राजनीति की बातों को हम आपके नजरिये से समझाते हैं... आज भी हम आम आदमी से जुड़े बेहद अहम मुद्दे पर राजनीति का नजरिया समझने की कोशिश करेंगे...मुद्दा है उत्तर प्रदेश के 45 हजार से ज्यादा बिजली कर्मचारियों के भविष्य निधि यानी पीएफ के करीब 26 हजार करोड़ रुपयों की धनराशि में हुए घोटाले का.. ..एक-एक दिन गुजरने के साथ भविष्य निधि घोटाले की परतें खुलती चली जा रही हैं... लेकिन अबतक की हुई जांच में इस घोटाले का वो सिरा सामने नहीं आ सका है... जिससे सरकारी कर्मचारियों की कमाई लूटने में शामिल अफसरों की जवाबदेही तय हो सके... हालांकि फिलहाल भविष्य निधि घोटाले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू यानी इकॉनोमिक ऑफेंस विंग ने उस शख्स को गिरफ्तार कर लिया.. जिसके यूपीपीसीएल के एमडी रहते घोटाले की पहली किस्त डीएचएफएल को जारी की गई... यानी यूपीपीसीएल के पूर्व प्रबंध निदेशक अयोध्या प्रसाद मिश्रा... लखनऊ में एपी मिश्रा को ईओडब्ल्यू की टीम ने शुरुआती पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया है... ये भविष्य निधि घोटाले में अबतक की तीसरी और सबसे बडी गिरफ्तारी है...।
आज सुबह एपी मिश्रा को हिरासत में लेकर ईओडब्ल्यू की टीम लखनऊ में डीजीपी मुख्यालय पर लाई... जहां उनसे घोटाले से जुड़े सवाल पूछे गए... ईओडब्ल्यू ने एपी मिश्रा से पूछा कि जब उन्होने ट्रस्ट में रखे पीएफ की रकम को निजी क्षेत्र में निवेश के अनुमोदन की बैठक बुलाई थी... तो उसमें क्या फैसले हुए थे... आखिर डीएचएफएल जैसी दागी कंपनी में ही निवेश के लिए अनुमोदन क्यों किया गया था... बाद में ईओडब्ल्यू की टीम ने एपी मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया... इसके पहले इस घोटाले में यूपीपीसीएल के पूर्व निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी और यूपीपीसीएल ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव पीके गुप्ता पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं... और अब इस कड़ी में एपी मिश्रा का नाम भी शामिल हो चुका है
अब ये जानना भी जरूरी हो जाता है कि आखिर पावर कारपोरेशन के पूर्व एमडी एपी मिश्रा हैं कौन... दरअसल जब 17 मार्च 2017 को डीएचएफएल को भविष्य निधि की पहली किस्त जारी की गई थी... उस वक्त एपी मिश्रा ही कारपोरेशन के एमडी थे... इन्होने ही योगी सरकार के शपथ ग्रहण से ठीक पहले आनन-फानन में किस्त जारी करने का अनुमोदन कर दिया था.. एपी मिश्रा आईएएस अधिकारी नहीं बल्कि एक इंजीनियर थे... और मुलायम सिंह के अलावा अखिलेश यादव के भी खासमखास माने जाते थे... इसीलिये 2012 में सपा सरकार आते ही एपी मिश्रा को यूपीपीसीएल का एमडी बना दिया गया.. और रिटायर होने के बाद भी मिश्रा जी को सपा सरकार में 3 बार सेवा विस्तार मिला.. लेकिन योगी सरकार के गठन के साथ ही 21 मार्च 2017 को एपी मिश्रा ने पद से इस्तीफा दे दिया और 23 मार्च को उनका इस्तीफा मंजूर हो गया था...
