पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी पाकिस्तान के लिए कहा था कि हम अपने दोस्त बदल सकते हैं लेकिन अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते। लेकिन डेढ़ दशक बाद अटल बिहारी वाजपेयी की यही बात आज नेपाल के लिए प्रासंगिक हो गई है, जिसने भारत-नेपाल सीमा पर मौजूद 'कालापानी' नाम के इलाके को लेकर अपना रुख बदल दिया है।


'कालापानी' उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में आने वाला 35 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा है। इस जगह पर नेपाल कई दशकों से ये कहकर अपना दावा पेश करता रहा है कि वो उसका हिस्सा है। लेकिन, जिस कालापानी को लेकर कभी भी भारत और नेपाल के रिश्तों पर असर नहीं पड़ा दरअसल, जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांटने के बाद भारत ने देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया। ये नक्शा जारी होने के बाद नेपाल ने कालापानी पर अपना रुख ना सिर्फ बदल दिया है बल्कि उसका अंदाज भी बेहद तल्ख हो गया है।


इस मुद्दे पर खुद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने एक बयान दिया है कि कालापानी नेपाल, भारत और तिब्बत के बीच का ट्राईजंक्शन है और यहां से भारत को तत्काल अपने सैनिक हटा लेने चाहिए। हम लोग अपनी एक इंच जमीन भी किसी के कब्जे में नहीं रहने देंगे। भारत हमारी ज़मीन से सेना हटा लेगा तो हम इसे लेकर बातचीत करेंगे।


नेपाली प्रधानमंत्री के इस बयान में गौर करने वाली बात है कि यहां उन्होने कब्जा शब्द का इस्तेमाल किया है जो भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराने रिश्तों में कभी भी इस्तेमाल नहीं किया गया था। क्योंकि, भारत और नेपाल कभी भी सिर्फ एक पड़ोसी नहीं रहे, बल्कि दोनों देशों के बीच सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि रोटी और बेटी का भी रिश्ता रहा है इसीलिये भारत ने अब तक इस मुद्दे जिम्मेदारी दिखाते हुए कहा है कि कालापानी को नेपाल की कोई आशंका है तो वो दोनों देशों के बीच बातचीत से सुलझाई जा सकती है।


इस पूरे मामले को समझने के लिए कालापानी विवाद को भी जनना जरूरी है.. क्योंकि ये छोटा सा इलाका भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद अहम है। कालापानी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का 35 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा है जहां भारत, चीन और नेपाल सीमाएं मिलती हैं। इसीलिए, वहां भारत-तिब्बत सीमा पुलिस तैनाती रहती है। आजादी से पहले 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के सुगौली संधि हुई थी जिसमें काली नदी को भारत और नेपाल की सीमा माना गया था और 1962 में जब भारत और चीन का युद्ध हुआ तो वहां भारतीय सेना की चौकी स्थापित की गई। लेकिन, अब नेपाल कालापानी पर अपना दावा जताने लगा है।


1816 की सुगौली संधि में ये बात स्पष्ट है कि पिथौरागढ़ में काली नदी को ही नेपाल और भारत की सीमा माना गया था और ये स्पष्ट किया गया था, कि चूंकी काली नदी का बहाव बदलता रहता है इसलिये अगर नदी का कटान भारत की सीमा की तरफ होता है तो उतना हिस्सा नेपाल की सीमा में माना जाएगा और अगर नदी की धारा नेपाल की तरफ जाएगी तो उस हिस्से को भारत का माना जाएगा। यही बात नेपाल के पूर्व पीएम बाबूराम भट्टराई ने भी नेपाल सरकार को कही है, कि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों को मिलकर इस सीमा विवाद का हल निकालना चाहिये।


कालापानी पर नेपाल का वैसे तो बहुत पहले से दावा करता आया है लेकिन भारत को लेकर नेपाल के इस तल्ख हुए अंदाज की वजह के पीछे एक और बड़ी वजह है चीन, जिसके साथ नेपाल की नजदीकी पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ती जा रही हैं। दरअसल, चीन लंबे समय से भारत की घेरेबंदी की योजना पर काम कर रहा है और उसके इस मेगाप्लान का एक हिस्सा नेपाल भी है। जानकारों की राय है कि नेपाल के जरिये चीन पर्दे के पीछे रहकर तीन देशों के इस ट्राइजंक्शन के मुद्दे को हवा दे रहा है... क्योंकि जमीन का ये छोटा सा टुकड़ा उस जगह पर मौजूद है जहां भारत की मौजूदगी उसे ज्यादा मजबूत बनाती है। इस विवाद में चीन की भूमिका इसलिये भी सामने आ रही है क्योंकि दो साल पहले में डोकलाम विवाद के दौरान चीन ने कालापानी का जिक्र करते हुए कहा था कि अगर चीन अगर उत्‍तराखंड के कालापानी इलाके में दखल देगा तो भारत क्या करेगा।


नेपाल के जरिये कालापानी में सीमा विवाद को तूल देना चीन की विस्तारवादी नीति और भारत को घेरने की रणनीति का ही एक हिस्सा है लेकिन भारत की नरमी की वजह से जो चीन अब तक हमे अपना अड़ियल रुख दिखाया आया है उसे अब भारत की निर्णायक और मजबूत सरकार से हर मोर्चे पर उसी की भाषा में जवाब मिल रहा है और अपने सबसे बड़े सहयोगी पाकिस्तान को कश्मीर से 370 हटाकर भारत की ओर से मिले जवाब के बाद अब चीन भारत के खिलाफ नए मोर्चेबंदी में जुटा हुआ है। ऐसे में नेपाल को चीन की इस महत्वाकांक्षा को समझना जरूरी है।


कालापानी पर क्यों हुआ विवाद
कालापानी, पिथौरागढ़ का 35 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा है
भारत, चीन, नेपाल सीमा का ट्राइजंक्शन है ये कालापानी
कालापानी में हमेशा तैनात रहते हैं आईटीपीबी के जवान
1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी-नेपाल के बीच हुई सुगौली संधि
काली नदी को भारत और नेपाल के बीच की सीमा माना गया
1962 युद्ध के वक्त भारतीय सेना ने कालापानी में बनाई चौकी
नेपाल अब कालापानी को बता रहा है अपना सीमा का हिस्सा