रामनवमी पर देश के कई हिस्सों में हिंसा भड़क उठी. एक तरफ जहां गुजरात के वडोदरा में पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं तो वहीं दूसरी तरफ यूपी की राजधानी लखनऊ में दो गुट आपस में भिड़ गए. महाराष्ट्र से भी हिंसा की खबर थी. इन सबके बीच पश्चिम बंगाल के हावड़ा और बिहार के सासाराम और बिहार शरीफ में भारी बवाल और आगजनी की घटनाएं हुईं. हावड़ा में जहां उपद्रवियों ने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया तो वहीं बिहार में कई राउंड फायरिंग हुई. स्थिति को संभालने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं. लोगों को घरों में रहने की हिदायत दी गई. बिहार के पुलिस प्रमुख आर. एस भट्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि हालात नियंत्रण में है.
इधर, बिहार दौरे पर गए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि वे इस घटना के बाद सासाराम नहीं जा पाएं, क्योंकि गोलियां चल रही थीं. उन्होंने बिहार के कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि सीएम नीतीश कुमार और ललन सिंह के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं. इन सबके बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार का भी हिंसा पर बयान आया. उन्होंने कहा कि कौन करता है ये सब और कौन करवाता है, इन दोनों का पता लगाएंगे. उन्होंने कहा कि पहले तो कभी ऐसा नहीं होता था. इस साल कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव और इसके बाद अगले साल लोकसभा का चुनाव और उसके बाद बिहार में 2025 में विधानसभा का चुनाव है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि चुनाव से पहले आखिर इस तरह दंगा क्यों हो रहा है? इसमें किसकी मिलीभगत हो सकती है? इस पर हमने कांग्रेस और बीजेपी दोनों से राय लेने की कोशिश की है. आइये बारी-बारी से जानते हैं.
टीना शर्मा [फाइनेंशियल एडवाइजर, एमएसएमई, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया और जनरल सेक्रेटरी, दिल्ली बीजेपी महिला मोर्चा]:
ये सब पहली बार तो हो नहीं रहा है, रामनवमी पर इस तरह की घटना हमेशा होती है और हम सब जानते हैं. जब भी चुनाव का माहौल होता है तो इस तरह की हिंसाएं भड़कती हैं और जिस तरह से अल्पसंख्यक समुदाय को बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समर्थन प्राप्त है और खासकर के बांग्लादेशियों का और अराजकतावाद फैला हुआ है. वैसे ही पंजाब में अमृतपाल को समर्थन मिला है और उसके समर्थक तो पकड़ लिए गए लेकिन वह स्वयं नहीं पकड़ा गया...तो कहीं न कहीं अलगाववादियों के समर्थन से सरकार बनाने का मौका मिला है तो उसको इस रूप में तोहफा दिया जा रहा है. बंगाल में ये आगजनी और हिंसक घटनाएं कोई पहली बार नहीं है. अगर आप देखें तो वहां भारतीय जनता पार्टी के बहुत सारे कार्यकर्ता लहूलुहान हैं और जिस तरह पुलिस उनके घरों में आकर उन्हें उठा ले जा रही है और महिलाएं काफी डरी हुई हैं वो अपनी बात सोशल मीडिया के जरिए कहने को मजबूर हैं कि हमारे साथ बंगाल सरकार इस तरह से पेश आ रही है. हमारे पुरुषों को रात को उठा लिया जाता है जिससे की मुस्लिम समुदाय को एक ऊपरी तौर पर साथ मिल जाए जिससे की वो हम पर हिंसा कर सकें और हमारे घरों को जला सकें. लेकिन घर किनके जल रहे ये जरूर जानना चाहिए.
