आज का दिन बेहद खास है..पूरे देश के लिए और खासतौर से उत्तर प्रदेश के लिए...क्योंकि आज यूपी की एक बेटी को सच्चा इंसाफ मिलने का दिन है..यूपी की वो बेटी दरिंदों का शिकार होकर इस दुनिया से चली गई..लेकिन उसकी चीख..इंसाफ के लिए उसकी आत्मा की आवाज़ निर्भया बनकर पूरे देश की आवाज़ बन गई। यूपी की उसी बेटी निर्भया के दोषियों की सज़ा-ए-मौत पर लग गई है अंतिम मुहर...7 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने दिल्ली गैंगरेप कांड के चारों दोषियों की सजा ए मौत पर मुहर लगाते हुए उनका डेथ वारंट जारी कर दिया है।


अब सभी चार दोषियों पवन, मुकेश, अक्षय और विनय को 22 जनवरी की सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में फांसी दी जाएगी। आज इंसाफ का दिन है..इसलिए अबतक आक्रोश से भरी निर्भया की मां...उसके पिता...और यहां तक कि उसकी वकील की आंखें भी भर आईं...लेकिन 7 साल की इस लंबी कानूनी जंग वो वजह है जिस पर आज हम चर्चा करेंगे....क्योंकि सवाल सिर्फ एक बेटी का नहीं है...सिर्फ एक निर्भया का नहीं है...


निर्भया से दरिंदगी के बाद भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से लेकर पूरे देश में ना जाने ऐसी कितनी बेटियां हैं जो आज भी इंसाफ के लिए जंग लड़ रही हैं...ना जाने कितनी बेटियां हैं जो इंसाफ की आस में निर्भया की ही तरह दम तोड़ चुकी हैं...ऐसा क्यों होता है..एक जुल्म हम सबकी आंखों के सामने होता है...एक ज़ालिम हम सबकी आंखों के सामने होता है..लेकिन मज़लूम को समय से इंसाफ नहीं मिल पाता..और देर से मिला इंसाफ खुद में बड़ी नाइंसाफी होता है ये जुमला तो खुद कानून की ही किताब में दर्ज है। तो इस बेहद संवेदनशील मसले पर चर्चा शुरू करें उससे पहले आपको सुनाते हैं इंसाफ के इस बड़े दिन पर निर्भया की मां और पिता की प्रतिक्रिया... मां-बाप आज कुछ तसल्ली महसूस कर रहे हैं...बेटी तो दुनिया से चली गई...लेकिन दरिंदों को सज़ा मिलने से उन्हें कुछ तो राहत मिलेगी...


7 साल पहले 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की भीड़ भरी सड़क पर 6 दरिंदों ने चलती बस में निर्भया के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं... और इस शर्मनाक और दर्दनाक वारदात ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था... जिसके बाद देशभर में आए उबाल को देखकर ये उम्मीद जगी थी... कि निर्भया के गुनहगारों को ना सिर्फ जल्द से जल्द कठोर सजा मिलेगी... बल्कि बेटियों के खिलाफ होने वाली ऐसी खतरनाक घटनाएं भी कम हो जाएंगी... लेकिन निर्भया को इंसाफ मिलने में 7 साल का लंबा वक्त लग गया..कोर्ट से दोषियों की फांसी का दिन और वक्त मुकर्रर होने के बाद भी दोषियों के वकील बचाव का रास्ता तलाशने में जुटे हैं...


ऐसे ही कानूनी दांव-पेंच ने निर्भया के केस को 7 साल तक लटकाए रखा...और अब आखिरी वक्त में भी ऐसी कोशिशें जारी हैं... हर कोई आज सुकून महसूस कर रहा है..इसमें सिर्फ निर्भया के माता-पिता ही नहीं, पूरा देश शामिल है....यानी हर किसी को इसी इंसाफ का इंतज़ार था...तो फिर इंसाफ में इतनी देर क्यों हुई...इसी बात से जुड़े हैं भविष्य के ये सवाल कि क्या


1 - दरिंदों के लिए नजीर बनेगी 'निर्भया' के गुनहगारों को फांसी?
2 - निर्भया के बाद इंसाफ का तंत्र फिर तो नहीं सो जाएगा?
और
3 - हैदराबाद जैसे कांड के बाद ही क्यों जागता है सिस्टम?


निर्भया के दरिंदों को फांसी हर हाल में एक नजीर ही बननी चाहिए। इंसाफ से जुड़ा पूरा तंत्र अब हमेशा पूरी तरह जागरूक रहना जरूरी है। तभी इस फैसले से मिली खुशी कायम रह पाएगी। 16 दिसंबर की जो तारीख आज निर्भया कांड के काले दिन के तौर पर याद की जाती है, वो 22 जनवरी की रौशन तारीख में हमेशा के लिए खत्म हो जानी चाहिए। वरना फिर कहीं किसी कोने में किसी निर्भया को दरिंदगी का शिकार बनाया जाएगा, फिर हाथों में तख्ती-बैनर और मोमबत्तियां लेकर लोग सड़कों पर निकलेंगे और हम फिर इंसाफ की देरी को कोसते हुए किसी और बेटी के शिकार होने का दर्द देखेंगे