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ब्लॉग: जवानों की शहादत पर बार-बार सिर क्यों उठा लेती है सियासत?

कांग्रेस या किसी भी राजनीतिक दल को ये समझना होगा कि राष्ट्रवाद की कभी हार नहीं हो सकती। पुलवामा हमले को लेकर पिछले साल फरवरी में भी ऐसा ही सियासी हंगामा खड़ा हुआ था..लेकिन मई में हुए आम चुनावों में जनता ने राष्ट्रवाद के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी के पहले से बड़े बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में पहुंचाया।

14 फरवरी सारी दुनिया में मोहब्बत के दिन के तौर पर मनाया जाता है। आज से ठीक एक साल पहले इसी दिन हमारे कुछ जांबाजों ने असली मोहब्बत और उसका असली मतलब समझाते हुए देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी थी। पिछले साल आज ही के दिन पुलवामा में आतंकी संगठन जैश ए- मोहम्मद के आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। इस आतंकी हमले में कई जवान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के भी थे। पूरा देश आज इन वीर सपूतों को याद कर रहा है...उन्हें नमन कर रहा है...लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी पुलवामा हमले को लेकर सियासत जारी है।

आज सुबह की रौशनी फैलने के साथ ही कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने एक ऐसा ट्वीट कर दिया जिसने पुरानी पड़ चुकी सियासी बहस को नए सिरे से छेड़ दिया। राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा और तीन सवाल दागे। पहला इस हमले से किसको फायदा हुआ? दूसरा इस हमले की जांच में क्या निष्कर्ष निकला? तीसरा इस हमले के दौरान सुरक्षा व्यवस्था में खामी के लिए अब तक भाजपा सरकार में किसे जिम्मेदार ठहराया गया?

राहुल गांधी के ट्वीट के बाद भाजपा नेताओं ने भी पलटवार किया। यूपी-केंद्र सरकार और भाजपा के जबरदस्त हमले के बाद कांग्रेसी भी अपने शीर्ष नेता के बचाव में उतर आई। कांग्रेस का कहना है कि सरकार पुलवामा हमले की जांच करे और जनता के सामने सच लाए। वामपंथी दल भी कांग्रेस के सुर में सुर मिलाते नजर आए। भाकपा नेता मोहम्मद सलीम ने भी पुलवामा हमले पर राहुल गांधी के ट्वीट से मिलता जुलता ट्वीट करते हुए लिखा कि 'हमें अपनी विफलता को याद करने के लिए शहीद स्मारक बनाने की जरूरत नहीं है। हमें केवल एक बात जानने की जरूरत है कि आखिल 80 किलोग्राम आरडीएक्स अंतरराष्ट्रीय सीमा पार और धरती के सबसे अधिक सेना से घिरे क्षेत्र में आया कैसे, जिस वजह से हमरे सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए'। मोहम्मद सलीम के ट्वीट के समर्थन में एनसीपी भी आ गई जांच की बात कह रही है।

पुलवामा हमले को लेकर पिछले साल फरवरी में भी ऐसा ही सियासी हंगामा खड़ा हुआ था..लेकिन मई में हुए आम चुनावों में जनता ने राष्ट्रवाद के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी के पहले से बड़े बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में पहुंचाया। आज पुलवामा अटैक की बरसी के दिन एक बार फिर वही सियासत छेड़ी गई है...तो आखिर क्यों..जबकि लोकतंत्र में अगर सियासी तौर पर सही-गलत का पैमाना जनमत है तो जनता अपना फैसला मई 2019 में सुना चुकी है...शहादत पर सियासत को जनता खारिज कर चुकी है..ऐसे में सवाल ये है कि

1- क्या पुलवामा अटैक पर सवाल उठाना एक बार फिर राहुल गांधी की राजनीतिक चूक है?

2- क्या चुनावी शिकस्त के बाद भी राष्ट्रवाद पर देश का मिजाज समझ नहीं पा रही है कांग्रेस ?

3- और सवाल ये भी आखिर जवानों की शहादत पर बार-बार सिर क्यों उठा लेती है सियासत ?

कांग्रेस या किसी भी राजनीतिक दल को ये समझना होगा कि राष्ट्रवाद की कभी हार नहीं हो सकती। चुनाव में राष्ट्रवाद मुद्दा बन सकता है या नहीं ये विषय हो सकता है। अगर दिल्ली चुनाव में भाजपा की हार को राष्ट्रवाद की हार समझ कर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है तो ये राजनीतिक दलों की नासमझी है। मोदी सरकार पर निशाना साधने के चक्कर में पुलवामा अटैक को मुद्दा बनाते समय विपक्षी दलों से यही रणनीतिक चूक होती है। ऐसा करते समय अनजाने में आतंकी हमलों में जवानों की शहादत भी सियासी फेर में आ जाती है, जिसका रणनीतिक फायदा अंत में पीएम मोदी और भाजपा को ही होता है।

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