पुलिस और कानून व्यवस्था हमें सिर्फ सुरक्षा देते ही नहीं हैं उसका अहसास भी कराते हैं। ये अहसास ही तमाम अपराधों पर लगाम कस देता है, लेकिन जब कानून के रखवाले पुलिसवाले ही अपराधियों की तरह काम करने लगें तो हमारी-आपकी हिफाज़त का क्या होगा। राजनीति में बात इसी मुद्दे की क्योंकि एक ओर मुख्यमंत्री योगी का अपराधियों को फरमान है कि या तो सुधर जाओ, वरना यूपी छोड़ दो लेकिन जिनके बूते सीएम साहब अपराधियों पर नकेल कसना चाह रहे हैं वो पुलिसवाले खुद अपराधियों की तरह कठघरे में नज़र आ रहे हैं।
अलीगढ़ में ढाई साल की बच्ची से दरिंदगी के मामले में पुलिसवाले सस्पेंड हैं, तो नोएडा में एक चौकी इंचार्ज ने पुलिसवालों के साथ मिलकर ब्लैकमेलिंग का गैंग बना रखा था। बागपत में एक किसान पुलिस पर थर्ड डिग्री टॉर्चर का आरोप लगा रहा है तो गोंडा में पुलिसवालों ने हद ही कर दी। बहुत पहले ही मर चुके एक शख्स पर मुकदमा दर्ज करा दिया और उसका बयान तक दर्ज कर लिया
पुलिस अब अपराधियों के लिये नहीं बल्कि आम जनता के लिए दहशत का सबब बनती जा रही है। पुलिस के कामकाज का सिलसिला लापरवाही से शुरु होते हुए दबंगई, अवैध वसूली और ब्लैकमेलिंग तक जा पहुंचा है। बदनामी के ये तमगे किसी और ने नहीं बल्कि यूपी पुलिस ने खुद इकठ्ठा किये हैं, जिसका आलम ये है कि अपने कामकाज के तौर तरीकों से पूरा पुलिस महकमा कठघरे में है। अलीगढ़ के टप्पल में बच्ची की बर्बर हत्या के मामले में सीओ की बर्खास्तगी, यूपी पुलिस की लापरवाही का बिलकुल ताजा मामला है क्योंकि अगर स्थानीय पुलिस जरा भी तेजी दिखाती तो शायद वो मासूम बच्ची बचाई जा सकती थी लेकिन पुलिस ने लापरवाही को मानो अपनी फितरत बना लिया है।
यूपी पुलिस के नकारेपन की एक बानगी नोएडा से सामने आई जहां लोगों को अपराधी नहीं बल्कि पुलिसवाले ही शिकार बना रहे थे और राहगीरों को ब्लैकमेल करके उनसे अवैध वसूली करते थे। यूपी पुलिस के रक्षक से भक्षक बनने के कोई एक दो मामले नहीं बल्कि लंबी फेहरिस्त है। गोंडा में पुलिस वाले दस साल पहले मर चुके शख्स के खिलाफ केस दर्ज करके मरे हुए शख्स का बयान दर्ज कर लेते हैं तो बागपत में शिकायत करने थाने पर पहुंचे किसान को थर्ड डिग्री दे देते हैं।
जिला कोई भी हो मामला कैसा भी हो, यूपी पुलिस के काम का तरीका एक जैसा ही होता जा रहा है। ऐसा तरीका जिससे अपराधी तो नहीं डरते लेकिन पुलिस से फरियाद करने वाले आम लोग ही पुलिस के नाम से खौफ खाने लगे हैं। ये तब हो रहा है जब प्रदेश में अपराध पर अंकुश और अपराधियों का अंत ही मुख्यमंत्री की पहली प्राथमिकता हो। लेकिन यूपी में पुलिस खुद ही अपनी साख पर बट्टा लगाने पर आमादा है। ऐसे में ये बड़े सवाल हैं कि...
अलीगढ़, नोएडा, गोंडा, बागपत जैसे मामलों में रक्षक ही क्यों भक्षक बन रहे हैं ?
क्या दागी पुलिसवालों का निलंबन लापरवाह पुलिसवाले के लिए सबक साबित होगा ?
और आखिर यूपी पुलिस पर नकेल क्यों नहीं कस पा रही है योगी सरकार?
पुलिसवाले अपनी वर्दी का अक्सर बेजा इस्तेमाल करते हैं, जिस कानून से उन्हें लोगों की हिफाजत करनी होती है उसी कानून का खौफ दिखाकर लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। निलंबन की कार्रवाई भी ऐसे पुलिसवालों की सोच बदलने में ज्यादा कारगर नहीं नजर आती। जरूरत है कि सरकार पुलिस महकमे पर सख्त निगरानी का कोई तंत्र ईजाद करे। पुलिस को आम आदमी का मित्र बनाने की दिशा में काम सिर्फ कागजी नहीं जमीनी स्तर पर हो। सरकार को ऐसा सिस्टम बनाना चाहिए जहां पुलिसवालों को कानून या सरकार के खौफ से पहले आम आदमी का खौफ हो। सरकार ये सुनिश्चित करे कि दागी पुलिसवालों के खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें बेवजह परेशान नहीं किया जाएगा।