राम मंदिर पर 4 दिन की सुनवाई बाकी, दिवाली से पहले आ जाएगा फैसला ?
देश के इतिहास में सबसे बड़े मुकदमे के तौर पर दर्ज अयोध्या का मामला...माना जा रहा है कि दिवाली तक निपट जाएगा...अब फैसला किसके पक्ष में होगा इसके लिए तो इंतजार करना होगा...
नवरात्रि के बाद अब विजयदशमी का मौका है...जाहिर है अयोध्या में माना जाता है कि भगवान श्रीराम की वापसी के साथ राम राज की स्थापना हुई...हजारों साल और कई युगों बाद अयोध्या को एक बार फिर इंतजार है प्रभु श्रीराम का....वापसी चाहिए राम मंदिर के रूप में...जिसकी उम्मीद है सुप्रीम कोर्ट के फैसले से...जहां फैसला होना है कि रामलला का जन्म स्थान कौन सा है...और विवादित ढांचे की जगह आखिर क्या होगा....?
देश के इतिहास में सबसे बड़े मुकदमे के तौर पर दर्ज अयोध्या का मामला...माना जा रहा है कि दिवाली तक निपट जाएगा...अब फैसला किसके पक्ष में होगा इसके लिए तो इंतजार करना होगा...लेकिन जन्मभूमि का मुद्दा उत्तर प्रदेश के साथ ही देश की सामाजिक और सियासी दशा-दिशा बदलने वाला रहा है...खास कर भाजपा के लिए तो यह मुद्दा ही सियासी रामबाण साबित हुआ।...यही वजह है कि यूपी की सत्ता में वापसी करते ही और योगी आदित्यानाथ के हाथ जिम्मेदारी आते ही...उन्होंने अयोध्या में भव्य दिवाली का फैसला किया...तब से हर साल ये सिलसिला चलता आ रहा है...लेकिन इस बार राम मंदिर के मसले पर धैर्य रख पाना मुश्किल हो रहा है...जिम्मेदार ओहदे पर बैठे लोग फैसले के पहले उत्तर प्रदेश को खुशखबरी देने का दावा कर रहे हैं....वो भी तब जब पीएम मोदी खुद इस मसले पर नेताओं के बयानों को लेकर नाराजगी जता चुके हैं...और सभी से कोर्ट के फैसले तक सब्र रखने को कह चुके हैं...
मगर उम्मीदों के सातवें आसमामन पर मौजूद भाजपा के नेताओं का ये जोश अब संभालना मुश्किल दिख रहा है ...लेकिन फैसले के लिहाज से सरकार की तैयारियां क्या है...ये बड़ा सवाल है...वैसे मुख्यमंत्री और डीजीपी सभी जिलों के अधिकारियों से मुकम्मल इंतजाम का दावा कर चुके हैं...लेकिन जिस तरह सुनवाई और फैसले के बीच का वक्त घटा है...उसे देखते हुए सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम दोनों सरकारें कर पाई हैं...इसका इम्तेहान तो फैसले के बाद होगा... इस मसले को हम कई पहलुओं से समझने की कोशिश करेंगे...लेकिन उससे पहले आपको सुनवाते हैं कि यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने राम मंदिर को लेकर क्या कहा है... सिर्फ सियासत ही नहीं...बल्कि संत समाज भी सुप्रीम कोर्ट के रूख से खुश नजर आ रहा है...और उसे भी यकीन है कि देश की सबसे बड़ी अदालत का फैसला हिंदुओं को पक्ष में आएगा.... संत समाज के अलावा राम मंदिर से जुड़े चर्चित चेहरे जैसे साध्वी ऋतंभरा जैसी हस्तियों को भी लगता है कि राम मंदिर पर फैसला हिंदू पक्ष में आएगा....
सिर्फ भाजपा ही नहीं बल्कि संतों को भी लग रहा है कि राम मंदिर का सपना जल्द ही पूरा होगा.... ज्यों-ज्यों दिवाली और राम मंदिर के मसले पर सुनवाई की आखिरी तारीखें करीब होती जा रही है...भाजपा और यूपी सरकार के दूसरे नेता और मंत्री भी राम मंदिर को लेकर अधीर होते जा रहे हैं...अयोध्या की तैयारियों में जुटे मुख्यमंत्री योगी ने प्रदेश और देश को जल्द ही बड़ी खुशखबरी मिलने का एलान कर दिया....
मुख्यमंत्री योगी के बयान पर सियासत गरमाई तो उन्होंने सफाई देने में देर नहीं की... तो जिस सालों पुराने अयोध्या विवाद के सुलझने का इंतजार किया जा रहा है...फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ देश देख रहा है...सरकार और संत समाज के साथ विवाद से जुड़ा मुस्लिम पक्ष देख रहा है...उसमें एक बड़ा मोड़ सुनवाई के 37वें दिन तब आ गया...जब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की मियाद एक दिन और घटा दी....
अयोध्या का फैसला जो भी हो...सांप्रदायिक सद्भाव की अपील लगातार की जा रही है....सौ साल से भी ज्यादा पुराने इस केस में दलीलों को रखना कम चुनौती नहीं है...क्योंकि इतिहास की प्रमाणिकता, उसमें बदलाव और सबूतों के साथ अपने पक्ष में तर्क रखना...जाहिर है इस केस के पैरोकारों के साथ उनका पक्ष रखने वालों वकीलों के लिए भी आसान नहीं है...तो आखिर किन बाधाओं और मुश्किलों को पार कर फैसले को अपने हक में करने में वकील जुटे हैं...मुस्लिम पक्ष की तरफ से केस लड़ रहे जफरयाब जिलानी ने अयोध्या पर फैसले से पहले आ रहे बयानों को लेकर सख्त आपत्ति जताई है...जिलानी का दावा है कि ये सब चुनावी फायदे के लिए हो रहा है...पीएम भी इन बयानों को लेकर गंभीर नहीं हैं... वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के बयानों का बचाव करने में सरकार जुट गई है....सरकार की तरफ से प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने बयानों को अदालती बहस का आधार बताया है...और दावा किया है कि इसे जबरन तूल दिया जा रहा है....
तो इस चर्चा के बाद बस तुलसीदास याद आ रहे हैं...
कलियुग केवल नाम अधारा सुमिर सुमिर नर उतरिहिं पारा कहते हैं कि कलियुग में राम नाम ही सब सवालों का जवाब है। वैसे इसका मतलब तो अध्यात्मिक था, लेकिन सियासी तौर पर भी राम सब पर कृपालु ही रहे हैं। जो राम मंदिर के पक्ष में थे उनके भी और जो विपक्ष में उनको भी फले। सियासत के साथ-साथ तमाम लोग खूब फले फूले लेकिन स्वयं राम जैसे राज्याभिषेक से पहले वनवास गए थे। उसी तरह अभी भी रामलला पहले तो अयोध्या से निर्वासित हुए। और अब टाट में..। मगर यह समझना होगा कि राम सिर्फ एक प्रतिमा नहीं, बल्कि एक विचार और जीवन संस्कृति हैं। वह एक ऐसे मर्यादापूर्ण और समावेशी समाज के द्योतक हैं जिसमें शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं। अब जबकि अयोध्या से लेकर पूरे देश के लिए शुभ दीपावाली के संकेत आ रहे हैं तो रामराज्य की असली अवधारणा को उतारने की भी जरूरत हम सभी को है।