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अंडरवर्ल्ड का सियासी कनेक्शन राजनीति की हकीकत है?

साल 1973 की बात है जब मशहूर लेखक अभिनेता और कवि हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय को पद्मभूषण पुरस्कार दिया जाना था जब चट्टोपाध्याय ये पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली जा रहे थे तो करीम लाला ने उनसे गुजारिश की कि वो भी राष्ट्रपति भवन देखना चाहते हैं और साथ चलने का निवेदन किया.

महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार है...लेकिन शिवसेना के सीनियर लीडर संजय राउत ने कांग्रेस की सबसे ताकतवर नेता रही पूर्व प्रधानमंत्री और ऑयरन लेडी के नाम से मशहूर इंदिरा गांधी को लेकर दिया एक सनसनीखेज़ बयान... राउत ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस वक्त के चर्चित डॉन करीम लाला से मिलती थीं..जाहिर था कि अपनी ही सरकार के सहयोगी दल के सबसे ताकतवर नेता पर आरोप लगाने से हंगामा होना ही था...हंगामा हुआ भी और राउत अपने ही बयान की लीपापोती भी करने लगे। लेकिन इस बयान से जुर्म और राजनीति के घालमेल पर बहस छिड़ गई है। सफाई और वार-पलटवार से हटकर आज हम राजनीति में इसी बात पर चर्चा करेंगे कि आखिर जुर्म और सत्ता के इस घालमेल का सच क्या है....और अगर ऐसा है तो इसकी जरूरत क्या है...इसका नुकसान सियासत और जनता को कैसे उठाना पड़ता है...

साल 1973 की बात है जब मशहूर लेखक अभिनेता और कवि हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय को पद्मभूषण पुरस्कार दिया जाना था जब चट्टोपाध्याय ये पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली जा रहे थे तो करीम लाला ने उनसे गुजारिश की कि वो भी राष्ट्रपति भवन देखना चाहते हैं और साथ चलने का निवेदन किया. इस पर चट्टोपाध्याय उन्हें अपने साथ ले गए. दिल्ली में पद्म पुरस्कार समारोह के दौरान देश की कई जानी-मानी हस्तियां मौजूद थी जिनमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी थी पुरस्कार वितरण के बाद जब लोग आपस में मेल मिलाप करने लगे तो उसी दौरान करीम लाला ने इंदिरा गांधी से मुलाकात की और उनके साथ एक तस्वीर भी खिंचाई.

1973 की इसी तस्वीर के मद्देनजर शिवसेना नेता संजय राउत ने एक कार्यक्रम में कहा कि अंडरवर्ल्ड और सत्ता के रिश्ते पुराने हैं...इस बातचीत में राउत ने डॉन करीम लाला और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मुलाकात का जिक्र किया... संजय राउत भले ही अपने दिये गए बयान को लेकर अब बैकफुट पर आ चुके हैं.. लेकिन उनके इस बयान से भाजपा को महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन पर सवाल खड़े करने का मौका मिल गया है.. राजनीति और अपराध के गठजोड़ के जिस मुद्दे पर आज बहस छिड़ी है... उसकी कहानी उत्तर प्रदेश के बिना पूरी नहीं हो सकती.. क्योंकि संगठित अपराध ने दबे पांव राजनीति में अपनी मजबूत पैठ कैसे बनाई... उसकी सबसे बदनुमा तस्वीर उत्तर प्रदेश से ही सामने आती रही है... और आज यूपी की सियासत और जुर्म का गठजोड़ कितना मजबूत है ये बात जगजाहिर है... उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपराधियों कि एंट्री या नेताओं से अपराधियों के संबंध की फेहरिस्त काफी लंबी है... इसमें डकैत से लेकर माफिया डॉन और बाहुबली तक कई दागी नाम शामिल हैं...

तो अब सवाल ये है कि अंडरवर्ल्ड और राजनीति का आपसी कनेक्शन ही राजनीति की असल हकीकत है... राजनीति अपने उपर लगे सत्ता और माफिया के गठजोड़ का दाग कैसे मिटा पाएगी?... और माफिया डॉन से लेकर डकैत और खनन माफिया को कैसे मिलता है संरक्षण?

नेता का मतलब होता है रहनुमा...जो समाज को उसकी राह दिखाता है... लेकिन जब राह दिखाने वाला ही रास्ता भटक जाए तो उसे रहनुमा नहीं कहा जा सकता...आज की चर्चा से जो बात निकलकर आती है वो यही है कि अपराधी जितना बड़ा होता जाता है समाज के उतने ही बड़े दायरे पर उसका असर भी होता है। ये असर अच्छा-बुरा दोनों तरह का हो सकता है। और जब सियासत सिर्फ सत्ता पाने की नीयत से की जाती है तो फिर अपराधी के असर को वोटबैंक की नजर से ही देखा जाने लगता है। ऐसे में जुर्म सत्ता के करीब आने लगता है। इसका खामियाजा फौरी तौर पर जनता और दूरगामी तौर पर खुद सियासत भी उठाती है। दूर के नुकसान को ना देख पाने का नतीजा ही है मौजूदा सियासत में अपराधी किस्म के नेताओं और बाहुबलियों का दबदबा। अगर आज के हंगामे के बाद भी देश की सियासत को ये दूरगामी खतरा दिख जाए तो राजनीति का चमकता रूप सामने आ सकता है।

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