हिंसा में झोंके जाते हैं आमलोग
लेकिन मुझे लगता है कि ये बहुत ही महत्वपूर्ण है कि किन लोगों के घर जलाए जा रहे हैं और किनके साथ हिंसा हो रही है. क्या वो हिंदू समुदाय के लोग हैं या बहुसंख्यक समुदाय के लोग हैं. इन दोनों के बीच अगर आप अंतर देखेंगे तो आंकड़े आपके सामने आ जाएंगे और ये बहुत ही दुखदायी है और मुझे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में अतीक अहमद को सजा दिलवाकर काम किया है वो काबिले तारीफ है...लेकिन जिन प्रदेशों में अल्पसंख्यक वोटों से सरकारें बनती हैं वहां देखिये क्या दुर्गति हो रही है. इस तरह की घटना से दोनों तरफ का नुकसान होता है. हर युद्ध में राजा और उसके ऊपर के लोगों का फायदा होता है लेकिन जनता को नुकसान होता है. लोगों को यह समझना पड़ेगा कि जिस तरह से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ वो पिस रहे हैं मुझे लगता है कि उन्हें जागरूक होना पड़ेगा. मुझे लगता है कि खून के बदले खून वाली जो राजनीति है वो अब बहुत ज्यादा समय तक नहीं चलेगा. जो लोग हिंसा करने में शामिल होते हैं उनकी सोशल मीडिया में सब तरह के वीडियो और फोटो पड़ी हैं. मैं देख कर हैरान हूं कि इतनी हिंसा और खून के लोग कैसे प्यासे हो सकते हैं. सामान्य परिस्थितियों में तो ऐसा बिल्कुल संभव नहीं है. ये तो राजनीतिक ओहदों पर बैठे उनके आकाओं की करतूत है. वे उन्हें थोड़ी सी लालच देकर इसे अंजाम दिलवाते हैं. मुझे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी ही इसे ठीक कर पाएगी.
चुनाव पूर्व इस तरह की हिंसा फैलाने व करवाने का मकसद यही है कि वो अल्पसंख्यकों ये बताना चाहते हैं कि तुम जो हो खतरे में हो, अपने अधिकार के लिए लड़ो, हमारी पार्टी को वोट करो और ये हम सब जानते हैं कि ये किसका संदेश है. मैं इसे खुले तौर पर नहीं बोलूंगी लेकिन लोग समझ जाते हैं कि देश में क्या चल रहा है और ऐसा क्यों होता है और वो भी चुनाव के दौरान इस तरह की आगजनी और हिंसा का होना इसे लोग बखूबी समझते हैं.
कई हत्याओं में तो पुलिस भी कहीं न कहीं शामिल होती है और पता भी नहीं चलता है. इसके बाद गलत लोगों को फंसाया जाता है. ये सभी चीजें देश के लिए बहुत ही दुखदायी है. बिल्कुल, यह ध्रुवीकरण करने की राजनीति है और अगर यह नहीं है तो फिर क्यों मासूमों का खून बहेगा. चुनाव अगर आ रहा है तो आप मुद्दों पर चुनाव लड़िये, लोगों के पास जाइए और उन्हें गिनवाइए की आपने अपनी सरकार में क्या-क्या काम किया है. बंगाल में ममता बनर्जी को क्यों इस तरह के हथकंडे अपनाने की जरूरत पड़त है. एक राजनीतिक एक्टिविस्ट होते हुए भी मैं देखती हूं कि कहीं न कहीं मासूमों का खून बह रहा है.
देखिये, राजनीतिक दंगा भड़काने का जो काम होता है वो किसी भी पार्टी के ऊपर के लोगों का होता है और बंगाल में ममता बनर्जी इसके लिए जानी जाती हैं. अगर उन्हें उनके धर्म के नाम पर नहीं भड़काया जाए तो इस तरह की घटनाएं बिल्कुल नहीं होंगी. वैसे तो हमारा भी धर्म बहुत संवेदनशील है और धर्म के लिए इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाता है. महाभारत और गीता में यही बात कही गई है कि धर्म के लिए तो हम अपने आप को भी कुर्बान कर देंगे तो यही लोगों को शिक्षाएं नहीं देनी है, सुविधाएं नहीं देनी है. ममता बनर्ज और बाकी सरकारें भी धर्म के नाम पर लोगों को भड़काने का काम करती है. इसे भड़काने के बाद जो माहौल खड़ा होता है, उससे उन्हीं लोगों का नुकसान होता है. अगर दो लोग इधर, के मरते हैं तो दो उधर के भी मारे जाते हैं. लेकिन ये समझना जनता का काम है लेकिन उनके पास कोई ऑप्शन नहीं है. मुझे लगता है कि कई बार वे राजनीति के चक्कर में इतना फंस चुके होते हैं कि हिंसा के अलावा उन्हें कोई और रास्ता नजर नहीं आता है और उस बहाव के साथ उन्हें बहना पड़ता है.
