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क्या इंसाफ में देरी से टूटने लगा है सब्र का बांध ?

जस्टिस डीलेड इज जस्टिस डेनाइड, यानी इंसाफ में देरी मतलब इंसाफ नहीं मिलना... न्याय प्रक्रिया के तहत इंसाफ मिलने में होने वाली इसी देरी की वजह से कई-कई बरसों तक, बलात्कार जैसा घिनौना जुर्म करने के बाद भी गुनहगारों सजा नहीं मिल पाती...

जस्टिस डीलेड इज जस्टिस डेनाइड, यानी इंसाफ में देरी मतलब इंसाफ नहीं मिलना... न्याय प्रक्रिया के तहत इंसाफ मिलने में होने वाली इसी देरी की वजह से कई-कई बरसों तक, बलात्कार जैसा घिनौना जुर्म करने के बाद भी गुनहगारों सजा नहीं मिल पाती... इसीलिये बलात्कार की लाखों घटनाओं में इंसाफ के लिए पुलिस थानों की दहलीज पार करते-करते... और अदालतों की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते उन तमाम बेटियों और उनके परिवारों की हिम्मत टूट जाती है..इस देरी और जल्द से जल्द दोषियों को सख्त सज़ा के आक्रोश के बीच ही आज सुबह हैदराबाद से जो खबर सामने आई उससे पूरा देश झूमने लगा...जश्न मनाने लगा..आम आदमी ही नहीं बड़े-बड़े राजनेताओं ने भी हैदराबाद पुलिस की तारीफ की...ये तारीफ, देश का ये माहौल ही वो वजह है जिस पर आज हम राजनीति में चर्चा करने जा रहे हैं...पहले जान लीजिए कि आज हैदराबाद में ऐसा क्या हुआ। हैदराबाद पुलिस ने ऐसा क्या किया...

तेलंगाना पुलिस ने हैदराबाद में महिला डॉक्टर से गैंगरेप और उसकी हत्या के चारों आरोपियों को मुठभेड़ में ढेर कर दिया... आज सुबह हैदराबाद पुलिस चारों आरोपियों को लेकर घटनास्थल पर पहुंची.. और 28 नवंबर को हुई वारदात का रीक्रिएशन कर रही थी... पुलिस का कहना है कि तभी चारों आरोपियों ने कुछ पुलिसवालों के हथियार छीन लिये और... फायरिंग करते हुए भागना शुरु कर दिया... पुलिस की जवाबी फायरिंग में रेप और हत्या के चारों आरोपियों ढेर हो गए।... इस एनकाउंटर पर बात हो, उससे पहले ही ये खबर पूरे देश में जंगल में आग की तरह फैल गई और देश के तमाम हिस्सों से हैदराबाद के गुनहगारों की मौत की खबर पर जश्न जैसी तस्वीरें सामने आने लगीं...लोगों ने एक दूसरे को मिठाई बांटी... और जनभावनाओं के इस ज्वार से यही आवाज निकल रही है कि जो हुआ ठीक हुआ... लेकिन एक हफ्ते पहले सामने आए हैदराबाद गैंगरेप केस के चारों आरोपियों को तेलंगाना पुलिस ने ढेर कर दिया... आज सुबह हैदराबाद में जिस तरह बलात्कार और हत्या के आरोपियों को तेलंगाना पुलिस ने मुठभेड़ में ढेर कर दिया... 7 साल पहले दिल्ली गैंगरेप कांड में जान गंवाने वाली 'निर्भया' का परिवार आज भी इंसाफ के लिए अदालत के चक्कर काट रहा है... और इंसाफ में मिलने सड़क पर मोमबत्ती और तख्तियां लेकर खड़े लोग, पुलिस व्यवस्था.. सरकार और न्यायपालिका ये सवाल पूछते हैं कि न्याय उनकी पहुंच से इतना दूर क्यों है...

