एबीपी गंगा ने अपने शो राजनीति में एक उम्मीद और एक आशंका दोनों जताई थी..उम्मीद ये कि जिस परम लक्ष्य को अयोध्या के साधु-संत..और रामलला के करोड़ों भक्त हासिल करना चाहते थे...वो मिल गया है। साथ ही ये आशंका भी जताई थी कि अब अमल में सबकुछ दुरुस्त रहे, लेकिन एबीपी गंगा की आशंका सच साबित हुई। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर ट्रस्ट का गठन किया...कुल 15 सदस्यों वाले इस ट्रस्ट में 9 सदस्यों के नाम भी सामने आए ..राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के यही 9 सदस्य बाकी 6 सदस्यों को नामित करेंगे...लेकिन इन 9 नामों में मंदिर आंदोलन से जुड़े बड़े चेहरे शामिल नहीं हैं इसी बात पर अयोध्या के संत रूठ गए...संतों की ज्यादा नाराजगी ट्रस्ट में रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष मंहत नृत्यगोपाल दास को शामिल ना करने पर थी। गुरुवार दोपहर 3 बजे संतों की एक बैठक भी बुला ली गई... लेकिन गृहमंत्रालय ने फौरन मामले को संभाला और संतों की मीटिंग टल गई... सूत्रों की मानें तो महंत नृत्यगोपाल दास को ट्रस्ट में शामिल किए जाने का भरोसा मिलने के बाद संत फिलहाल मान गए हैं।


संतों का कहना है कि दशकों तक जिस जंग को अयोध्या के संतों ने लड़ा...महंत नृत्यगोपालदास उनमें सबसे अहम हैं...अब जो ट्रस्ट बना है वो करोड़ों रामभक्तों के बरसों पुराने सपने को साकार करेगी। मंदिर निर्माण शुरु करने की तारीख से लेकर मंदिर के डिजाइन तक हर अहम फैसला इसी ट्रस्ट के अधिकार क्षेत्र में रहेगा...और आंदोलन के बड़े चेहरे इस ट्रस्ट में हैं नहीं तो बात कैसे बनेगी। हालांकि राम मंदिर निर्माण के बनाए गए ट्रस्ट को मोदी सरकार ने विवादों से दूर रखने की भरपूर कोशिश की है... ट्रस्ट में शामिल 9 लोगों के नाम पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं।


राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में पहला नाम जाने माने वकील के. परासरण का है... और परासरण ही ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हो सकते हैं... के. परासरण ने ही सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की पैरवी की थी... परासरण सुप्रीम कोर्ट में रामसेतु समुद्रम परियोजना का केस भी लड़ चुके हैं.. के. परासरण पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित हो चुके हैं और सबरीमला केस में भगवान अयप्पा के वकील रह चुके हैं... उन्हे इतिहास.. वेद पुराण औऱ धर्म की भी गहरी समझ है।

संतों के लिहाज़ से देखा जाए तो उनकी बात गलत भी नहीं लगती, लेकिन राम मंदिर और रामलला के भक्तों की आस्था और फिर संतों के स्वभाव के लिहाज से देखें तो असल मुद्दा तो मंदिर का निर्माण होना चाहिए...निजी अस्तित्व या वर्चस्व की लड़ाई यहां बेमानी लगती है...ऐसे में ये सवाल भी लाजिमी हैं कि
राम मंदिर ट्रस्ट को लेकर अयोध्या के संतों की नाराजगी सही मानी जाए या नहीं?


संतों के सुरों को देखते हुए सवाल ये भी है कि आखिर ये आंदोलन राम मंदिर के लिए था या निजी वर्चस्व के लिए? और संतों के लिए जरूरी क्या है रामलला का मंदिर या कुछ चुनिंदा लोगों की ट्रस्ट में मौजूदगी?


आंदोलन से जुड़े बड़े चेहरे ट्रस्ट में शामिल होने से ट्रस्ट को लेकर किसी तरह के विवाद से बचा जा सकता है। हालांकि ट्रस्ट में शामिल सभी लोगों की योग्यता पर कोई भी सवाल नहीं खड़े किए जा सकते। संत समाज ऐसा कर भी नहीं रहा है। बात सिर्फ इतनी सी है कि फसल जिसने हो बोयी है, वही काटना भी चाहता है। हम एक बार फिर उम्मीद करते हैं कि हर कोई इस मसल को ध्यान में रखेगा कि नदी अपना पानी खुद नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते और संतों का तो पूरी जीवन ही दूसरों के सुख के लिए होता है।