पीएफआई...यानि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया...पीएफआई दावा तो करता है सामाजिक संगठन होने का...लेकिन इसकी हकीकत सामने लाती है यूपी पुलिस...इसकी हकीकत सामने लाती है खुद इसकी हरकतें...नागरिकता कानून को लेकर कुछ लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं...ऐसे लोगों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन में आग लगाने का काम कर रहा है पीएफआई...ये दावा करती है यूपी पुलिस...इस दावे के साथ कई सबूत भी पेश करती है यूपी पुलिस...और अब यूपी पुलिस ने कस ली है कमर...पूरे उत्तर प्रदेश में फैले पीएफआई के जाल को काटने की दिसंबर महीने में यूपी के कई जिलों में हुई हिंसा की जांच कर रही पुलिस ने कई जिलों से... पिछले 4 दिनों में पीएफआई के 108 सदस्यों को गिरफ्तार किया है... इन सभी पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान... सड़कों पर प्रदर्शन करने उतरी भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने... उन्हे सरकार के खिलाफ भड़काने... और हिंसक विरोध प्रदर्शनों के लिए आर्थिक मदद पहुंचाने का आरोप है।


अबतक की जांच में सामने आया है कि पीएफआई की मौजूदगी पश्चिम से लेकर पूर्वी यूपी तक करीब हर जिले में है, लेकिन प्रदेश के 12 जिलों शामली... मुजफ्फरनगर... मेरठ... बिजनौर... लखनऊ... बाराबंकी... गोंडा... बहराइच... वाराणसी... आजमगढ़.. गाजियाबाद और सीतापुर में इस संगठन की जड़ें काफी गहराई तक फैली हुई हैं। अपनी इसी मौजूदगी का फायदा उठाते हुए... नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शन की आड़ में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया नाम का ये संगठन अपने कट्टरपंथी एजेंडे को आगे बढ़ाता रहा है। पीएफआई यानि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर आरोप है कि वो सामाजिक कामों की आड़ में इस्लामिक चरमपंथ को बढ़ावा दे रहा है... यूपी में 'सीएए' के खिलाफ हिंसा के साथ ही... पीएफआई पर प्रदर्शनकारियों को हिंसा भड़काने लिए उकसाने और हिंसक प्रदर्शनों के लिए फंड मुहैया करवाने का आरोप है।


पीएफआई पर 2010 में केरल में एक प्रोफेसर का हाथ काटने का आरोप है... ये संगठन उसी तरह काम करता है जैसे प्रतिबंधित संगठन 'सिमी' की गतिविधियां थीं... क्योंकि 'सिमी' पर बैन के बाद उसके सदस्य 'पीएफआई' में शामिल हो गए थे...'पीएफआई' का पूर्व अध्यक्ष, प्रतिबंधित संगठन 'सिमी' का महासचिव रह चुका है... इस संगठन पर काफी पहले से देश और समाज विरोधी गतिविधियां चलाने के आरोप हैं... पीएफआई पर हत्या के 27, हत्या के प्रयास के 86 और सांप्रदायिक दंगे भड़काने के 106 मामले दर्ज हैं... और मुंबई.. पुणे के अलावा कई शहरों में हुए बम धमाकों में भी पीएफआई का नाम आ चुका है... ऐसे ही आरोपों की वजह से झारखंड में इस संगठन पर प्रतिबंध लग चुका है। 2018 में केरल में भी 'पीएफआई' पर बैन की मांग उठी थी, लेकिन वहां की सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया था।


इसी अहम मुद्दे से जुड़े हैं हमारे आज के कुछ सवाल... पहला सवाल... क्या उत्तर प्रदेश में पीएफआई की जड़ काटने में यूपी पुलिस कामयाब होगी... दूसरा सवाल क्या विरोध प्रदर्शनों में हिंसा फैलाने के आरोपों से घिरे पीएफआई पर प्रतिबंध लगेगा... और तीसरा बड़ा सवाल क्या पीएफआई विरोध प्रदर्शनों की आड़ में यूपी में कट्टरपंथ को हवा दे रहा है।


नागरिकता कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से हो रहे विरोध प्रदर्शनों की आड़ में पीएफआई जैसे संगठनों की भूमिका ना सिर्फ समाज, बल्कि देश के लिये भी बेहद खतरनाक है। उत्तर प्रदेश पुलिस तो ऐसे नफरतबाजों के पीछे लगी ही है, प्रवर्तन निदेशालय के सूत्रों से एबीपी गंगा ने जो जानकारी आपको दी है, वो खुद भी सबूतों का एक बड़ा इशारा है। अब सरकार के स्तर पर तो सख्ती होनी ही चाहिये हमे और आपको भी समाज में छिपे विरोधी तत्वों की पहचान के लिए आगे आना चाहिये, ताकि हमारा सामाजिक ताना-बाना भी सुरक्षित रहे और देश प्रदेश भी।