हमारे संविधान से देश के नागरिकों जो मौलिक अधिकार मिले हैं... उनमें से एक है सबको आजादी से जीने का हक लेकिन खुली और साफ हवा में लोगों का सांस लेने का अधिकार भी आज सियासत में फंसकर रह गया है... दरअसल उत्तर भारत में बढ़ता प्रदूषण अब लोगों की जिंदगी के लिए के लिए एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है... लेकिन सरकारें इस गंभीर मुद्दे पर अब भी नींद से जागने को तैयार नहीं हैं.. इसी का नतीजा है कि प्रदूषण की वजह से हालात बद से बदतर होने पर देश की सबसे बड़ी अदालत को आगे आना पड़ रहा है...
प्रदूषण के मुद्दे में तलब किये गए तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के अलावा दिल्ली के मुख्य सचिव सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए.... इनके अलावा केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए थे... लेकिन आज हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ते प्रदूषण पर सभी राज्यों और केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि लोगों को जबरदस्ती गैस चैंबर में क्यों रहने को कहा जा रहा है... इससे बेहतर है कि उन्हें एक ही बार में मार दिया जाए... लोगों को तिल-तिलकर मारने से अच्छा है कि 15 बैग में विस्फोटक भर कर उन्हें एक ही बार में खत्म कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण के मुद्दे पर इतनी तल्ख टिप्पणी दरअसल इसलिये की है.. क्योंकि देश में कैंसर के मामले हाल के दिनों में तेजी से बढ़े हैं... इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक... 2016 में देश में कैंसर रोगियों की संख्या 14 लाख 51 हजार थी.. जो 2018 में बढ़कर 15 लाख 86 हजार तक पहुंच गई है.. जिसकी एक बड़ी वजह वायु प्रदूषण भी है।
आज की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को नाकाफी मानते हुए... प्रदूषण पर हाथ पर हाथ धरे बैठी पंजाब, दिल्ली और हरियाणा सरकार को लताड़ लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट को ये कहना पड़ गया... कि 'बाहर के लोग हमारे देश पर हंस रहे हैं कि हम प्रदूषण पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे... आरोप प्रत्यारोप से दिल्ली के लोगों की जान नहीं बच सकती. आप प्रदूषण को सीरियसली नहीं ले रहे हैं, बस ब्लेम गेम का खेल चल रहा है.'
सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव आरके तिवारी ने कोर्ट में एक हलफनामा पेश कर अदालत को प्रदूषण के खिलाफ राज्य सरकार की तरफ से उठाए जा रहे कदमों की जानकारी दी... सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा था कि पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए क्या किया गया... जिसमें मुख्य सचिव ने बताया कि... पूर्वी उत्तर प्रदेश में पारली जलाने की घटना हुई है लेकिन पश्चिमी यूपी में पराली जलाने पर रोक लगा दी गई है... मुख्य सचिव ने बताया कि 30 जिलों में पराली जलाने की घटना हुई है... और 10 जिलों में पराली जलाने के मामलों में 926 एफआईआर दर्ज की गई... लेकिन सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद बाहर आने पर मुख्य सचिव आरके तिवारी ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी...
ऐसे में अब ये सवाल उठ रहा है कि प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे पर भी सरकारें राजनीति क्यों कर रही हैं? आखिर आरोप प्रत्यारोप से ही कैसे निकलेगा प्रदूषण की रोकथाम का उपाय? और क्या बार-बार सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद ही सुधरेंगीं सरकारें?
आज की इस चर्चा से यही बात निकल कर सामने आई है कि.. प्रदूषण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी हुक्मरानों के रवैये पर बड़ा सवाल है। देश की जनता के लिए रोटी कपड़ा और मकान का उन्होने कैसे इंतजाम किये है... इसकी गवाही तो आंकड़े ही देते रहते हैं, लेकिन कुदरत ने इंसानों को साफ हवा और पानी की जो नेमत दी थी, वो भी आज सरकारों की बेपरवाही की वजह से खतरे में पड़ चुकी है... इसी का नतीजा है कि जो हवा इंसान के लिए प्राणवायु कही जाती थी, उसमें जहर घुलता जा रहा है और लोग जानते-बूझते जहरीली सांस लेने को मजबूर हैं। जिससे निपटने के लिए सभी को वक्त रहते जिम्मेदारी उठानी ही पड़ेगी क्योंकि प्रदूषण हमारे वजूद के लिए ही बड़ा संकट बन गया है