाय विभाग में शिलापट्ट पर लिखा हुआ है 'कर्मकांड विभाग में सिर्फ हिंदू धर्म के शिक्षक पढ़ाएंगे' ऐसे में फिरोज खान कि नियुक्ति से पहले उन्हे बीएचयू के रेग्युलेशन को भी देखना चाहिए था।
प्रो. मोहम्मद शरीफ ने इस मामले में अपनी निजी राय जाहिर करते हुए कहा है कि कर्मकांड की शिक्षा उसी धर्म के शिक्षक को देनी चाहिये... और इस मुद्दे का यही समाधान हो सकता है कि फिरोज खान को कोई और विषय दे दिया जाए
जिस तरह शिक्षित होना समाज के हर वर्ग का अधिकार है, ऐसे में शिक्षा व्यवस्था को धर्म की लकीर से विभाजित नहीं किया जाना चाहिये। हमारे संविधान में भी जात-पात या मजहब को लेकर किसी तरह का भेदभाव नहीं रखा गया है। बीएचयू जैसे दुनियाभर में मशहूर उच्च शिक्षण संस्थान में किसी शिक्षक की नियुक्ति उसकी योग्यता की बदौलत ही होती है। छात्रों और अभिभावकों की नजर में भी पढ़ाने का पैमाना सिर्फ योग्यता होनी चाहिए ना कि मजहब। योग्य शिक्षक से पढ़कर जब छात्र जीवन में आगे बढ़ेंगे तो उनकी भी योग्यता ही परखी जाएगी। यही नजरिया छात्रों और संस्थान दोनों की प्रतिष्ठा बढ़ा सकता है।