राजनीति के मंच पर हमेशा मुद्दों की बात होती है। सियासी घटनाओं का तथ्यों के आधार पर विश्लेषण होता है और आपके सवाल नेताओं से पूछे जाते हैं। बात नरेंद्र मोदी की हो रही है जो दोबारा देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। जीत के आंकड़ों को देखते हुए उन पर उम्मीदों का बोझ बहुत है, शायद यही वजह है कि पहली सरकार में जहां सबका साथ, सबका विकास की बात थी...तो दूसरी सरकार के लिए इसका विस्तार करते हुए पीएम ने इसमें सबका विश्वास भी जोड़ दिया है।


प्रधानमंत्री का विश्वास कोई इशारा नहीं बल्कि स्पष्ट संदेश है...मौत को मुद्दा बना कर मजहबी राजनीति करने वालों के लिए, अयोध्या पर अध्यादेश का दबाव बनाने वालों के लिए...और गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों के लिए। बाबा विश्वनाथ से आशीर्वाद के दौरान मोदी ने जो संकल्प लिया...उनमें भी ये बातें होंगी।


अपनी नई पारी की शुरुआत से पहले नरेंद्र मोदी जब बाबा विश्वनाथ के दर पर पहुंचे तो हाथ में लाल कमल का फूल लेकर संकल्प किया। ये संकल्प क्या है ये तो मोदी जी के दिल में ही है, जिसे पूरा होते देश देखेगा। हालांकि कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के दौरान उनके संकल्प का कुछ इशारा ज़रूर मिल गया। प्रचंड बहुमत के बाद लगातार मोदी का ये संदेश असल में उस प्रचंड उम्मीदों को साधने और बांधने का है, जो उनसे लगाई जा रही हैं।


अयोध्या में राम मंदिर को लेकर समाज का एक तबका उतावला ज़रूर है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस साल के पहले दिन ही ये साफ कर दिया था कि इस मामले में पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा उसके बाद ही सरकार कुछ करेगी। सरकार फिर मोदी की है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभी आना है। पीएम मोदी पर संघ और राम मंदिर पर फैसले को लेकर भी बारीक संतुलन बनाने की ज़िम्मेदारी है।


पिछली सरकार में गाहे-बगाहे सामने आने वाले कथित गोरक्षकों और उनकी गुंडागर्दी भी मोदी के लिए एक चुनौती होगी क्योंकि एक तबका मोदी की प्रचंड जीत को अपनी तरह से परिभाषित करने की कोशिश करेगा। सवाल ये है कि क्या उस तबके पर खुद मोदी की कही बातों का असर होगा। कुछ सवाल हैं जिनके जवाब मिलना जरूरी हैं। सबका साथ-सबका विश्वास कैसे हासिल करेंगे मोदी ? गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी पर नकेल कसेगी मोदी सरकार-2 ? राम मंदिर पर संघ और सुप्रीम कोर्ट के बीच संतुलन कैसे साधेंगे मोदी ?