(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'मायावती-अखिलेश दलित वोट बैंक की करें राजनीति, लेकिन रामचरितमानस को बीच में लाना ग़लत'
मैं समझता हूं कि तुलसीदासजी ने जो कुछ भी लिखा है, उसको तोड़-मरोड़कर कर इस तरह से पेशकर राजनीति किया जाना ग़लत है. ये न तो समाज के लिए अच्छी बात है और न ही राजनीति के लिए. तुलसीदास, कबीर जैसे लोगों ने जातियों से ऊपर उठकर काम किया है, जातियों में बांधकर कम से कम उनलोगों के सम्मान को आहत नहीं किया जाना चाहिए.
मायावती की राजनीति की एक सीमा है
मायावती की अपनी राजनीति है. वे बिल्कुल नहीं चाहेंगी कि दलित राजनीति में अखिलेश या कोई दूसरा आए. क्योंकि मायावती की सीमाएं वहां तक सीमित है. मायावती उसके आगे बढ़ ही नहीं सकती हैं और ये उनकी समस्या रही है. अखिलेश की भी एक जाति विशेष पर पकड़ है, अभी तक वे उसमें रहते थे. अगर वे उससे आगे बढ़ना चाहते हैं, तो मैं समझता हूं कि ये समाज और राजनीति के लिए अच्छी बात है.
तुलसीदास को बीच में लाना अज्ञानता
इन सबके बीच में तुलसीदास को लाना लोगों की अज्ञानता को दिखाता है. तुलसीदासजी ने कभी भी किसी के लिए असम्मानजनक शब्द का प्रयोग नहीं किया है. उन्होंने जिस संदर्भ में चीजों को लिखा है, उससे हटकर अगर हम देखेंगे तो मैं समझता हूं कि उससे राजनीति तो सध सकती है, लेकिन समाज बिगड़ जाएगा और टूटता रहेगा. चाहे मायावती हों, या अखिलेश या फिर बिहार के शिक्षा मंत्री... तुलसीदास और रामचरितमानस को लेकर विवाद पैदा करना ओछी मानसिकता को दिखाता है.
रामायण को लेकर राजनीति सही नहीं
हम हिंदी भाषी हो सकते हैं, बांग्ला भाषी हो सकते हैं, हम कोई भाषा बोलने वाले हो सकते हैं. भारत में तमाम तरह के रामायण लिखे गए हैं और सभी ने जिस तरह से रामायण को प्रस्तुत किया है, इसके जरिए समाज के सामने एक आदर्श को प्रस्तुत किया गया है. रामायण को लेकर अगर राजनीति की जाती है, तो मैं समझता हूं कि इस देश के लिए इससे बड़ी दु:खदायी बात कोई नहीं हो सकती. ये अखिलेश और मायावती के साथ ही हर दल के नेताओं को समझना चाहिए.
दलितों के बीच जनाधार बढ़ाना मकसद
'बीजेपी हम सबको शूद्र समझती है', अखिलेश यादव इस बयान से ये कहना चाहते हैं कि बीजेपी उनको नीची निगाह से देखती है. अगर अखिलेश यूपी में दलितों के बीच अपनी पकड़ बढ़ाने के लिए कोई बयान देते हैं, तो उसमें कुछ भी बुरा नहीं मानता हूं. अगर आप संविधान को देखें तो भारत की राजनीति सर्व समावेशी राजनीति है, कोई जातिगत राजनीति नहीं है. कोई भी राजनीतिक व्यक्ति अगर किसी भी जाति को अपने साथ जोड़ना चाहता है, तो उसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. एक जमाने में सारी जातियां कांग्रेस के साथ जुड़ी होती थी. इसी वजह से कांग्रेस की समाज में एक अलग नजरिया और प्रतिष्ठा रही है. जब बीजेपी भी क्षेत्रीय सीमाओं से ऊपर उठकर आ गई तो उससे भी लोग जुड़े. राजनीति तो लोगों को जोड़ने की चीज है और कौन किसको कैसे जोड़ता है, ये उस व्यक्ति या दल पर निर्भर करता है.
भाषा की मर्यादा बनाए रखने की जरूरत
समाज और राजनीति में पहले भाषा की जैसी मर्यादा रही है, आज वैसे हालात नहीं हैं. ये समाज और राजनीति के लिए एक गंभीर विषय है कि हम एक-दूसरे से किस भाषा में बात कर रहे हैं. भाषा जोड़ने के लिए होती है, तोड़ने के लिए नहीं. शब्दों का ग़लत ढंग से प्रयोग करेंगे तो लोग निश्चित रूप से एक-दूसरे से कटेंगे और इससे समाज बंटेगा. राजनीति का मतलब समाज को बांटना नहीं होता है. हम अगर हर चीज को राजनीतिक फायदे के हिसाब से तोड़ेंगे-मरोड़ेंगे, तो ये समाज के लिए सहीं नहीं होगा.
राजनीतिक हल निकालने पर हो ज़ोर
मैं समझता हूं कि राजनीतिज्ञों को बहुत ही सतर्क होकर काम करने की जरूरत है. उनका काम देश को जोड़ना है, बांटना नहीं. एक बार देश देख चुका है कि देश बंटने का क्या हश्र होता है. 1947 की त्रासदी से देश आज भी उबर नहीं पाया है. हर चीज का हल कानून से नहीं हो सकता है. रामचरितमानस से जुड़े विवाद का सामाजिक और राजनीतिक हल निकाला जाना चाहिए, पुलिसिया कार्रवाई से कोई हल नहीं निकल सकता है. हर पार्टी के नेताओं को रामचरितमानस या तुलसीदासजी पर बयान देने में संयम बरतने की जरूरत है. हर पार्टी के नेताओं में ये कमी दिख रही है कि वे लोगों को जोड़ने की बजाय तोड़ने की कोशश कर रहे हैं.
तुलसीदास के सम्मान को आहत करना ग़लत
"ढोल गवांर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।" तुलसीदासजी की लिखी इस बात को बहुत ग़लत तरीके से क्वोट (quote) किया जाता है. इसमें 'ताड़ना' शब्द के कई प्रकार के अर्थ हैं. इसको अलग-अलग संदर्भ के साथ समझने की जरूरत है. इसको लेकर जिस तरह की राजनीति की जा रही है, उससे पहले नेताओं को इसकी पूरी व्याख्या को समझना चाहिए और उसके बाद ही इन पर बात करें. तुलसीदासजी को राजनीति में लाकर उनके सम्मान को कम नहीं किया जाना चाहिए.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]