तीन दिन पहले आपके अपने चैनल एबीपी गंगा ने बताया था कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करने के लिए पुलिसिंग सिस्टम में बड़े फेरबदल करने जा रही है... जिसके तहत प्रदेश में कमिश्नर सिस्टम की शुरुआत की जा सकती है... और एबीपी गंगा की उस खबर पर आज मुहर लग गई जब यूपी कैबिनेट की बैठक में कमिश्नर प्रणाली को लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी... कैबिनेट के इस फैसले के बाद यूपी के दो शहरों राजधानी लखनऊ और नोएडा में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी अब पुलिस कमिश्नर के हाथों में होगी... इस फैसले को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति से लिया गया कदम बताया... दरअसल पांच दशक से मांग उठाई जा रही थी कि उत्तर प्रदेश में पुलिसिंग में सुधार के लिये कमिश्नर व्यवस्था लागू की जाए... लेकिन कभी भी फैसले पर किसी सरकार ने अमल नहीं किया... हालांकि 2009 में मायावती सरकार ने नोएडा और गाजियाबाद को मिलाकर वहां कमिश्नर व्यवस्था लागू करने की कोशिश की थी.. तब प्रदेश की प्रभावशाली आईएएस लॉबी के विरोध की वजह से ये व्यवस्था लागू नहीं की जा सकी थी.. लेकिन 11 साल बाद उत्तर प्रदेश में कमिश्नर सिस्टम लागू कर दिया गया है... और आज के दिन तो कम से कम इसे योगी सरकार की राजनीति इच्छाशक्ति कहा ही जा सकता है...


योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश में कमिश्नर सिस्टम की शुरुआत राजधानी लखनऊ और गौतमबुद्धनगर से की है... जिसकी बड़ी वजह है दोनों शहरों की आबादी, लखनऊ की आबादी 40 लाख से ज्यादा है जबकि गौतमबुद्धनगर की आबादी 25 लाख से ज्यादा है... ऐसे में इन दो शहरों के लॉ एंड ऑर्डर को सुधारने के लिए लखनऊ में बतौर पुलिस कमीश्नर सुजीत पांडेय को और गौतमबुद्धनगर में आलोक सिंह को कमिश्नर बनाया गया है... लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय इस वक्त प्रयागराज जोन के एडीजी हैं... जनवरी 2019 में उन्हे प्रमोट करते हुए एडीजी बनाया गया था... इसके पहले सुजीत पांडेय स्पेशल टास्क फोर्स के आईजी रह चुके हैं... और उन्होने 7 साल तक सीबीआई में भी अपनी सेवा दी है... जिसमें वो पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम हिंसा की जांच टीम में भी शामिल थे... सुजीत पांडेय 1994 बैच के आईपीएस अफसर हैं...


इसके अलावा गौतमबुद्ध नगर के पुलिस कमीश्नर बनाए गए आलोक सिंह इस वक्त मेरठ जोन के आईजी के पद पर तैनात हैं... जिन्होने अपनी अगुवाई में मेरठ में तेल माफिया की कमर तोड़ दी... आलोक सिंह यूपी पुलिस में भ्रष्टाचार के मामलों की भी जांच कर रहे हैं... नोएडा के कमिश्नर बनाए गए आलोक सिंह ने फाइनेंस से एमबीए की डिग्री हासिल की है... और वो 1995 बैच के IPS अफसर हैं।


लखनऊ और गौतमबुद्धनगर में पुलिस कमिश्नर की तैनाती को यूपी की कानून व्यवस्था सुधारने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर देखा जा रहा है... हालांकि 10 लाख ये ज्यादा आबादी वाले हर शहर में पुलिस कमिश्नर की तैनाती की जरूरत बताई जाती रही है... लेकिन सरकार ने अभी सिर्फ दो शहरों से ही पुलिस कमिश्नर तैनात करने की शुरुआत की है... इस सिस्टम में पुलिस ज्यादा ताकतवर और सक्षम होती है क्योंकि पुलिस कमिश्नर के पास ज्यादा अधिकार होते हैं... कमिश्नर के पास कानून व्यवस्था से जुड़ा हर फैसला लेने का हक होता है... पुलिस को जिलाधिकारी से किसी चीज की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होती... पुलिस अपराधियों पर सीधे-सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, गुंडा एक्ट और गैंग्स्टर एक्ट लगा सकती है... पुलिस ही जिले में 144, 109, 110, 145 जैसी धाराएं लगाने का फैसला करती है... कमिश्नर सिस्टम में होटल, बार, हथियार लाइसेंस भी पुलिस ही जारी करती है... और जिले में धरना-प्रदर्शन या कार्यक्रम की मंजूरी भी डीएम की बजाय पुलिस देती है... शहर में दंगे-फसाद की हालत में बल प्रयोग करना है या नहीं इसका फैसला पुलिस करती है... किसी जमीन विवाद का मामला पुलिस के कार्यक्षेत्र में आता है... और लेखपाल को जमीन की पैमाइश का आदेश कमिश्नर ही देता है.. जिले में अतिक्रमण की शिकायत पर सीधे पुलिस कार्रवाई हो सकती है... इसीलिये देश के सौ शहरों में कानून व्यवस्था की कमान पुलिस कमिश्नर के पास होती है.।


अपराध पर अंकुश लगाने के लिए यूपी सरकार के कमिश्नर सिस्टम लागू करने के फैसले का स्वागत होना चाहिये। हालांकि पुलिस रिफॉर्म की पांच दशकों पुरानी मांग का ये छोटा सा कदम है, लेकिन कानून व्यवस्था दुरुस्त करने में कमिश्नर सिस्टम को लागू करने के बड़े परिणाम सामने आ सकते हैं। योगी सरकार के इस फैसले से उत्तर प्रदेश में व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की उम्मीद भी की जा रही है, ऐसे में कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद प्रदेश की पुलिस को भी अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से निभाने की जरूरत है, ताकी जनता को भी ये बदलाव जमीनी तौर पर दिखाई पड़े