भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के साथ सत्ता में आई योगी सरकार का आधा कार्यकाल बीत चुका है लेकिन भ्रष्टाचार और घोटालों की विरासत इतनी समृद्ध है कि ढाई साल बाद भी सरकार के लिए करप्शन पर लगाम लगाना सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। पीएफ घोटाला, होमगार्ड ड्यूटी घोटाला, एलडीए समेत तमाम विभागों में घोटाले के बाद अब खाद्य विभाग में भी फैला भ्रष्टाचार सामने आ गया है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस में हर राज्य की ये जिम्मेदारी होती है, कि वो कम से कम कीमत पर अपने राज्य की गरीब जनता को उनके जरूरत के मुताबिक अनाज और बाकी सामान मुहैया कराए लेकिन ये योजना आज भ्रष्टाचार की एक पहचान बनकर रह गई है और पीडीएस में भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा शिकायतें उत्तर प्रदेश से ही सामने आ रही हैं। ये जानकारी किसी और ने नहीं बल्कि खुद केंद्रीय उपभोक्ता और खाद्य राज्यमंत्री ने दी है।
उत्तर प्रदेश में पीडीएस में बढ़ते भ्रष्टाचार की ये जानकारी तब सामने आई जब लोकसभा में गोरखपुर से सांसद रविकिशन और रामशंकर कठेरिया ने एक लिखित सवाल पूछा कि क्या खाद्य वितरण के मामलों में आने वाली शिकायतों में उत्तर प्रदेश भी शामिल है। दोनों सांसदों ने यूपी में पीडीएस में शिकायतों के ब्योरे के अलावा पीडीएस में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की जानकारी भी मांगी थी, जिसके जवाब में केंद्रीय उपभोक्ता और खाद्य राज्यमंत्री राव साहब दानवे ने बताया कि पीडीएस में भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा शिकायतें उत्तर प्रदेश से हैं।
केंद्रीय उपभोक्ता और खाद्य राज्यमंत्री ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार की शिकायतों का जो ब्योरा पेश किया उसमें यूपी में पीडीएस में भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा 328 शिकायतें मिली हैं जबकि दूसरे स्थान पर बिहार है जहां से 108 शिकायतें और 78 शिकायतों के साथ दिल्ली तीसरे पायदान पर है।
लेकिन इसी योजना को कुछ राज्य बेहतरीन ढंग से लागू कर रहे हैं जिनमें मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम सबसे उपर हैं जहां से पीडीएस में कोई भी शिकायत नहीं आई है।
योगी सरकार में भ्रष्टाचार के बढ़ते आंकड़ों के सामने आने के बाद विपक्ष ने अब सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। गरीबों के लिए चलाए जाने वाली पीडीएस में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है, खासतौर पर यूपी जैसे बड़े राज्य में, जहां खाद्य विभाग हमेशा से भ्रष्टाचार का बड़ा केंद्र माना जाता रहा है इसीलिये ये विभाग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने पास रखा ताकि खाद्य विभाग में फैसे भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सके लेकिन बरसों से जो खाद्य विभाग काजल की कोठरी बना हुआ है, वो दाग इतनी आसानी से तो नहीं धुल सकते। क्योंकि यूपी में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार की जड़ें सरकारों से कहीं ज्यादा पुरानी और गहरी हैं।
पांच साल पहले 2014 में अखिलेश सरकार के दौरान यूपी में करोड़ों रुपयों का खाद्यान्न घोटाले सामने आया था तब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीबीआई को उस वक्त के खाद्य और रसद मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया भूमिका की जांच के आदेश दिये थे लेकिन पांच साल के बाद भी अब तक किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पायी है। ऐसे में अब खराब कानून व्यवस्था और गिरती शिक्षा व्यवस्था के ग्राफ में सबसे उपर चल रहा उत्तर प्रदेश सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार के मामले में भी सबसे ऊपर है और विपक्ष भ्रष्टाचार के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने पर सवाल खड़े कर रहा है, वो बात अलग है कि इन भ्रष्टाचारों की जडें उनके कार्यकाल से ही जुड़ी हैं।
लोकसभा में यूपी में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में फैले भ्रष्टाचार की बात सामने आने पर खाद्य और रसद विभाग के राज्यमंत्री रणवेंद्र सिंह का कहना है कि शिकायतें आना स्वाभाविक है और सरकार पीडीएस सिस्टम को और जवाबदेह बनाने में लगातार काम कर रही है।
कई बार सत्ताधारी अपने तंत्र के सामने पस्त पड़ जाते हैं। उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार और घोटालों के मामले जिस तरह से सामने आ रहे हैं, उससे ये बात साबित भी होती दिखती है। योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद भ्रष्टाचार से खुलकर दो दो हाथ करने का साहस दिखाया। लेकिन भ्रष्टाचार का दैत्य रक्तबीज की तरह है, जिसके समूल नाश के लिए राजनीति से परे हटकर हर राजनीतिक दल को सोचने की जरूरत है।