1949 से लगातार अदालतों के गलियारों से होकर गुजरने के बाद आखिरकार 70 साल बाद अयोध्या विवाद पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने 9 नवंबर को अपना फैसला सुना दिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के लिए रामलला को उनका जन्मस्थान दिया तो मस्जिद तामील करने के लिए सरकार को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है।


अयोध्या विवाद से जुड़े रहे सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया जिसमें इकबाल अंसारी और सुन्नी वक्फ बोर्ड भी शामिल हैं। लेकिन, खुद को मुसलमानों के हितों की रक्षक बताने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अब अयोध्या पर फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का एलान कर दिया है।


पर्सनल लॉ बोर्ड ने वैसे तो 9 नवंबर को फैसला आने के तुरंत बाद ही अपनी नाखुशी जाहिर कर दी थी और बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने उसी दिन कह दिया था कि इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। अपनी बात में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में उसकी पुनर्विचार याचिका नामंजूर हो भी जाये तब भी वो अपने रुख से पीछे नहीं हटने वाला है।


लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इस फैसले से पूरा मुस्लिम समाज इत्तेफाक नहीं रखता है। अयोध्या मामले के पक्षकार रहे इकबाल अंसारी का कहना है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़े हैं और वो फैसले के खिलाफ फिर से कोर्ट नहीं जाने वाले हैं। वहीं, मुस्लिम समाज से ही कई और लोगों का कहना है कि अयोध्या पर फैसले को हिंदू और मुसलमान ने मिलकर स्वीकार कर लिया है। लेकिन, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड फिर से इसे तूल दे रहा है।


वहीं विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अयोध्या मामले में पक्षकार था ही नहीं। सरकार को मस्जिद के लिए जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को देनी है ना कि पर्सनल लॉ बोर्ड को। ऐसे में बोर्ड पुनर्विचार याचिका की बात करके सिर्फ मुस्लिम समाज को भरमाने की कोशिश कर रहा है।


तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या...


स्पष्ट फैसले के बाद भी राम मंदिर मुद्दे को उलझाने में जुटा पर्सनल लॉ बोर्ड ?
अंसारी और सुन्नी बोर्ड फैसले पर राजी, तो पर्सनल लॉ बोर्ड क्यों बना काजी ?
पुनर्विचार याचिका मजहबी कवायद या सियासी स्टंट ?


अयोध्या मामले से जुड़े सभी पक्षों ने फैसले से पहले कहा था कि वो सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी निर्णय का सम्मान करेंगे और फैसला आने के बाद सभी पक्ष अपनी बात पर कायम हैं, लेकिन जब पूरा देश अयोध्या विवाद से आगे बढ़ चुका है, तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड फिर से इस मामले को हवा देकर सिर्फ अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। ये ठीक है कि कानून ने उनको पुनर्विचार याचिका दायर करने का हक दिया है मगर ये नहीं भूलना चाहिये कि हर अधिकार कुछ जिम्मेदारियां लेकर आता है, और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है समाज की एकता और संविधान का सम्मान करने की। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि ऐसी ही जिम्मेदारी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी दिखाता और इस मजहबी और सियासी अस्तित्व की लड़ाई की बजाय मुस्लिम समाज की बेहतरी के लिए काम करे।