अब आगे की जांच में एपी मिश्रा को कई सवालों के जवाब देने होंगे कि 17 मार्च 2017 को दागी कंपनी को भविष्य निधि के पैसों की पहली किस्त किसके कहने पर रिलीज की गई... और इसके लिए वही वक्त क्यों चुना गया जब उत्तर प्रदेश में पुरानी सरकार सत्ता से जा रही थी और नई सरकार को सत्ता संभालनी थी... हालांकि यूपी सरकार ने इस घोटाले की सीबीआई जांच की सिफारिश की है.. लेकिन सरकार ने पहले से इस मामले की जांच इकॉनमिक ऑफेन्स विंग को भी सौंप दी थी.. ईओडब्ल्यू ही अबतक इस मामले की जांच कर रही है... और अब जाकर गृहविभाग ने सीबीआई जांच के लिए गृह मंत्रालय को चिट्ठी भेजी है, लेकिन अरबों रुपये के इस घोटाले का ये सिलसिला सिर्फ एपी मिश्रा.. सुधांशु द्विवेदी और पीके गुप्ता की गिरफ्तारी पर ही खत्म नहीं हो रहा... यूपी की अफसरशाही से निकली भ्रष्टाचार की अमरबेल में कई और किरदारों के नाम शामिल हैं... जो दागी कंपनी में निवेश की पटकथा लिखने से लेकर इस घोटाले के सामने आने तक अलग-अलग वक्त पर अपनी भूमिका अदा करते रहे...
17 मार्च 2017 को जब DHFL में बिजली कर्मचारियों के पीएफ के पैसों के निवेश की शुरुआत हुई... उस वक्त IAS संजय अग्रवाल यूपीपीसीएल के चेयरमैन थे... और कारपोरेशन का चेयरमैन ही पीएफ ट्रस्ट का अध्यक्ष भी होता है... उस वक्त एपी मिश्रा कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक थे... लेकिन 21 मार्च 2017 को एपी मिश्रा ने एमडी पद से इस्तीफा दे दिया... 23 मार्च को मिश्रा की जगह IAS विशाल चौहान यूपीपीसीएल के नए एमडी बनाए गये... और 24 मार्च को ट्रस्ट की बैठक में विशाल चौहान भी मौजूद थे.. तब भी DHFL को निवेश की किस्तें जारी की जाती रही... 2017 में संजय अग्रवाल यूपीपीसीएल चेयरमैन पद से हटा दिये गए.. और IAS आलोक कुमार को यूपीपीसीएल का नया चेयरमैन और अपर्णा यू को यूपीपीसीएल का नया एमडी बना दिया गया... यानि 2017 से लेकर अबतक यूपीपीसीएल का 1 चेयरमैन और 2 एमडी बदल गए... लेकिन इन ढाई साल में किसी भी अफसर ने ने ये टटोलने की कोशिश क्यों नहीं की कि कर्मचारियों के पीएफ का पैसों में घोटाला हो रहा है... क्या ये मुमकिन है कि बिना इन बड़े अफसरों की मंजूरी DFHL में निवेश होता रहा ?
तो बड़ा सवाल ये है कि क्या अफसरशाही की मनमानी से यूपी में अरबों का घोटाला हुआ? सीबीआई जांच के साथ अबतक EOW की जांच से क्या हासिल हुआ? और क्या सत्ता अफसरों के हाथ का खिलौना बन जाती है ?
सरकार चाहे किसी भी दल की हो..मुख्यमंत्री कोई भी हो, सत्ता की असली खिलाड़ी नौकरशाही ही होती है। इसकी वजह है कि आखिरकार नीतियों का अनुपालन तो अफसरों-कर्मचारियों को ही कराना होता है। लेकिन कई बार सरकार की अक्षमता से नौकरशाही नीति नियंता बन जाती है। ऐसे में नौकरशाही का मकड़जाल बढ़ने की जिम्मेदारी से भी सरकारें बच नहीं सकती हैं। क्योंकि लोकतंत्र में जनता अफसरों को नहीं, नेताओं को चुनती है। इसलिए जिम्मेदारी भी सरकारों की ही ज्यादा है। नौकरशाही के मकड़जाल से बाहर निकलने के लिए अब जनता की निगाहें अब मजबूत नेतृत्व और निर्णायक सरकार पर टिकी हैं।