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भाजपा के सबसे बड़े गढ़ में 'विभीषण' बनेंगे गंगवार?

संतोष गंगवार छोटे कद के नेता नहीं है...अनुभव नेताओं में शुमार किए जाते हैं...आमतौर पर विवादों से परे रहना पसंद करते हैं...भाजपा के उन नेताओं में हैं...जो वाजपेयी सरकार के दौर में भी मंत्री रहे और मोदी सरकार की पहली और दूसरी पारी दोनों में भी...ऐसे में उनके इस आकलन के आधार को लेकर सवाल उठेंगे...

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत समूचे उत्तर भारत की योग्यता पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है...सवाल भी उठाया है केंद्र सरकार में मंत्री और जिम्मेदार भाजपा नेता संतोष गंगवार ने....देश में आर्थिक मंदी की बहस के बीच मंत्री जी ने रोजगार के मुकाबले काबिल लोगों का संकट बताया है...यानी रोजगार है, लेकिन उसके मुताबिक योग्य नहीं...मंत्री की इस दलील पर सियासत भी गरमाई हुई है...कांग्रेस और बसपा दोनों ने इसे लेकर भाजपा सरकार पर हमला बोला है...बयान के 24 घंटे बाद मंत्री भी अपनी बात से पलट गए...और इसका संदर्भ अलग बताया...संदर्भ भले ही मंत्री के मुताबिक अलग हो...लेकिन उनके इस बयान ने उन्हें राज ठाकरे जैसे नेताओं की कैटेगरी में लाकर खड़ा कर दिया...जो अक्सर उत्तर भारतीयों को लेकर सवाल उठाते रहे हैं...और उन पर हमले करते रहे हैं...भले ही रोजी रोटी के लिए मुंबई में पनाह लिए हों...जबकि मंत्री जी खुद उत्तर प्रदेश के बरेली से ताल्लुक रखते हैं....फिर उन्हें योग्यता पर भरोसा नहीं...वो भी तब इन्हीं लोगों के वोट से केंद्र में दूसरी बार भाजपा सत्ता पर काबिज हुई है...पहले से ज्यादा प्रचंड बहुमत पाकर...यही बयान विपक्ष देता तो भाजपा जनादेश का अपमान बताने से नहीं चूकती तो गंगवार का ये बयान उत्त्तर भारतीयों को अपमानित करने वाला नहीं है...

संतोष गंगवार छोटे कद के नेता नहीं है...अनुभव नेताओं में शुमार किए जाते हैं...आमतौर पर विवादों से परे रहना पसंद करते हैं...भाजपा के उन नेताओं में हैं...जो वाजपेयी सरकार के दौर में भी मंत्री रहे और मोदी सरकार की पहली और दूसरी पारी दोनों में भी...ऐसे में उनके इस आकलन के आधार को लेकर सवाल उठेंगे...क्योंकि बीते दिनों जिस तरह से जीडीपी की पहली तिमाही में गिरावट दर्ज की गई है...ऑटो मोबाइल सेक्टर में मंदी का दौर आया है...लोगों की नौकरियां जा रही हैं...बेरोजगारों को संख्या बढ़ी है...सरकारी नौकरियां विवादों में झूल रही हैं उसने सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है...ऐसे में कांग्रेस के लिए इससे मुफीद मौका हो नहीं सकता...लिहाजा पार्टी की महासचिव ने गंगवार का वीडियो टैग करते हुए कई सवाल उठाए हैं...

निश्चित रूप से मंत्री का बयान आपत्तिजनक है...लेकिन मंत्री की इस पर सफाई ये कह कर कि संदर्भ अलग था...उसे सियासी तौर पर कितना कबूल किया जाएगा ये अलग सवाल है...गंगवार के बयान को लेकर दूसरे सियासी दलों ने भी निशाना साधा..बसपा प्रमुख मायावती ने तो माफी की मांग की है । अपने ट्वीट में बसपा प्रमुख ने कहा है कि देश में छाई आर्थिक मंदी आदि की गंभीर समस्या के सम्बंध में केन्द्रीय मंत्रियों के अलग-अलग हास्यास्पद बयानों के बाद अब देश व खासकर उत्तर भारतीयों की बेरोजगारी दूर करने के बजाए यह कहना कि रोजगार की कमी नहीं बल्कि योग्यता की कमी है, अति-शर्मनाक है जिसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।

ये सवाल भाजपा को चुभ सकते हैं...वैसे ये सवाल कांग्रेस के नहीं बल्कि उत्तर भारत के तमाम बेरोजगार युवाओं के भी हैं...जो नौकरियों के इंतजार में हैं...या फिर मंदी की मार की वजह से जिनकी नौकरी जा रही हैं...बयान पर सियासी बखेड़ा बढ़ा तो इसे संभालने के लिए गंगवार ने सफाई भी दी...और बयान का संदर्भ अलग बताया.... गंगवार जो भी कहें लेकिन बेरोजगारी के आंकड़े अपने आप सब कुछ बता देते हैं...सरकार की मंशा और स्किल इंडिया जैसी योजनाओं का हश्र बताता है कि...उत्तर भारत में योग्य लोगों की तादाद के मुकाबले नौकरियों के आंकड़े कितने कम है....

