ब्लॉग: यूपी में उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे विरोधियों का भविष्य, भाजपा के लिए भी आसान नहीं है राह
उपचुनाव जिन भी मुद्दों पर लड़ा जाए, लेकिन कुछ नतीजे अभी से दिख रहे हैं। बिखरे विपक्ष को देख कर लगता नहीं है कि योगी सरकार के लिए चुनौती बहुत बड़ी है।
राजनीति में बात सियासत की, वैसे तो सियासत के बिना उत्तर प्रदेश की कल्पना ही बेमानी है लेकिन मौका जब चुनावों का हो तो फिर इसके रंग देखने का अपना ही मजा है। लेकिन उससे पहले आपको दिखाते हैं उत्तर प्रदेश के मथुरा से आई एक तस्वीर जो यूपी में न केवल कानून व्यवस्था की पोल खोल रही है, बल्कि पुलिस की भी कलई खोल रही है। यहां पिस्टल लेकर बीच सड़क पर घूम रहे एक आदमी और औरत से खौफ खाकर पुलिस भागती नजर आई। ये सारा वाकया मथुरा के जिला जज के घर के सामने का है। यहां घंटों ड्रामा चलता रहा और पुलिस बेबस बनी रही।
इसी पुलिस के दम पर उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष और भय मुक्त चुनावों का दावा किया जाएगा। उत्तर प्रदेश की 11 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहा हैं, इनमें से ज्यादातर सीटें विधायकों के सांसद बन जाने के कारण खाली हुई हैं और इन 11 सीटों में से ज्यादातर सीटें भाजपा के खाते में दर्ज हुई थीं। जिन जिलों की सीटें हैं वहां भी भाजपा की जीत हुई है लेकिन बावजूद इसके भाजपा खौफ में है और खौफ में रहने की वजह है बाइ इलेक्शन का वो रिकॉर्ड में जिसमें उसे अब तक शिकस्त मिली है इसलिए इन चुनावों को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ कोताही नहीं बरतना चाहते हैं, उन्होंने खुद मोर्चा संभाल लिया है और प्रचार में जुटे हुए हैं। दूसरी तरफ लोकसभा चुनावों में एक रहे सपा और बसपा की राह अलग हो चुकी है और अरसे बाद बसपा प्रमुख मायावती ने उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है। आम चुनावों में बुरी तरह शिकस्त खाने के बाद संभलने में लगी सपा भी अकेले किस्मत आजमाएगी और अब तक उत्तर प्रदेश में हाशिए पर चल रही कांग्रेस उपचुनावों से नई संजीवनी लेने की कोशिश में है। विकास, जनता की समस्याओं से इतर ये अपनी सियासत और समस्याओं पर जीत का मौका है और इसकी झलक पिछले कई दिनों से यूपी की सियासी तस्वीर में दिखाई दे रही है। प्रियंका गांधी ट्वीट से सरकार पर वार कर रही हैं तो सपा अपने परिवार के बिखराव को दुरुस्त करने की कवायद में लग गई है।
चंद दिनों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड लेकर हाजिर हुए थे और प्रदेश में बदलाव के कई आंकड़े और तस्वीरें दिखाई। ढाई साल के इस दौर में उत्तर प्रदेश में विकास का खाका जिस तरह से योगी सरकार ने खींचा है उन दावों की हकीकत परखने का समय भी नजदीक है, जब प्रदेश की 11 सीटों पर उपचुनाव होंगे। ये उपचुनाव उन सीटों पर हो रहे हैं जो विधायकों के सांसद बन जाने से खाली हुई हैं। इनमें से ज्यादातर सीटें भाजपा की झोली में थीं।
रामपुर, सहारनपुर की गंगोह, अलीगढ़ की इगलास, लखनऊ कैंट, कानपुर की गोविंदनगर, बाराबंकी की जैदपुर, चित्रकूट की मानिकपुर, बहराइच की बलहा, प्रतापगढ़, मऊ की घोसी और अंबेडकरनगर की जलालपुर सीट शामिल है। इन सभी सीटों पर 21 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे
राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणी से उलट लोकसभा चुनावों में मिली शानदार कामयाबी ने भाजपा के हौसलों को नए पंख लगा दिए हैं। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में उपचुनावों के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद कमान संभाल ली है। इसी कड़ी में वो खुद उपचुनाव वाले इलाके में जाकर नब्ज टटोलने में जुटे हैं, बल्कि घोषणाएं भी कर रहे हैं साथ ही उन मुद्दों को लेकर सख्ती बरत रहे हैं जिनपर उन्हें विपक्ष घेर रहा है।