मैंने आपको अतीक अहमद पर हुई कार्रवाई का उदाहरण दिया था. तो मुझे लगता है कि इस तरह की हिंसा और आगजनी नहीं हो उसके लिए यूपी की तरह भाजपा का अन्य राज्यों में सरकार का आना जरूरी है. इन सब पर रोक लगाने के लिए मिनिस्ट्री का कड़ा व्यवहार जरूरी है. उस प्रदेश की सरकार पर लगाम लगाना भी जरूरी है और साथ ही साथ वैसे नेताओं का बहिष्कार किया जाना भी बहुत जरूरी है जो हिंसा को भड़काने का काम करते हैं. ये काम तो आम जनता को ही करना है और मुझे विश्वास है कि वो इसे जरूर करेगी. मैं तो ऐसा करने के लिए लोगों से अपील भी कर रही हूं क्योंकि देखिये, जब इस तरह की घटनाएं होती हैं तो लोगों को क्या मिलता है. अपने ही जैसे किसी व्यक्ति का खून बहाते हैं तो खून बहाने से तो समस्या का समाधान नहीं ह होगा न. खून तो इंसान का ही है उसमें तो कोई भेद नहीं हैं न तो ये बात देश के हर नागरिक को समझना जरूरी है और खास करके उनको जो वोटर हैं कि किसी भी कीमत पर किसी का भी खून नहीं बहे चाहे वो मुसलमान हो या हिंदू...तो इन जातियों में हमें अपने आप को नहीं बांटना है और उन सरकारों को अपने एक वोट से बहिष्कार करके यह संदेश देना है कि जब भी इस तरह के अलगाववाद के सिस्टम को आप खड़ा करेंगे, हम आपका समर्थन नहीं करेंगे.
राजेश ठाकुर [झारखंड कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष]
चुनावी फायदे के लिए कराया जाता है दंगा:
ये बड़ी दुखद बात है कि जब भी कोई चुनाव आता है पूरे देश में विधानसभा का तो इस तरह के उन्माद के चित्र, तस्वीरें सामने आती है और यह हम कह सकते हैं कि कहीं न कहीं धर्म की चासनी चटा करके धर्म को आड़ में इस तरह की कवायद की जाती है. वो चाहे किसी भी पक्ष से हो बिल्कुल निंदनीय है. कोई भी मुद्दा होता है तो हम यह देखते हैं कि या जो हम झारखंड में देख पाते हैं, कई राज्यों में हमने देखा की डीजे जो एक गीत संगीत के लिए, बड़े-बड़े लाऊडस्पीकर आते हैं उसको बजाने के लिए लोग कहीं न कहीं आक्रोशित हो जाते हैं और हम समझते हैं कि एक हिंदू होने के नाते, भगवान राम के उपासक होने के नाते मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आगे मर्यादा जैसे शब्द लगे हुए हैं. अगर हम अमर्यादित होते हैं मर्यादा के अनुकूल कोई कार्य नहीं करते हैं तो निश्चित रूप से भगवान राम का अपमान करते हैं, जो हमने हाल के दिनों में होते देखा है. यही इस वजह से भी होता है कि जब देश में बेरोजगारी चरम पर रहेगी तो भूख चरम पर होती है तब लोग आस्था के समंदर में डुबकी लगा करके कहीं ना कहीं अपनी भूख को मिटाने का प्रयास करते हैं या यूं कहिए जो बेरोजगारी में रोजगार खोजने का प्रयास करते हैं और यह स्पष्ट रूप से लगातार दिखाई दे रहा है.
जो दुखद है, सोचनीय है और इस पर बहुत गंभीरता से देश के तमाम लोगों से आप के माध्यम से अपील करूंगा कि उनको इस विषय पर सोचना चाहिए. आप देखेंगे जिनके पास रोजगार हैं, वो सुबह भगवान राम की पूजा करते हैं, अल्लाह के पास नतमस्तक होते हैं, वो वाहे गुरु के पास जाते हैं और गिरजाघरों में जाकर प्रार्थना करते हैं. लेकिन जिनके पास रोजगार नहीं हैं वो निश्चित रूप से कई बार ऐसा लगता है कि उसका लोग लाभ उठा रहे हैं. साधु-संत, महाराज जो भी सभी धर्म से जुड़े हुए धार्मिक हमारे गुरु होते हैं उनको इस संदर्भ में एक निर्णय लेना होगा, उन्हें इस संदर्भ में सोचना होगा. क्योंकि निश्चित रूप से हम सब धर्म कर्म वाले लोग हैं और धर्म जब कर्म पर चढ़ कर बोलने लगे तो यह ठीक नहीं है. हम गीता के सार को भी जानते हैं कि जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान. मतलब कर्म से ही भगवान धर्म तय करते हैं कि हां आप कितने धार्मिक हैं. अगर आप कार्मिक नहीं हैं तो इसका मतलब यह है कि आप धार्मिक भी नहीं हैं.
