'ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी... सकल ताड़ना के अधिकारी', रामचरितमानस में जानिए क्या है इसका सही अर्थ
गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस की चौपाई पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और इसे हटाने की मांग की जा रही है. बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर से लेकर यूपी में समाजवादी पार्टी के एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसके खिलाफ बयान देते हुए कहा कि दलितों, महिलाओं का अपामन हो रहा है. लेकिन वास्तव में अगर देखा जाए तो न ही वो चौपाई है, और न ही उसका अर्थ है, जो लोगों की तरफ से उसको लेकर निकाले जा रहे हैं.
सुंदरकांड की जिस चौपाई पर विवाद खड़ा हो रहा है वो है-
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं।
मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु , नारी ।
सकल ताड़ना के अधिकारी॥
लेकिन, रामभद्राचार्य ने कहा है कि रामचरितमानस में थोड़ी सी त्रुटि है. वास्तव में ये लाइन है-
ढोल, गंवार, क्षुब्ध पशु, रारी
ढोल मतलब जो दूसरों की बात सुनकर उल्टा सीधा बोलने लग जाता है या जो बिना पीटे बजता नहीं है. उसे ढोल कहते हैं. एक ढोल है, जब तक उसे नहीं पीटोगे तो वो बजेगा नहीं. बेकार है. दूसरा शब्द उसमें है गंवार. अनपढ़ व्यक्ति को गंवार कहते हैं.
तीसरा है क्षुब्ध पशु, यानी जो आवारा पशु होते हैं. ऐसे व्यक्ति किसी लायक नहीं होते हैं, सिर्फ नुकसान पहुंचा सकते हैं. और वहां पर रारी का मतलब नारी शब्द नहीं है. रारी का मतलब है झगड़ालू व्यक्ति. कर्कश स्वभाव वाला व्यक्ति.
तो ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी ये शब्द ठीक नहीं है बल्कि इसका सही शब्द है- ढोल, गंवार, क्षुब्ध पशु, रारी.
जबकि आलोचना करने वाले लोगों ने शुद्र शब्द जाति विशेष के तौर पर लिया है, लेकिन वहां खुद रामभद्राचार्य जी ने बताया है कि रामचरितमानस में त्रुटि है, जबकि चौपाई सही मायने में अलग है.
चौपाई में त्रुटियां
इसलिए इस धार्मिक ग्रंथ को विवादित न करते हुए, एक धर्म सम्राट की पदवी पर बैठे हुए और कई विषयों में आचार्य की उपाधि हासिल किए हुए, रामभद्राचार्य के द्वारा बताये हुए इन शब्दों को मानें और अपने विवेक से उसे मानें.
रामचरितमानस की मुख्य प्रति में क्षुब्ध पशु रारी लिखा हुआ है और जो त्रुटियां लंबे समय से चलती आ रही है, वहीं आगे बढ़ाई जा रही है. गीता प्रेस से अनुरोध है कि इसको छापने में संशोधन करें. पूरे भारत में सभी धर्म के लोगों में परस्पर प्रीत बना रहे.
भगवान के समस्त ग्रंथों पर सभी का अधिकार है. किसी जाति विशेष के खिलाफ ऐसा कुछ भी नहीं लिखा गया है.
चिंता और चिता में एक बिन्दी का अंतर
कुछ लोग इसे बेवजह तूल दे रहे हैं. दरअसल, चिंता और चिता में सिर्फ एक बिन्दी का फर्क होता है. अगर बिन्दी लगा दी जाती है तो 'चिंता' शब्द बन जाता है, उसे हटाने पर 'चिता' शब्द बन जाता है. चिता तो केवल मुर्दे का भक्षण करती है. लेकिन, चिंता जीवित व्यक्ति का भी भक्षण कर जाती है. हर व्यक्ति ने हमारे इस धार्मिक ग्रंथ के चौपाइयों को अपने तरीके से अर्थ निकालकर दूसरे तरीके से दूसरे के सामने प्रस्तुत किया है.
रामचरितमानस में भी रामभद्राचार्य महाराज की तरफ से ये कथन है कि कई जगहों पर त्रुटियां है. लेकिन जैसे हाल के दिनों में राजनेताओं की तरफ से ये बयान दिया गया है कि जाति विशेष का प्रयोग किया गया है. ये जाति विशेष का प्रयोग किसी ब्राह्मण या किसी व्यक्ति विशेष की तरफ से नहीं किया गया है.
विवाद कैसे भी पैदा हो सकता है?
विवादित चौपाई के लिए तो कहीं से भी उसे उठा सकते हैं और कहीं से भी उसे नीचे डाल सकते हैं. उदारण के तौर पर- रावण जब सीता जी से मिलने के लिए अशोक वाटिका में आता है और कहता है कि आप मेरी तरफ देखो. मैं सबको आपकी अनुचरी कर दूंगा.
तृन धरि ओट कहति बैदेहि।
सुमिरि अवधपति परम सनेही।।
यानी, तिनके को ओट कर सीता जी कहती है कि मैं श्रीराम के अलावा किसी और को नहीं जानती हूं. अब इस चौपाई को दूसरी तरफ मोड़कर कैसे भी बना सकते हैं. उल्टा-सीधा कैसे भी किया जा सकता है. लेकिन धार्मिक ग्रंथों का जो अर्थ है, मानव विशेष के लिए जो उपदेश है, वो यही है कि सीता जी ने परमप्रिय स्वामी रामचंद्र जी को ध्यान कर, तिनके की ओट करते हुए रावण को समझा दिया कि पर पुरूष को मैंने आज तक नहीं देखा है. सिर्फ श्रीराम जी के श्री चरणों की अनुयायी हूं.
लेकिन, गोस्वामी ने जिस तरीके से समझाया है वो बिल्कुल सटीक है. लेकिन कहीं-कहीं कुछ त्रुटियां हैं, जिसे सुधार की जरूरत है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]