उपचुनावों को लेकर सबसे अधिक सक्रिय भाजपा के बाद अगर कोई है तो वो कांग्रेस है। कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी लगातार योगी सरकार को अलग-अलग मुद्दों पर घेर रही हैं। कभी वो कानून व्यवस्था पर घेर रही हैं तो कभी बिजली के बढ़े दामों पर। प्रियंका ने किसानों के मुद्दे पर योगी सरकार पर ट्वीट कर सवाल उठाएं हैं। हालांकि प्रियंका समेत बड़े नेताओं ने उपचुनाव में प्रचार से दूरी बनाने का फैसला किया है, जिस पर पार्टी ने सफाई भी दी है लेकिन उपचुनाव के तैयारियों की बात करें तो कांग्रेस बलहा विधानसभा सीट छोड़ कर उपचुनाव वाली बाकी सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। पार्टी की कोशिश विधानसभा उपचुनाव में बेहतर नतीजे लाने की है। बीते तीन दशक से प्रदेश की सत्ता से बाहर कांग्रेस का हालिया लोकसभा चुनाव में भी बेहद निराशाजनक प्रदर्शन रहा है।
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद प्रदेश अध्यक्ष पद से राज बब्बर इस्तीफा दे चुके हैं। फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी की तैनाती नहीं हुई है। जिला-शहर इकाइयां भंग चल रही हैं। बेहतर नतीजे लाने में पार्टी के सामने कमजोर संगठन बड़ी चुनौती है। प्रत्याशी भले ही घोषित कर दिए हों कांग्रेस ने लेकिन प्रचार को लेकर पार्टी उलझन में है। प्रियंका समेत दूसरे नेताओं के दूरी बनाने से पार्टी पर सवाल खड़े हो रहे हैं, जिसे लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने सफाई भी दी है
उपचुनावों को वैसे कई पार्टियों के लिए संजीवनी भी माना जा रहा है। सपा और मुलायम सिंह यादव के परिवार में जिस तरह विधानसभा चुनावों में बिखराव हुआ और लोकसभा चुनावों में बुरी हार मिली उससे सबक लेते हुए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव नए संकेत दे रहे हैं और ये संकेत चाचा शिवपाल को लेकर हैं, यानी उपचुनावों से पहले परिवार को एक करने की पहल में सपा जुट गई है। इसके अलावा सपा ने उपचुनाव वाली सीटों पर दमदार प्रत्याशी तय करने की कवायद तेज कर दी है। अब तक उसने दो सीटों पर ही प्रत्याशी तय किए हैं। पार्टी अब संगठन की मजबूती देने में लगी है। इसके लिए सदस्यता अभियान चल रहा है। वैसे तो सपा ने अब किसी बड़े दल से मिल कर चुनाव न लड़ने का एलान किया है। फिर भी उसे छोटे दलों से स्थानीय स्तर पर गठबंधन करने में परहेज नहीं है। सूत्र बताते हैं कि सुभासपा के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री ओम प्रकाश राजभर की सपा से कुछ सीटों पर तालमेल कर चुनाव लड़ने की बात चल रही है। सुभासपा ने सपा से तीन सीटें जलालपुर, बलहा व घोसी मांगी है। राजभर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के संपर्क में बने हुए हैं।
समाजवादी पार्टी जहां परिवार को एक करने में जुटी है तो वहीं समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ कर अलग हुईं मायावती पहली बार उपचुनाव में उतरने का फैसला कर चुकी हैं। उपचुनाव की तैयारियों की कमान मायावती स्वयं संभाले हुए हैं। कई सालों से उपचुनाव न लड़ने वाली बसपा इस बार पूरी दमदारी से इस जंग में उतर रही है। बसपा ने सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद सबसे पहले उपचुनाव लड़ने की घोषणा की थी और उसने अपने उम्मीदवारों का एलान भी कर रखा है। इसकी देखरेख की जिम्मेदारी मुनकाद अली, आरएस कुशवाहा और एमएलसी भीमराव अंबेडकर को दी गई है। ये प्रदेश कोआर्डिनेटर मायावती का संदेश निचले स्तर पर पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इन सारे हालातों के बीच कई अहम सवाल हैं जो लगातार प्रदेश की बदलती तस्वीर के बीच उठ रहे हैं और जिनका सीधा ताल्लुक आने वाले चुनावों के इस दौर से है।
क्या ढाई साल के विकास के दावों की परीक्षा हैं उपचुनाव ?
और कानून व्यवस्था की चुनौती के बीच विश्वास पर क्या खरा उतरेगी योगी सरकार ?
या फिर ये माना जाए कि सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए संजीवनी होंगे उपचुनाव ?
उपचुनाव जिन भी मुद्दों पर लड़ा जाए, लेकिन कुछ नतीजे अभी से दिख रहे हैं। बिखरे विपक्ष को देख कर लगता नहीं है कि योगी सरकार के लिए चुनौती बहुत बड़ी है। बावजूद इसके जिस तरह से कानून व्यवस्था सरकार के लिए सिरदर्द बनी हुई है, वो काफी हद तक योगी सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी की तमाम सख्तियों का असर हकीकत की जमीन पर और पुलिस की कार्यशैली में उतरता नहीं दिख रहा है, यही वजह है कि एक तरफ तो एनकाउंटर की गिनती बढ़ती जा रही है, तो दूसरी तरफ अपराध भी काबू में नहीं है । ऐसे में बिखरा और निष्क्रिय विपक्ष मुद्दों की सियासत करेगा इसकी उम्मीद भी कम ही दिखाई पड़ती है।