चुनावी लाभ के लिए तो इस तरह के प्रयास होते हैं, हम इसको मानते हैं इसलिए कि जब कोई चुनाव आता है तो किसी न किसी प्रकार से अशांति का माहौल कायम करने का प्रयास किया जाता है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि जिस राज्य में चुनाव हो उसी राज्य में ये काम हो क्योंकि हम ग्लोबल दुनिया में जी रहे हैं और आप जानते हैं कि जब हम एक बार मोबाइल उठाते हैं तो पूरी दुनिया की तस्वीर हमारे सामने होती है और हम क्या पसंद करते हैं और क्या नहीं पसंद करते हैं उस पर मामला नहीं है चूंकि जो मोबाइल कंपनियों का एक सिस्टम है उसमें सारी चीजें एक साथ आती-जाती हैं और निश्चित रूप से जब भी कोई जो सकारात्मक चीजें हैं उस पर कम पड़ती है. नकारात्मक चीजों पर नजर ज्यादा पड़ती है. आपने देखा होगा बोकारो में और कई जगहों पर कि मुस्लिम जो धर्मावलंबी हैं उन्होंने रामनवमी में पूरी तरह से लगकर के सेवा-भावना के साथ काम किया. उसी तरह से मुहर्रम में और बाकी चीजों में हम लोग भी इफ्तार पार्टी करते हैं...लेकिन बात वहीं है न कि आप कहां क्या चाहते हैं.
आप निश्चित रूप से चाहते हैं कि कहीं से न कहीं से मैसेज जो है तीन-चार राज्यों में पांच राज्य चुनाव होने वाले हैं, वहां का मतों का ध्रुवीकरण हो. जबकि ऐसा हर बार संभव नहीं होता है. ऐसा भी नहीं है कि यह प्रयास कोई आज से चल रहा है. यह प्रयास वर्षों से चलता आया है लेकिन कई बार इस प्रयास में कोई सफल हो जाता है कई बार असफल हो जाता है. जो हमें लगता है कि अब बातें सामने आ रही हैं जिस तरह से सार्वजनिक रूप से लोग बयान दे रहे हैं उससे कहीं ना कहीं लोगों में, जनता में एक संदेश जा रहा है कि यह सिर्फ और सिर्फ चुनावी कवायद होते हैं. इसलिए इससे चुनाव पर बहुत कोई असर नहीं पड़ेगा. हां संघर्ष से ज्यादा आज कल इस तरह के संदेश देकर लोग वोट लेना चाहते हैं तो हो सकता है कि कुछ दिनों के लिए अच्छी बात हो लेकिन हमें इस बात से डर लगता है कि कहीं इस देश की जो गंगा-जमुनी तहजीब है वो बिल्कुल चुनाव को लेकर के या मतों के ध्रुवीकरण को लेकर के या सत्ता में बने रहने के लिए कहीं बर्बाद नहीं हो जाए. देश रहेगा तभी राजनीतिक दल रहेंगे, तभी कोई संविधान रहेगा, तभी लोकतंत्र रहेगा, तभी प्रधानमंत्री रहेंगे...यानी सभी लोग तभी रहेंगे जब देश में अमन-चैन और शांति कायम रहेगा.
हम तो ये चाहते हैं कि एक आम नागरिक होने के नाते भी कि जब शांति रहती है तो निश्चित रूप से बाजार का भी माहौल ठीक रहता है, अर्थव्यवस्था भी ठीक रहती है..तो बहुत सारी चीजें इस पर निर्भर करती हैं. लेकिन अब इस चीज को पता नहीं कौन किस तरह से लेता है. लेकिन मैं इस इस तरह से लेता हूं कि सभी वर्गों के जो लोग हैं उन्हें इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि इससे हमें प्राप्त क्या होता है. कहीं हिंदू की जान जाती है तो कहीं मुसलमान की जान चली जाती है..तो जान तो जान है. सबके लिए बराबर है उस परिवार के लिए वो अहम आदमी होता है और इस बात को हमको कहीं न कहीं से स्वीकार करना होगा कि इससे नुकसान सिर्फ उस परिवार नहीं देश का होता है.
[ये ओपिनियन डॉ. टीना शर्मा और राजेश ठाकुर के निजी विचारों पर आधारित है]