उत्तर भारत के राज्यों में अगर बेरोजगारी के दर की बात करें तो उत्तर प्रदेश में जहां ये 12.3 फीसदी है...बिहार में 11.8 फीसदी है..झारखंड में 14.3 फीसदी है...दिल्ली में 13.6 फीसदी, हरियाणा में 28.7 फीसदी और राजस्थान में 13.1 फीसदी है... बेरोजगारी के ये आंकड़े हैं और एक आंकड़ा खुद केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने हमारे सामने रखा है... केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार सबसे पहले तो अपनी यानी मोदी सरकार के अबतक के कुल कार्यकाल का आंकड़ा ही ठीक से नहीं दे पाए...गंगवार जी का कहना है कि 3-4 साल...जबकि 2014 से अबतक मोदी सरकार के 6 साल हो गए हैं...इस दौरान खुद श्रम मंत्री संतोष गंगवार का कहना है कि संगठित क्षेत्र में 2 करोड़ नौकरियां दीं...इन आंकड़ों की तस्दीक सिर्फ मंत्री जी ही कर रहे हैं..लेकिन इन्हें सच भी मान लें तो 6 साल में 2 करोड़ नौकरी...से सालाना औसत आप भी आसानी से निकाल सकते हैं...जबकि दावा तो हर साल दो करोड़ नौकरी का था...अब इन आंकड़ों से इतर ज़रा हकीकत भी समझिए...उत्तर प्रदेश में चपरासी जैसी पोस्ट पर निकलने वाली वैकेंसी के लिए पीएचडी, एमबीए जैसे डिग्री धारकों के आवेदन की खबरों को देश देख चुका है...

हद तो ये है कि करीब 3 साल पहले मुरादाबाद में सफाईकर्मियों की भर्ती परीक्षा में पीएचडी स्कॉलर और एमबीए किए हुए लोग गंदे नाले में उतरकर सफाई करते नज़र आए थे... देश और प्रदेश ये भी देख चुका है कि सैकड़ों की वैकेंसी के लिए कैसे लाखों लोग आवेदन करते हैं, सरकार इसकी फीस से अपने खजाने भरती हैं और नौकरियों मिलना तो दूर पूरी प्रक्रिया कोर्ट की चौखट पर लटक जाती है....ये हाल तब है जब साक्षरता दर के आंकड़े बताते हैं कि पढ़े लिखे लोगों की संख्या बढ़ रही है...

उत्तर प्रदेश में जहां 67.68 फीसदी शिक्षित हैं...तो वहीं उत्तराखंड में 78.82 फीसदी, बिहार में ये आंकड़ा 61.08 प्रतिशत का है...तो पंजाब में 75.84, हरियाणा में 75.55 और देश की राजधानी दिल्ली में 86.21 फीसदी का है... साक्षरता दर के इन आंकड़ों का सबब संस्थानों से है...जो अपने छात्रों की उपलब्धियों को लेकर खुद के बेहतर होने का दावा करते हैं...यही वजह है कि इन संस्थानों को लेकर लोगों का विश्वास भी बढ़ा है...और छात्रों में इन संस्थानों को लेकर क्रेज है...मानो ये संस्थान काबिलियत की गारंटी बन चुके हैं....ऐसे कई संस्थान प्रदेश के हैं...जिनका प्रदेश ही नहीं देश में है...इनमें लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, वाराणसी का इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, बीएचयू यानी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद की तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ का जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, नोएडा की अमेटी यूनिवर्सिटी, कानपुर का छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय और मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी शामिल हैं....

ये तमाम आंकड़े उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों से ताल्लुक रखते हैं...और बताते हैं कि बेरोजगारी की वजह नाकाबिल लोगों का दस्ता नहीं...बल्कि अवसरों की कमी, सियासी इच्छाशक्ति की कमी और सरकार के नैतिक संकट की उपज है...ऐसे में पहले मखौल उड़ाते हुए श्रम मंत्री का बयान देना और फिर सफाई देना ये सवाल पूछने के लिए मजबूर करता है कि

क्या अपने बयान से केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने उत्तर भारतीयों का अपमान नहीं किया है? और सवाल ये भी है कि रोजगार देने में नाकाम सरकार के मंत्री बेतुकी दलील दे रहे हैं? सवाल ये भी है कि अपने बयान से भाजपा के सबसे बड़े गढ़ में गंगवार ही 'विभीषण' बन जाएंगे?

मुझे एक शेर याद आ रहा है कि...जिन पत्थरों को हमने अता की धड़कनें, जुबां मिली तो हमीं पर बरस पड़े ।।

चुनाव से पहले जनता जनार्दन और कुर्सी पर काबिज होने के बाद उन्हीं पर दे दनादन नेताओं की सियासी फितरत हो चुकी है । अपनी नाकामी छिपाने के लिए वो कुछ ऐसी बातें बोल जाते हैं कि जिसकी कोई सफाई नहीं होती । जातियों का चक्रव्यूह रच कर चुनाव जीतने वाले नेता जब रोजगार देने के नाम पर योग्यता की बात करते हैं तो लोकतंत्र को ज्यादा ठेस लगती है ।

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