इसी बीच आज सुबह एक खबर आई, कि हैदराबाद में सरकार आम आदमी, जो कई बार कानून हाथ में लेने की वजह से भीड़ भी कहलाने लगता है...उसके ऐसे तेवर किस समाज...किस इंसानियत...किस सभ्यता की ओर इशारा करते हैं..ये बड़ा और झकझोरने वाला सवाल है...लेकिन उससे भी बड़ा सवाल सामने खड़ा हुआ...जब आम आदमी के साथ ही उनके नुमाइंदों की भी आवाजें मिलने लगीं। बलात्कार के आरोपियों को गोली मारने की घटना के बाद ये सवाल भी उठ रहे हैं... क्या अदालतों और न्यायपालिका जनता की उम्मीदों की रफ्तार से तालमेल नहीं मिला सकीं.. इसीलिये लोग पूरे और तुरंत इंसाफ को लेकर बेचैन हो रहे हैं? और अगर वाकई ऐसा है तो कहीं वो दिन ना आ जाए जब लोग न्यायपालिका की बजाय ऑन द स्पॉट जस्टिस की राह पर चल पड़ें... इसीलिये बहुत सी आवाजें ऐसी भी हैं जो हैदराबाद एनकाउंटर पर सवाल खड़े कर रहे हैं

हैदराबाद एनकाउंटर के बाद हो रही पुलिस की हौसला अफजाई के बीच.... उन्नाव की गैंगरेप पीड़ित जिसे जिंदा जला दिया गया था... वो दिल्ली के अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है... लेकिन राजनीति इतनी चरित्रहीन हो चुकी है कि उन्नाव के जो सांसद साक्षी महाराज कल तक बलात्कारियों के लिए सख्त और तुरंत सजा की मांग कर रहे थे... वो आज उन्नाव में ऐसी ही एक घटना की शिकार हुई बेटी के गुनहगार विधायक कुलदीप सेंगर को जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं... विधायक कुलदीप सेंगर पर उन्नाव की एक नाबालिग बेटी से गैंगरेप और उसकी हत्या की कोशिश का आरोप है... यही बेशर्मी साक्षी महाराज ने तब भी दिखाई थी जब चुनाव जीतने के बाद उन्होंने जेल जाकर कुलदीप सेंगर को धन्यवाद दिया था।

लेकिन साक्षी महाराज जैसे जनप्रतिनिधियों को बलात्कार के आरोपी को जन्मदिन की बधाई देने का ये हौसला यूं ही नहीं मिल जाता.. इसका जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि खुद वो समाज है जो एक वारदात पर तख्ती और मोमबत्ती लेकर सड़कों पर उतर आता है... लेकिन आंखों के सामने होते किसी दूसरे जुर्म पर नजरें बंद कर लेता है... चित्रकूट में एक शादी के दौरान डांसर को सिर्फ इसलिये गोली मार दी गई क्योंकि वो डांस करते-करते थक कर थोड़ी देर के लिए रुक गई थी... ये वाक्या शादी में मौजूद सैकड़ों लोगों के सामने हुआ... चित्रकूट की ये तस्वीर बता रही है कि अब भी मर्दों के प्रभाव वाले हमारे समाज में औरतों की जगह क्या है... जहां नाचने हुए रुक जाने को नाफरमानी मानकर कोई भी मर्द, बेखौफ, भरी भीड़ में किसी महिला पर गोली चलाने से भी नहीं हिचकता... और भीड़ से एक भी आवाज नहीं उठती।

राजनीति में आज की बात की शुरुआत गोली से ही हुई और गोली पर ही आकर ठहर गई है... तो ऐसे में सवाल उठता है कि हैदराबाद एनकाउंटर को क्या माना जाए... एक 'नजीर' या 'न्याय प्रणाली' के सामने खड़ी हुई चुनौती?... सवाल ये भी है कि क्या इंसाफ मिलने में देरी से लोगों के सब्र का बांध टूटने लगा है... और क्या पुरुषों की सामंती सोच का शिकार हो रही हैं महिलाएं ?

गुनहगारों को सजा जल्द मिलना ही किसी पीड़ित के लिये सबसे बड़ा इंसाफ होता है। इंसाफ में देरी आज के बेचैन समाज को और ज्यादा बेचैन बनाती है। वो सड़क पर उतर आती है, लेकिन यही जनता आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को भी चुनती है। ये कैसी जनता है और असल में क्या चाहती है ये उसे भी सोचना है। बलात्कारियों को फांसी की सजा का प्रावधान हमारे कानून में है, लेकिन कानून से आरोपियों को दोषी साबित करवाना और सजा पर जल्द से जल्द अमल करवाना व्यवस्था की जिम्मेदारी है। अगर जिम्मेदार लोग इस बारे में सचेत नहीं हुए तो फिर एनकाउंटर पर देश में हो रहे जश्न दायरे तोड़ भी सकते हैं। बेहतर समाज के लिए ही पूरा सिस्टम खड़ा किया गया है..और इसमें किसी भी तरह की अनहोनी के लिए सिस्टम चलाने वाले ही जिम्मेदार हैं।

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